Saturday, March 15, 2025
HomeIndian News20 सालों बाद डॉलर के सामने यूरो धड़ाम, अब भारत का क्या...

20 सालों बाद डॉलर के सामने यूरो धड़ाम, अब भारत का क्या होगा?

20 सालों बाद डॉलर ने सभी मुद्राओं को जमीन पर लाकर रख दिया है! करेंसी मार्केट में पिछले 20 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है, जब डॉलर के सामने यूरो धड़ाम से गिर पड़ा है और पश्चिमी देशों ने जो रूस पर प्रतिबंध लगाया था, उसका उल्टा ही असर हो गया है। पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक डॉलर के सामने यूरो करेंसी का वैल्यू गिर गया है और एक डॉलर के सामने यूरो में 0.4 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है और एक डॉलर के मुकाबले अब यूरो का दाम कम हो गया है, जिसके बाद अब यूरो क्षेत्र में आर्थिक मंदी की आशंका काफी ज्यादा बढ़ चुकी है, वहीं इसका भारतीय रुपये पर भी गंभीर प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना दिखाई दे रही है, क्योंकि पहले ही एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का वैल्यू 80 तक पहुंच गया है।दरअसल, यूरोपीय देशों ने सोचा था, कि यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस पर प्रतिबंध लगाकर वो पुतिन को सख्त से सख्त सजा देगा, लेकिन यूरोप की पूरी प्लानिंग बैकफायर कर गई हैं, यानि, यूरोप पर इन प्रतिबंधों का उल्टा असर हो गया है और यही वजह है, कि साल 2002 के बाद पहली बार डॉलर के सामने यूरो कमजोर पड़ गया है। वहीं, अमेरिकी फेडरल बैंक्स, ये जानते हुए भी कि देश आर्थिक मंदी में फंस सकता है, वो ब्याज दरों में इजाफा कर रहा है, जबकि यूरोपीय सेंन्ट्रल बैंक ने ब्याज दरों में इजाफा करने से फिलहाल इनकार कर दिया है। जिसका असर ये हो रहा है, कि निवेशकों को यूरोप में अपने पैसे निवेश करने से ज्यादा फायदा अमेरिका में निवेश करने से होगा, लिहाजा निवेशक यूरोप से पैसे निकालकर अमेरिका में निवेश कर रहे हैं। आपको बता दें कि, जब केन्द्रीय बैंक्स ब्याज दरों में इजाफा करती हैं, तो करेंसी का वैल्यू बढ़ता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय निवेशक उस मुद्रा में निवेश कर ज्यादा रिटर्न कमाते हैं। लिहाजा, आर्थिक मंदी का ताप अब यूरोप महसूस करने लगा है।

यूरो के गिरने का होगा भारी असर

वहीं, हाल के महीनों में डॉलर भी मजबूत हुआ है और अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और वैश्विक उथल-पुथल के समय में डॉलर में निवेश करना निवेशकों को सुरक्षित मुनाफे का सौदा लग रहा है, लिहाजा डॉलर मजबूत होता जा रहा है और यूरो पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है। वहीं, यूरो के कमजोर होने का मतलब ये हुआ, कि अब यूरोपीय देशों से सामान आयात करना और भी ज्यादा महंगा हो जाएगा, खासकर कच्चे तेल जैसे डॉलर में कीमत वाले सामान। यह यूरोजोन में और भी अधिक मुद्रास्फीति में योगदान दे सकता है, जो पहले से ही जून के लिए 8.6% पर चल रहा है। ईसीबी के एक प्रवक्ता ने कहा कि, यह ‘किसी विशेष विनिमय दर को लक्षित नहीं करता है। हालांकि हम मूल्य स्थिरता के लिए अपने जनादेश के अनुरूप मुद्रास्फीति पर विनिमय दर के प्रभाव के प्रति हमेशा चौकस रहते हैं।’ रिपोर्ट के मुताबिक, बैंक अगले हफ्ते ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू कर सकता है।बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की शुरूआत के बाद से डॉलर के मुकाबले यूरो लगभग 12% गिर गया है। जबकि, इतिहास की बात करें, तो डॉलर के मुकाबले यूरो का वैल्यू हमेशा से ही मजबूत रहा है। 1999 में मुद्रा के लॉन्च के बाद के वर्षों में यह डॉलर से नीचे था, लेकिन पिछली बार डॉलर के नीचे कारोबार करने का समय दिसंबर 2002 था। आपको बता दें कि, यूरोजोन में, यानि, यूरो मुद्रा में कारोबार करने वाले देशों में फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली, ग्रीस और पुर्तगाल जैसे देश हैं। और अभी हो ये रहा है, कि यूरोजोन वाले क्षेत्रों से निवेशक अपने पैसे निकालकर उसे डॉलर में निवेश कर रहे हैं और ऐसी आशंका है, कि डॉलर के मुकाबले यूरो और भी कमजोर हो सकता है। यानि, इसका साफ मतलब है, कि इन देशों की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई हैं और इन देशों में आर्थिक मंदी तेजी से आने की आशंका जताई गई है। उदाहरण के लिए, तेल और गैस का भुगतान पारंपरिक रूप से डॉलर में किया जाता है, और इन दोनों वस्तुओं की कीमत हाल के महीनों में यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध के परिणामस्वरूप बढ़ गई है। इसका मतलब है कि डॉलर में सामान खरीदने के लिए ज्यादा यूरो का भुगतान करना होगा, यानि महंगाई बढ़ जाएगी।

