आपने अभी हाल ही के दिनों में सुना होगा कि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे दिया है!उद्धव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसे मानना पड़ेगा। मुझे मुख्यमंत्री पद छोड़ने की कोई चिंता, दुख नहीं है। मैं जो करता हूं शिवसैनिक, मराठी और हिंदुत्व के लिए करता हूं। मैं चुप बैठने वाला नहीं हूं। मैं डरने वाला नहीं हूं। मैं बृहस्पतिवार से शिवसेना भवन में बैठूंगा।
साल 2019 के बाद महाराष्ट्र के रूप में तीसरे राज्य में भाजपा का ऑपरेशन लोटस सफल रहा। हालांकि इस सूबे में पार्टी को इसके लिए करीब ढाई साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। दरअसल राजस्थान में ऑपरेशन लोटस की असफलता के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में तख्ता पलट के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति बनाई। हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना में असंतोष भड़कने का इंतजार किया गया।शिवसेना के दो तिहाई से अधिक विधायक पार्टी का साथ छोड़ चुके थे। मुश्किल तब और बढ़ गई जब सियासी जोर आजमाइश के बीच महाविकास आघाड़ी को समर्थन देने वाले छोटे दलों और निर्दलीयों ने साथ छोड़ना शुरू कर दिया। संख्या बल की दृष्टि से भाजपा अपने और निर्दलीय, छोटे दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई।सरकार बचाने के लिए शिवसेना ने अंत समय तक बगावती गुट में फूट डालने की कोशिश की। शिवसेना के 39 विधायकों ने बगावत की थी, मगर फूट डालने के लिए इनमें से महज 16 विधायकों को नोटिस भेजा गया। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। इसके उलट अघाड़ी सरकार को समर्थन देने वाले छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों ने भी उससे किनारा कर लिया। शिवसेना सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। उद्धव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
साल 2019 में अजित पवार के जरिये एनसीपी में फूट डाल कर सरकार बनाने और बाद में पीछे हटने पर मजबूर हुई भाजपा ने राज्य में तख्ता पलट के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति बनाई। एक तरफ सरकारी जांच एजेंसियों ने अवैध कमाई करने वाले नेताओं के खिलाफ लगातार कार्रवाई की तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना को हिंदुत्व के मुद्दे पर असहज किया। लगातार कोशिश की गई शिवसेना में अंतर्विरोध पैदा हो सके।महाराष्ट्र में दस दिन से जारी सियासी संग्राम के बीच उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इन्कार कर दिया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी परदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने प्रभु के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा की बहुमत परीक्षण बागी सदस्यों की अयोग्यता प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करेगा? या स्पीकर की शक्तियों में दखल कैसे है? पीठ ने कहा कि हमारी समझ से लोकतंत्र के मसलों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट एकमात्र तरीका है।
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा, जिन्होंने पाला बदला है, वह जनता की मर्जी नहीं है। यदि कल (बृहस्पतिवार) बहुमत परीक्षण नहीं होगा तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा। सिंघवी ने पीठ से कहा, इस सुपरसोनिक रफ्तार से फ्लोर टेस्ट कराने से घोड़ा तांगे के नीचे आ जाएगा। उन्होंने एनसीपी के दो विधायकों के कोरोना संक्रमित होने का भी हवाला दिया और कहा कि कांग्रेस के दो विधायक विदेश में हैं। तर्क दिया, फ्लोर टेस्ट की अनुमति देना 10वीं अनुसूची को निरर्थक बनाना है।
बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे के वकील एनके कौल ने तर्क दिया कि स्पीकर के समक्ष अयोग्यता प्रक्रिया लंबित होना फ्लोर टेस्ट कराने से रोकने का आधार नहीं है। लोकतंत्र में सदन के अंदर ही बहुमत का हल होता है। कौल ने कहा, उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना पार्टी में निराश अल्पमत वाला धड़ा है और बदले माहौल में बहुमत परीक्षण की जरूरत है। इसलिए राज्यपाल ने अपने विवेक से फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला किया है।उद्धव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसे मानना पड़ेगा। मुझे मुख्यमंत्री पद छोड़ने की कोई चिंता, दुख नहीं है। मैं जो करता हूं शिवसैनिक, मराठी और हिंदुत्व के लिए करता हूं। मैं चुप बैठने वाला नहीं हूं। मैं डरने वाला नहीं हूं। मैं बृहस्पतिवार से शिवसेना भवन में बैठूंगा। शिवसैनिकों से संवाद साधूंगा और एक नई शिवसेना तैयार करूंगा। शिवसेना ठाकरे परिवार की है और इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता। कई शिवसैनिकों को नोटिस भेजा गया है। मेरी शिवसैनिकों से अपील है कि जब वे (बागी विधायक) मुंबई आए तो कोई उनके सामने न आए। वे सड़कों पर न उतरें।
उद्धव ने शिवसेना के बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे पर परोक्ष रूप से निशाना साधा। कहा कि जिन्हें शिवसेना ने बड़ा बनाया, जिन चाय वाले, रेहड़ी वाले को पार्षद, विधायक, सांसद और मंत्री बनाया, वे शिवसेना के उपकार को भूल गए और दगाबाजी की। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने के बाद जो संभव था, वह दिया फिर भी वे नाराज हो गए। यह जो हुआ वह अनपेक्षित था।