आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने कागज से कलाकृतियां बना दी! भीमराज शर्मा ने कारोबार का अलग मॉडल चुना है। यह मॉडल गांवों को देश के बड़े-बड़े शहरों से जोड़ता है। भीमराज गाय के गोबर से कागज बनाते हैं। इसके चलते कागज के लिए पेड़ काटने की जरूरत खत्म हो जाती है। किसानों को गाय के गोबर की भीमराज शानदार कीमत देते हैं। उनसे 10 रुपये किलो के भाव से गीला गोबर खरीदा जाता है। इस गोबर से रोजाना 3,000 शीट कागज का उत्पादन होता है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद जैसे महानगरों में इसकी डिलीवरी होती है। शादी के कार्ड, पेंसिल, डायरी, कैलेंडर, राखी, मास्क जैसे 70 से ज्यादा अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट गोबर से बनाए जाते हैं। कभी लोगों को भरोसा नहीं होता था कि गोबर से कागज भी बनाया जा सकता है। जब इस बारे में भीमराज ने बात की तो लोगों ने उन्हें बावला तक कहा। लेकिन, उन्हें भरोसा था कि ऐसा किया जा सकता है। पेपर प्रिंटिंग का उन्हें पुराना अनुभव था। वह लगातार प्रयोग करते रहे। अंत में उन्हें सफलता मिल ही गई। उन्होंने गोबर से ही बेहतरीन क्वालिटी का पेपर बना लिया। इसके बाद उन्होंने इस टेक्नोलॉजी को पेंटेंट करा लिया। आज अपनी फर्म ‘गौकृति’ के जरिये वह गोबर को वैल्यू चेन के साथ जोड़ चुके हैं। उनके इस मॉडल को सहयोग देने के लिए कई राज्य बाहें खोले खड़े हैं। बड़ी आसानी से अपने उपक्रम से वह 1 करोड़ रुपये का कारोबार कर लेते हैं। आज वो नहीं, पैसा उनके पीछे भाग रहा है। कारोबार को आगे बढ़ाने में उन्हें अपनी बेटी जागृति का भी भरपूर साथ मिल रहा है। नवभारतटाइम्स.कॉम से भीमराज शर्मा ने अपने इस सफर के बारे में खास बातचीत की। भीमराज जयपुर के रहने वाले हैं। गाय की सेवा उनका मिशन था। इस भावना के साथ ही उन्होंने 2017 में गौकृति की शुरुआत की थी। भीमराज शर्मा ने सुना था कि हाथी के गोबर से पेपर बनाया जा सकता है। उन्होंने तभी सोचा कि क्यों न गाय के गोबर से पेपर बनाया जाए। भीमराज कहते हैं, ‘जब शुरू में मैंने इसके बारे में बात की तो किसी को यकीन नहीं हुआ। लोग कहने लगे कि मैं बावला हो गया हूं। लेकिन, इन बातों से मैं जरा सा भी विचलित नहीं हुआ।’
भीमराज को पेपर प्रिंटिंग का पुराना अनुभव था। उन्हें पूरा भरोसा था कि ऐसा किया जा सकता है। पहले उन्होंने दोस्तों और रिश्तेदारों से कुछ पैसा उधार लेने की कोशिश की। जब यह नहीं मिला तो उन्होंने अपनी पूरी जमा पूंजी इसमें झोंक दी। वह यह पैसा बेटी की शादी और अपने रिटायरमेंट के लिए बचा रहे थे। कई लाख निवेश करके उन्होंने 2017 में गौकृति की नींव रखी। उन्होंने गाय के गोबर से पेपर बनाना शुरू किया। फिर इस टेक्नोलॉजी को पेंटेंट करा लिया।
गाय के गोबर से पेपर की पहली शीट काफी निराश करने वाली थी। यह खुरदुरी थी। चिकनापन नहीं था। लोगों ने तब भी उनका मजाक उड़ाया था। फिर उन्होंने और गहन रिसर्च की। अगले कुछ महीने वह सिर्फ इस पेपर टेक्नोलॉजी पर एक्सपेरिमेंट करते रहे। आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई। उन्होंने गाय के गोबर, गोमूत्र और कॉटन वेस्ट से उम्दा क्वालिटी का पेपर तैयार कर लिया। यह 100 फीसदी नैचुरल है।
भीमराज ने बताया कि कोई भी पेपर पेड़ काटे बगैर नहीं बन सकता है। लेकिन, गौकृति का कागज पूरी तरह से वेस्ट आधारित है। इसमें सिर्फ गोबर, गोमूत्र और कॉटन वेस्ट का इस्तेमाल होता है। गाय के गोबर से गौकृति आज सिर्फ पेपर नहीं बनाती है। इसकी मदद से 70 से ज्यादा अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट का निर्माण होता है। देश-विदेश में इन प्रोडक्टों की मांग है। इन प्रोडक्टों में वेडिंग कार्ड, बैंगल बैग, डायरी, कैलेंडर, होली पूजन के लिए किट, राखियां इत्यादि शामिल हैं।
भीमराज 20 साल से पेपर प्रिंटिंग के काम में हैं। राजस्थान ऑफसेट प्रिंटर एसोसिएशन के वह वाइस प्रेसीडेंट हैं। गायों की देखभाल के गिरते स्तर को देखकर वह बहुत दुखी थे। उन्होंने गोबर को सकारात्मक रूप से इस्तेमाल करने का विचार बनाया। भीमराज को भरोसा था कि इससे रूरल इकनॉमी को ग्लोबल इकनॉमी से जोड़ा जा सकता है। उनका एक करोड़ रुपये से ज्यादा का टर्नओवर है। वह 10 रुपये किलो में किसानों से गीला गोबर खरीदते हैं। भीमराज ने दावा किया कि शायद ही कोई किसानों को इस गोबर की इतनी ज्यादा कीमत चुकाता हो। इससे किसानों को भी बहुत फायदा हुआ है। गाय के गोबर को अब वेस्ट की तरह नहीं देखा जाता है। यह बेहद उपयोगी बन चुका है।
कोविड के दौरान भीमराज ने गाय के गोबर से बने मास्क भी बनाए। उन्होंने इन्हें महामारी के दौरान मुफ्त में बांटा। इसी तरह होली में उन्होंने गोबर से बना गुलाल तैयार किया। इसे बनाने में 70 फीसदी गोबर, 30 फीसदी आरारोट और इत्र का इस्तेमाल किया गया। वह बताते हैं कि 2016 से पहले कोई गाय के गोबर की बात तक नहीं करता था। लेकिन, अब इस सोच में बदलाव आया है। गौकृति 70 अलग-अलग तरह के उत्पाद सिर्फ गाय के गोबर से बना रही है।
भीमराज ने खासतौर से गोबर से बने शादी के कार्डों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अमूमन इन्हें फेंक दिया जाता है। लेकिन, गौकृति के वेडिंग कार्डों को बनाने में 12 तरह के बीजों का इस्तेमाल किया जा जाता है। इन्हें 12 अलग-अलग महीनों के हिसाब से डाला जाता है। जब लोग इन कार्डों को फेंकते हैं तो ये पौधों में विकसित हो जाते हैं। इसका कारण यह होता है कि पहले से ही कार्ड में गोबर होता है जो खाद का काम करता है। इसके कारण बीज आसानी से पनप जाता है। इस तरह के कार्ड की बहुत ज्यादा डिमांड है। कार्ड की प्रिंटिंग में जो भी चीजें इस्तेमाल होती हैं वे बायोडिग्रेडेबल होती हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान होने का भी कोई रिस्क नहीं रहता है।