रूस पर प्रतिबंध लगाना पड़ गया उल्टा

यूरोपीय देशों के साथ साथ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पहले से ही कोविड महामारी की वजह से प्रभावित रही है और इसका असर यूरोपीय देशों पर भी काफी पड़ा है, लेकिन जब रूस के खिलाफ यूरोपीय देशों ने प्रतिबंधों का ऐलान करना शुरू किया, तो इसने यूरोप पर ही उल्टा असर दिखाना शुरू कर दिया। दरअसल, यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहते हैं और जब उन्होंने रूस से उर्जा आयात पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया, तो पूरी दुनिया में तेल के दाम बढ़ने लगे और कई यूरोपीय देशों ने किसी और देश के माध्यम से रूसी तेल खरीदना शुरू कर दिया, जिससे तेल के दाम और बढ़े, जिसकी वजह से इन देशों को तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर का भुगतान करना पड़ा। जिसकी वजह से यूरोपीय देश के अंदर महंगाई बढ़ने लगी और फिर निवेशकों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया, कि क्या उन्हें यूरोप में निवेश करना चाहिए या नहीं?

क्या हुआ प्रभाव?

यूरो के मूल्य में गिरावट का प्रभाव डॉलर के मुकाबले थोड़ा अलग होता है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यवसाय, विदेशी व्यापार और ऊर्जा पर कितना निर्भर है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बीपीफ्रेंस के रिसर्च डायरेक्टर फिलिप मुट्रीसी ने कहा कि, ‘यूरो क्षेत्र के बाहर निर्यात करने वाली कंपनियां यूरो की गिरावट से लाभान्वित होती हैं क्योंकि उनकी कीमतें अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाती हैं, इसके विपरीत, आयात-उन्मुख व्यवसाय नुकसान में हैं।’ स्थानीय कारीगरों के मामले में, जो कच्चे माल और ऊर्जा पर निर्भर हैं, लेकिन बहुत कम निर्यात करते हैं, उन देशों के लिए यूरो का कमजोरो होना काफी महंगा हो सकचता है। यूरो की गिरती एक्सचेंज रेट से सबसे बड़ा विजेता निर्यात-उन्मुख विनिर्माण क्षेत्र जैसे एयरोस्पेस, ऑटोमोबाइल, लक्जरी सामान और रसायन उद्योग हैं। हालांकि, इस बीच बाजार के कई खिलाड़ी विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव से बचने के लिए लाभकारी दरों पर अग्रिम रूप से विदेशी मुद्रा खरीदने लगते हैं, जिनसे उन्हें आगे फायदा होता है।

कई एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अमेरिका के उकसावे में आकर यूरोपीय देशों ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। दरअसल, रूस पर प्रतिबंधों की बारिश करने में सबसे आगे तो अमेरिका रहा है, लेकिन यूरोपीय देश अमेरिका के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे, लेकिन अमेरिका आगे निकल गया और यूरोप फंस गया है। 1992 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब जर्मनी को व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है, कि खुद अमेरिका के सामने आर्थिक मंदी का खतरा है और अगले एक साल में अमेरिका आर्थिक मंदी में फंस सकता है, लेकिन एक्सपर्ट्स बताते हैं, कि ऐसी स्थिति में यूरोपीय देशों की स्थिति पूरी तरह से चौपट हो सकती है। इस वक्त एक और स्थिति ये है, कि दुनिया के ज्यादातर देशों की करेंसी डॉलर के मुकाबले गिर रही हैं और भारतीय रुपया ऐतिहासिक स्तर पर गिरकर 80 प्वाइंट को पार कर गया है, जबकि डॉलर अभी भी मजबूत हो रहा है और एक्सपर्ट्स का कहना है, कि निवेशकों का विश्वास अभी भी डॉलर पर सबसे ज्यादा है, इसीलिए डॉलर मजबूत हो रहा है, जबकि बाकी करेंसी कमजोर हो रही हैं, यहां तक चीन की करेंसी भी गिर चुकी है।

अगर डॉलर के सामने बाकी देशों की करेंसी को देखें, तो बाकी देशों की करेंसी भारतीय रुपये के मुकाबले ज्यादा प्रभावित हुई हैं और भारतीय रुपया अभी भी अन्य देशों की करेंसी के मुकाबले ज्यादा बेहतर परफॉर्म कर रहा है। इसे इस तरह से काफी आसानी से समझा जा सकता है, कि इस साल की शुरूआत में एक यूरो का वैल्यू करीब 90 रुपये के बराबर हो रहा था, लेकिन आज की तारीख में भारतीय रुपया, यूरो के मुकाबले मजबूत हो गया है और एक यूरो का वैल्य अब 90 से घटकर 80 रुपये तक आ गया है। यानि, इसका मतलब ये हुआ, कि यूरो क्षेत्र, जैसे फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे देशों से सामान आयात करना भारत के लिए मुनाफे का सौदा हो सकता है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments