बद्रीनाथ धाम के कपाट कैसे खुलते हैं आज हम आपको यह बताने वाले हैं! भू-बैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि बसंतपंचमी के शुभ अवसर पर राजपुरोहित द्वारा घोषित कर दी गयी है। इस परंपरा में एक रोचक और पौराणिक परंपरा यह भी है राजा की जन्मपत्री के अनुसार ही धाम के कपाट खुलने का शुभ मुहूर्त तय किया जाता है। दरअसल मान्यता है कि जनता के लिए पहले राजा ही भगवान हुआ करते थे और ग्रहों की अनुकूलता को देख कर ही राजपुरोहित तिथि तय करते थे। वर्तमान में भी इसी परंपरा का अनुपालन किया जा रहा है। राजशाही के समय जनता राजा को बोलांदा बद्रीश महाराज कहती थी और उनको भगवान का दर्जा देती थी। भगवान के प्रतिनिधि के रूप में आज भी राजा की जन्मपत्री देख कर ही कपाट खुलने की तिथि तय की जाती है।
विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि की बसंत पंचमी के दिन नरेंद्रनगर स्थित राजमहल से घोषित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। परंपरा अनुसार राजपुरोहित आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल ने पंचांग गणना के पश्चात विधि-विधान से कपाट खुलने की तिथि का विनिश्चय किया तथा महाराजा मनुजयेंद्र शाह ने कपाट खुलने की तिथि की घोषणा की। राजपुरोहित नरेंद्र नगर राजमहल में महाराजा मनुजेंद्र शाह की जन्मपत्री देख कर बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय करते हैं।
इस संबंध में बीकेटीसी मीडिया प्रभारी ने बताया कि राजशाही के समय में बदरीनाथ मंदिर की व्यवस्था राजमहल से ही देखी जाती थी। तब जनता राजा को बदरीनाथ, बोलांदा बद्रीश महाराज कहती थी। तब से राजा को भगवान बदरीविशाल के प्रतिनिधि माना जाता है। तभी से राजा की कुंडली के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता को देखा जाता है। ज्योतिष का आंकलन किया जाता है कि यात्रा कैसी रहेगी और कैसा इसका प्रभाव रहेगा यह सब देखा जाता था।
पंचांग गणना होती है तो यह उनकी जन्मपत्री के अनुसार वर्तमान में भी शुभमुहूर्त देख कर तिथि की घोषणा कर दी जाती है। उन्होंने बताया कि भगवान बदरी विशाल ही टिहरी नरेश के कुल देवता थे और जनता भी राजा को ही भगवान मानती थी और राजा को बोलांदा बद्रीश महाराजा भी कहा जाता था।राजशाही के समय में बदरीनाथ मंदिर की व्यवस्था राजमहल से ही देखी जाती थी। तब जनता राजा को बदरीनाथ, बोलांदा बद्रीश महाराज कहती थी। तब से राजा को भगवान बदरीविशाल के प्रतिनिधि माना जाता है। तभी से राजा की कुंडली के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता को देखा जाता है। ज्योतिष का आंकलन किया जाता है कि यात्रा कैसी रहेगी और कैसा इसका प्रभाव रहेगा यह सब देखा जाता था।पंचांग गणना होती है तो यह उनकी जन्मपत्री के अनुसार वर्तमान में भी शुभमुहूर्त देख कर तिथि की घोषणा कर दी जाती है। उन्होंने बताया कि भगवान बदरी विशाल ही टिहरी नरेश के कुल देवता थे और जनता भी राजा को ही भगवान मानती थी और राजा को बोलांदा बद्रीश महाराजा भी कहा जाता था। उनके नियंत्रण में ही इन सभी परंपराओं का पालन किया जाता था। इसीलिए वे ही तिथि की घोषणा करते थे। आज भी इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। उनके नियंत्रण में ही इन सभी परंपराओं का पालन किया जाता था। इसीलिए वे ही तिथि की घोषणा करते थे। आज भी इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है।
बसंत पंचमी के दिन कपाट खुलने की तिथि के साथ-साथ गाड़ू घड़ा परंपरा की भी तिथि घोषित की जाती है। कपाट खुलने की प्रक्रिया में परंपरा को भी महत्वपूर्ण माना जाता है।राजशाही के समय में बदरीनाथ मंदिर की व्यवस्था राजमहल से ही देखी जाती थी। तब जनता राजा को बदरीनाथ, बोलांदा बद्रीश महाराज कहती थी। तब से राजा को भगवान बदरीविशाल के प्रतिनिधि माना जाता है। तभी से राजा की कुंडली के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता को देखा जाता है। ज्योतिष का आंकलन किया जाता है कि यात्रा कैसी रहेगी और कैसा इसका प्रभाव रहेगा यह सब देखा जाता था।राजशाही के समय में बदरीनाथ मंदिर की व्यवस्था राजमहल से ही देखी जाती थी। तब जनता राजा को बदरीनाथ, बोलांदा बद्रीश महाराज कहती थी। तब से राजा को भगवान बदरीविशाल के प्रतिनिधि माना जाता है। तभी से राजा की कुंडली के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता को देखा जाता है। ज्योतिष का आंकलन किया जाता है कि यात्रा कैसी रहेगी और कैसा इसका प्रभाव रहेगा यह सब देखा जाता था। भगवान बदरीविशाल के शीत निद्रा से उठने के बाद मानव पूजा के साथ कपाट खुलते समय सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। नरेंद्र नगर राजमहल में महारानी की अगुवाई में तिल का तेल निकाला जाता है। जिसे डिम्मर गांव के पुजारी कपाट खुलने के साथ बद्री विशाल के अभिषेक में इस्तेमाल करते हैं।