आखिर फिंगरप्रिंट के जरिए मुजरिम को कैसे पकड़ा जाता है?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि फिंगरप्रिंट के जरिए मुजरिम को कैसे पकड़ा जा सकता है! ये सनसनीखेज डकैती की कहानी थी। क्राइम सीन पर उस थर्मोकोल बॉक्स के चारों तरफ लगे टेप पर फिंगरप्रिंट्स के निशान थे। पुलिस हैरान-परेशान थी। पिछले साल हुई इस डकैती ने प्रशासन को हिलाकर रख दिया था। लेकिन फिंगरप्रिंट्स के निशान ने पुलिस की मुश्किल हल कर दी और इस केस का खुलासा हो गया। इसी तरह साउथ कैंपस में फिंगरप्रिंट्स के निशान के आधार पर एक 17 साल पुरानी डकैती और हत्या के मामले का खुलासा हुआ था। जासूस भी क्राइम सीन पर आकर फिंगरप्रिंट्स के निशान लेते हैं। ये एक अनोखा बायोलॉजिकल निशान होते हैं, जो अपराध को अपराधी से जोड़ता है। दिल्ली पुलिस इस अनोखी तकनीक पर पर आजकल जबरदस्त भरोसा कर रही है। इससे केवल अपराध का ही खुलासा नहीं होता है बल्कि अपराधियों को भी पकड़ा जा रहा है। पिछले साल कई सालों से अटके केसों का भी खुलासा हुआ। हाल में ही जारी 2022 पर ‘फिंगरप्रिंट्स इन इंडिया’ के डेटा में नेशनल फिंगरप्रिंट्स पहचान व्यवस्था की जानकारी मिलती है। दिल्ली में 3 लाख 74 हजार 061 लोगों का डेटाबेस है। पिछले साल तक फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो ने सजा पाए 1 लाख 19 हजार 611 लोगों के प्रिंट्स लिए थे।

रिपोर्ट में ये बताया गया है कि इसके जरिए कई स्लिप ब्यूरों के पास मौजूद प्रिंट्स के जरिए संदिग्ध का आपराधिक इतिहास की जानकारी दिल्ली फिंगरप्रिंट्स ब्यूरों को मिले। डेटा से पता जलता है कि 2,269 फिंगरप्रिंट्स सजायाफ्ता लोगों के थे। इन लोगों में 1,095 लोगों के प्रिंट्स पिछले साल ही लिए गए थे। इसके अलावा हत्या का प्रयास मामले में भी बड़े पैमाने पर प्रिंट्स जुटाए गए हैं।

फिंगरप्रिंट्स विशेषज्ञ करीब 17,564 क्राइम सीन पर सबूत तलाशने में गए करीब और 2022 में करीब 1,530 केसों में 5,478 चांस प्रिंट्स लिए थे। चांस प्रिंट में पैर, हथेली, अंगुली, पैर का अंगूठा, जूते, घटनास्थल पर पड़े चप्पल या अन्य वस्तुओं पर पड़े निशान लिए जाते हैं। 2021 की तुलना में 2022 में प्रिंट्स लेने की संख्या 50 फीसदी ज्यादा रहे। इसके अलावा ब्यूरो ने 137 विदेशियों के फिंगरप्रिंट्स लिए। दिल्ली फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो ने 2022 में 45 केसों में 1,191 प्रिंट्स लिए। 14 मामलों में ब्यूरो एक्सपर्ट गवाह के तौर पर कोर्ट में उपस्थित हुआ था। फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की स्थाना 1987 में हुई थी। ये क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त के नेतृत्व में काम करता है। एक एसीपी रैंक के अधिकारी इसके इंचार्ज होते हैं। इस वक्त दिल्ली ब्यूरों के पास 9 डिस्ट्रिक्ट मोबाइल टीम है जो क्राइम सीन पर जांच के लिए जाते हैं। विशेष पुलिस आयुक्त क्राइम रवींद्र यादव ने बताया कि फिंगरप्रिंट्स विश्लेषण तकनीक से आरोपियों की पहचान की सिस्टम को और मजबूती मिली है। चांस प्रिंट्स के जरिए कई केसों का खुलासा हुआ और लंबे अरसे से अटके केस भी साल्व हुए हैं।

एक अधिकारी ने बताया कि प्रिंट्स को तीन भागों में बांटा जाता है। अपराध वाले घटनास्थल की। यहां पर आपको अंगलुओं के निशान मिलते हैं जिसे आप नंगी आंखों से भी देख सकते हैं। इसके अलावा कुछ वैसे पैरों के प्रिंट्स होते हैं जिसे साफ देखा जा सकता है। जैसे पैर में कीचड़ लगा होना, पेंट, ग्रीज, खून आदि हाथ में लगा होना। इसके बाद प्लास्टिक प्रिंट्स होता है। ये 3डी तरीके का का होता है। इसमें बटर, साबुन या वैक्स जैसी चीजें होती हैं। सबसे मुश्किल वैसे प्रिंट्स को ढूंढना होता है जो अप्रत्यक्ष होता है। इसे ढूंढने में काफी वक्त लगता है। 3,74,061 फिंगरप्रिंट्स डेटाबेस 2022 में दिल्ली से जुटाए गए। 1,19,611 फिंगरप्रिंट्स स्लिप पिछले साल सजायाफ्ता लोगों के लिए गए थे। 2022 में 1,530 केसों में 5,478 चांस प्रिंट्स लिए गए थे। 2022 में अपराध से संबंधित दस्तावेज में प्रिंट्स लेने की संख्या में 57% बढ़त देखने को मिली।आपराधिक इतिहास की जानकारी दिल्ली फिंगरप्रिंट्स ब्यूरों को मिले। डेटा से पता जलता है कि 2,269 फिंगरप्रिंट्स सजायाफ्ता लोगों के थे। इन लोगों में 1,095 लोगों के प्रिंट्स पिछले साल ही लिए गए थे। इसके अलावा हत्या का प्रयास मामले में भी बड़े पैमाने पर प्रिंट्स जुटाए गए हैं। कीर्ति नगर में 17 साल पुराना डकैती का मामला. 2016 में दिल्ली के साउथ कैंपस में हत्या का अनसुलझा मामला, हाल में ही जारी 2022 पर ‘फिंगरप्रिंट्स इन इंडिया’ के डेटा में नेशनल फिंगरप्रिंट्स पहचान व्यवस्था की जानकारी मिलती है। दिल्ली में 3 लाख 74 हजार 061 लोगों का डेटाबेस है। पिछले साल तक फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो ने सजा पाए 1 लाख 19 हजार 611 लोगों के प्रिंट्स लिए थे।2022 में करोल बाग में डकैती का मामला चांस प्रिंट्स के जरिए सुलझा। इसमें थर्मोकॉल बॉक्स पर पड़े अंगुलियों के निशान से अपराधी का खुलासा हुआ। 2022 में दिल्ली के सदर बाजार में सेंधमारी केस का खुलासा लकड़ी के टेबल पर पड़े चांस प्रिंट्स से हुआ।