Monday, April 28, 2025
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आखिर अमेरिका से कैसे बचा क्योटो?

एक समय ऐसा था जब अमेरिका ने क्योटो पर हमला किया था! हिरोशिमा और नागासाकी, जब भी जापान के इन दो शहरों का नाम हम सुनते हैं तो हमारे दिमाग में क्या आता है? आग का दरिया, मशरूम जैसा धुएं का बादल और तबाही लेकिन क्या आप जानते हैं 6 अगस्त को हिरोशिमा पर बम गिराने के बाद जापान का नागासाकी शहर अमेरिका की टारगेट लिस्ट में नहीं था। दरअसल अमेरिकी बमवर्षक विमान जापान के कोकुरा शहर पर परमाणु बम गिराने जा रहे थे लेकिन कुछ कारणों से उन्हें अपना टारगेट बदलना पड़ा। 9 अगस्त 1945 को कोकुरा शहर पर बादल छाए थे और हिरोशिमा धमाके के बाद काले धुएं ने इस शहर के आसमान को घेर रखा था। ये धुआं और बादल ही कोकुरा के लिए रक्षक बने और अमेरिकी पायलटों ने अपने सेकेंडरी टारगेट नागासाकी पर ‘फैटमैन बम’ गिराने का फैसला किया। लेकिन आज आपको कहानी सुनाएंगे जापान के एक तीसरे शहर की जो अमेरिका की टारगेट लिस्ट में शामिल था। इस शहर का नाम है क्योटो जिसके परमाणु हमले से बचने की कहानी बेहद दिलचस्प है।

वह 1920 का दशक था, कहा जाता है कि अमेरिका के युद्ध मंत्री हेनरी एल. स्टिमसन अपनी पत्नी के साथ हनीमून मनाने के लिए जापान के क्योटो शहर आए थे। इस शहर के खूबसूरत नजारों ने उनके मन को मोह लिया और वह इसकी सुंदरता और संस्कृति को तबाह होते नहीं देखना चाहते थे। अमेरिका ने जब परमाणु हमले के लिए शहरों की लिस्ट बनाई तो स्टिमसन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन के सामने क्योटो को इस लिस्ट से हटाने की मांग को लेकर अड़ गए।

द्वितीय विश्व युद्ध अपने अंजाम तक पहुंच रहा था। लेकिन जापान झुकने के लिए तैयार नहीं था। अमेरिका ने जापान के खिलाफ अपने मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत तैयार दुनिया के पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने का फैसला किया। 27 अप्रैल 1945 को अमेरिका की टारगेट कमेटी की एक मीटिंग हुई। इसमें कुछ मानक तय किए गए जिनके आधार पर टारगेट का चुनाव किए गए। तय किया गया कि परमाणु हमले के लिए चुना जाने वाला शहर आकार में बड़ा होना चाहिए और इसकी आबादी भी अच्छी खासी होनी चाहिए।

सबसे अहम बात इस शहर में सैन्य प्रतिष्ठान मौजूद हों ताकि जापान को युद्ध में कमजोर किया जा सके। इसमें टोक्यो को संभवतः इसलिए नहीं चुना गया क्योंकि उस पर बमबारी अमेरिकी वायुसेना उसे पहले ही बर्बाद कर चुकी थी। लंबी मशक्कत के बाद करीब 17 जापानी शहर चुने गए। टारगेट लिस्ट में हिरोशिमा टॉप पर इसलिए था क्योंकि अमेरिकी हमलों से इस शहर को अब तक सबसे कम नुकसान पहुंचा था। मैनहट्टन प्रोजेक्ट के प्रमुख जनरल लेजली ग्रोव्स ने साफ कर दिया कि टारगेट लिस्ट में पहले नंबर पर हिरोशिमा और दूसरे नंबर पर क्योटो और तीसरे नंबर पर योकोहोमा होगा।

कहा जाता है कि क्योटो को परमाणु वैज्ञानिक और सैन्य अधिकारी इसलिए निशाना बनाना चाहते थे क्योंकि इस शहर में कई प्रमुख विश्वविद्यालय थे और कई बड़े उद्योग यहां से संचालित होते थे। इतना ही नहीं इस शहर में 2000 बौद्ध मंदिर और कई ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद थीं। जापान के लिए क्योटो की अहमियत को देखते हुए बैठकों में इसे पहला टारगेट तय किया गया। साल 1945 में हेनरी एल स्टिमसन अमेरिका के युद्ध मंत्री थे और युद्ध से जुड़े सभी फैसलों में उनकी भूमिका प्रमुख रहती थी।

अमेरिकी राष्ट्रपति के करीबी होने की वजह से वह कई फैसलों को टालने और बदलने की भी क्षमता रखते थे। तारीख थी 30 मई 1945, अमेरिका में एक और मीटिंग हुई जिसमें स्टिमसन ने ग्रोव्स से साफ शब्दों में कह दिया, ‘मैं नहीं चाहता कि क्योटो पर बम गिराया जाए।’ अब एक तरफ स्टिमसन थे और दूसरी तरफ तमाम सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक जो क्योटो को टारगेट लिस्ट से हटाने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि बात काफी आगे निकल चुकी थी। आखिर स्टिमसन ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन के सामने गुहार लगाई। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि मैंने राष्ट्रपति को सुझाव दिया कि जापान के लोग क्योटो के साथ भावनात्मक रूप से मजबूती से जुड़े हुए हैं और अगर इस शहर पर बम गिराया गया तो भविष्य में दोनों देशों के संबंध कभी सुधर नहीं पाएंगे और रूस इसका फायदा उठा सकता है।

स्टिमसन ने लिखा, ‘राष्ट्रपति मेरी बात से सहमत थे।’ स्टिमसन की क्योटो के साथ कुछ निजी यादें भी जुड़ी थीं। इस शहर के रूप में वह उन पलों को भी बर्बाद होने से बचाना चाहता थे जिन्हें उन्होंने हनीमून के दौरान अपनी पत्नी के साथ क्योटो में बिताया था। आखिरकार वही हुआ जो स्टिमसन चाहते थे और क्योटो का नाम अमेरिका की टारगेट लिस्ट से हट गया। इसमें युद्ध मंत्री के रूप में उनके प्रभाव और राष्ट्रपति के साथ उनके करीबी संबंधों ने बड़ी भूमिका निभाई। क्योटो की खूबसूरती, संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों ने 1945 में इस शहर की रक्षा की लेकिन नागासाकी अमेरिकी प्रकोप से बच न सका।

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