एक ऐसी घटना जिसमें एक नाबालिक ने 7 हत्याएं कर डाली! दरवाजे के गेट पर अचानक खटखट होती है, हर दिन की तरह ये दिन भी अब तक पुणे के राठी परिवार के लिए सामान्य दिन की तरह ही गुजर रहा था। दबे पैर राठी परिवार में मौत दस्तक दे रही थी। मौत और राठी परिवार के बीच एक लकड़ी के गेट का फासला था। काश उस दिन वो गेट दीवार बन गया होता, काश उस दिन राठी परिवार के घर पर ताला होता है, काश राठी परिवार का कोई भी सदस्य दरवाजा ही नहीं खोलता, लेकिन उस दिन कोई भी काश हकीकत में नहीं बदला। घर का गेट खोलते ही एक नाबालिग हत्यारे ने अपने दो साथियों की मदद से एक के बाद एक राठी परिवार की 5 महिलाओं और 2 बच्चों को चाकू से गोदकर नींद की मौत सुला दिया। मरने वालों में राठी परिवार की नौकरानी भी शामिल थी और एक गर्भवती महिला भी। घर में चोरी के मकसद से घुसे नाबालिग हत्यारे को ना ही डर से सहमे बच्चों पर तरस आया और ना ही औरतें की चीख पुकार ही उसका कलेजा चीर पाई। उसके सिर पर खून इस कदर सवार हो चुका था कि चाकू की धार गर्दनों पर धड़धड़ा चल रही थी। फर्श पर पानी की तरह खून बिखर रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर ना तो कोई शिकन थी और ना पसीना। यह दर्दनाक वारदात अगस्त, 1994 की है। आज 28 साल बाद यह मामला एक फिर चर्चा में है। दरअसल इस मामले के मुख्य आरोपी नारायण चेतनराम चौधरी की फांसी की सजा खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वारदात के वक्त आरोपी की उम्र महज 12 साल थी, वह उस वक्त नाबालिग था।
इस जघन्य अपराध के दोषी नारायण चेतनराम चौधरी को सितंबर 1994 में राजस्थान से गिरफ्तार किया गया था। उधर इस मामले का एक आरोपी सरकारी गवाह बन गया था और उसने पुलिस को बताया कि चौधरी ने ही हत्याकांड को अंजाम दिया था। घर में चोरी के मकसद से घुसे नाबालिग हत्यारे को ना ही डर से सहमे बच्चों पर तरस आया और ना ही औरतें की चीख पुकार ही उसका कलेजा चीर पाई। उसके सिर पर खून इस कदर सवार हो चुका था कि चाकू की धार गर्दनों पर धड़धड़ा चल रही थी। फर्श पर पानी की तरह खून बिखर रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर ना तो कोई शिकन थी और ना पसीना। यह दर्दनाक वारदात अगस्त, 1994 की है। आज 28 साल बाद यह मामला एक फिर चर्चा में है। दरअसल इस मामले के मुख्य आरोपी नारायण चेतनराम चौधरी की फांसी की सजा खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया है।सितंबर 2000 के अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने हत्या मे शामिल आरोपियों की तुलना खून का स्वाद चखने वाले एक पागल जानवर से की थी। सितंबर 2000 में मुंबई हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा की पुष्टि की थी। चेतनराम के अलावा एक और दोषी ने साल 2016 में कोर्ट में दया याचिका दाखिल की थी। बाद में सजा-ए-मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था। वहीं चेतनराम ने अपनी दया याचिका को वापस ले लिया था और सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका लगाई थी।
चार्टशीट में पुलिस ने दावा किया था कि अपराध के वक्त मुख्य आरोपी नारायण चेतनराम चौधरी की उम्र 20 से 22 साल के बीच थी। वहीं उसके डेट ऑफ बर्थ सर्टिफिकेट के मुताबिक उसकी उम्र 12 साल 6 महीने थी। दरअसल, सर्टिफिकेट पर उसका नाम कुछ और लिखा हुआ था। इस वजह से उसकी असली उम्र को लेकर कन्फ्यूजन था। सुप्रीम कोर्ट आरोपी के सरकारी डॉक्यूमेंट्स के आधार पर इस नतीजे पर पहुंची कि हत्या के समय वो 12 साल का था।
सुप्रीम कोर्ट ने शख्स को मामले की सुनवाई के बाद फौरन रिहा करने का आदेश दे दिया।घर में चोरी के मकसद से घुसे नाबालिग हत्यारे को ना ही डर से सहमे बच्चों पर तरस आया और ना ही औरतें की चीख पुकार ही उसका कलेजा चीर पाई। उसके सिर पर खून इस कदर सवार हो चुका था कि चाकू की धार गर्दनों पर धड़धड़ा चल रही थी। फर्श पर पानी की तरह खून बिखर रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर ना तो कोई शिकन थी और ना पसीना। यह दर्दनाक वारदात अगस्त, 1994 की है। आज 28 साल बाद यह मामला एक फिर चर्चा में है। दरअसल इस मामले के मुख्य आरोपी नारायण चेतनराम चौधरी की फांसी की सजा खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया है। 28 साल से जेल में बंद नारायण चेतनराम चौधरी को रिहा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब इस शख्स ने वारदात को अंजाम दिया था तब उसकी उम्र महज 12 साल थी। मतलब उस समय वह नाबालिग था। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की दलील और साक्ष्यों के बाद सहमति जताई और शख्स को रिहा कर दिया। जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने यह आदेश सुनाया है।