आज कहानी ऐसे नेता की जिसने पहला चुनाव 910 रुपए में जीता था! खुला बदन, हल्की-लम्बी दाढ़ी मूंछ, कंधे पर सफेद या हरा गमछा और बिना चप्पल-जूते तक संसद भवन में अंदर प्रवेश करने वाले शख्स को देखकर सभी हैरान रह जाते। झारखंड के सिंहभूम लोकसभा सीट से पांच पर सांसद और चाईबासा विधानसभा क्षेत्र से चार विधायक रहे बागुन सुम्ब्रुई की सादगी की चर्चा अब भी होती है। आधुनिक राजनीति के संत-महात्मा के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले बागुन सुम्ब्रुई की चर्चा बहुपत्नियों के लिए भी होती है। दर्जी से राजनेता बने बागुन सुम्ब्रई ने अपना पहला चुनाव साइकिल को बंधक रखकर जीता था। वहीं झारखंड आंदोलन के दौरान बाहर लोगों पर ‘भेलवा तेल’ ज्वलनशील तेल डालकर इलाके से भगाने का काम किया, जिसकी चर्चा वक्त पूरे देशभर में हुई और इस कदम से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई। आजादी के पहले 1945 से ही बागुन सुम्बुई चाईबासा शहर के सदर बाजार में दर्जी का काम कर अपनी जीविकोपार्जन कर रहे थे। लेकिन सातवीं कक्षा तक पढ़े बागुन सुम्ब्रुई अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में कूद गए। वे जयपाल सिंह मुंडा के करीब आए। बाद में उन्होंने अपने इलाके में झारखंड आंदोलन की कमान संभालने के साथ ही ‘बिहारी झारखंड छोड़ो’ का नारा दिया। इस आंदोलन को इलाके में जबरदस्त समर्थन मिला। आंदोलन में स्थानीय ‘हो’ भाषा नहीं जानने वाले करीब 500 बिहारी शिक्षकों को चिह्नित किया गया। बागुन सुम्ब्रुई के नेतृत्व में उन्हें खदेड़ दिया गया। इस आंदोलन में क्षेत्र से भागने वाले सभी प्राथमिक स्कूल के शिक्षक थे। लेकिन 1984 में बागुन सुम्ब्रुई कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद 1984 और 1989 में भी जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष 2000 में चाईबासा सीट से विधायक बने और राबड़ी देवी की सरमार में मंत्री बने। अलग झारखंड राज्य गठन के बाद बागुन सुम्ब्रुई झारखंड विधानसभा के पहले उपाध्यक्ष बने।उनके नेतृत्व में झारखंड आंदोलन इतना उग्र हुआ कि बिहारी शिक्षक, कर्मचारी और ठेकेदार को पकड़ कर उनपर भेलवा तेल (ज्वलनशील) डाल दिया जाने लगा। इस आंदोलन से इलाके में बागुन सुम्बुई नायक के रूप में उभरे।
1967 में बागुन सुम्ब्रुई ने सबसे पहले झारखंड पार्टी के टिकट पर चाईबासा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। निधन से कुछ दिन पहले बागुन सुम्ब्रई ने एक इंटरव्यू में बताया था पहले चुनाव में सिर्फ 910 रुपये खर्च हुआ। वे अपने समर्थकों के साथ साइकिल से पूरे विधानसभा में घूम-घूम कर प्रचार करते थे। चुनाव के अंतिम समय में पैसे के अभाव में इन्होंने अपनी साइकिल 125 रुपये में चाईबासा के टीनु ठाकुर को बंधक रख दी। चुनाव में जीत हासिल करने के छह महीने बाद पैसा देखकर साइकिल वापस ली। साल 1969 और 072 में भी वे झारखंड पार्टी उम्मीदवार के रूप में चाईबासा सीट से विजयी रहे। इस दौरान बागुन 1970 में बिहार में दारोगा प्रसाद राय के मंत्रिमंडल में वन एवं पर्यावरण और परिवहन मंत्री रहे। बाद में बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार में वर्ष 1971 में वे उत्पाद मंत्री बने।
वर्ष 1977 में बागुन सुम्ब्रई पहली बार जनता पार्टी के सहयोग से झारखंड पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सिंहभूम लोकसभा सीट से विजयी हुए। इसके बाद वर्ष 1980 में वे जनता पार्टी में शामिल हो गए और जनता पार्टी के टिकट पर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। लेकिन 1984 में बागुन सुम्ब्रुई कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद 1984 और 1989 में भी जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष 2000 में चाईबासा सीट से विधायक बने और राबड़ी देवी की सरमार में मंत्री बने। अलग झारखंड राज्य गठन के बाद बागुन सुम्ब्रुई झारखंड विधानसभा के पहले उपाध्यक्ष बने।
बागुन सुम्ब्रुई करीब 40 वर्षों तक सांसद-विधायक और मंत्री रहे, लेकिन संपत्ति बनाने पर कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। जीवनका के अंतिम समय में वे चाईबासा में अपने श्वसुर के घर भाड़े पर रहते थे, लेकिन सातवीं कक्षा तक पढ़े बागुन सुम्ब्रुई अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में कूद गए। वे जयपाल सिंह मुंडा के करीब आए। बाद में उन्होंने अपने इलाके में झारखंड आंदोलन की कमान संभालने के साथ ही ‘बिहारी झारखंड छोड़ो’ का नारा दिया। इस आंदोलन को इलाके में जबरदस्त समर्थन मिला।जबकि पैतृक गांव में खेतीबारी करते। पेंशन की राशि मिलती थी, उसी से उनका गुजर-बसर चलता रहा। अपने से काफी कम उम्र के जनप्रतिनिधियों को को करोड़पति बनते देखकर भी उनमें कोई इर्ष्या का भाव नहीं आता, वे अपने में संतुष्ट थे और लंबी बीमारी के बाद वर्ष 2018 में जमशेदपुर के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया।