आज हम आपको बताएंगे कि आखिर सुरंग कैसे बनाई जाती है… आपने कई बार बड़ी-बड़ी सुरंगे जरूर देखी होगी… पहाड़ों का सीन चीरकर सुरंग का निर्माण किया जाता है, कई बार यह लगता है कि शायद यह सुरंग इंसानों के द्वारा हाथों से खुद ही गई है, तो कई बार बड़ी-बड़ी मशीन भी दिखाई जाती है… लेकिन सवाल ये कि आखिर यह बड़ी-बड़ी सुरंग खोदी कैसे कैसे जाती है और इसमें किस तकनीकी का प्रयोग किया जाता है… तो आज हम आपको इस बारे में जानकारी देने वाले हैं!आपको बता दें कि हमारे देश ने इंसानों के लिए सबसे मुश्किल जगहों पर पहाड़ों का सीना चीरकर सुरंगें बनाई हैं। ये सुरंगें ऊंचे हिमालय से लेकर अरब सागर की गहराइयों तक जाती हैं। बीते साल उत्तराखंड के सिलक्यारा में एक भयानक सुरंग हादसा हुआ था। इस हादसे में 41 मजदूर 17 दिन तक एक सुरंग में फंसे रहे, राहत की बात यह है कि सभी मजदूरों को कड़ी मशक्कत के बाद सुरंग से बाहर निकाल लिया गया था। इस हादसे के बाद सुरंगों के निर्माण को लेकर हर किसी के मन में जिज्ञासा बढ़ी है कि आखिर सुरंग का निर्माण कैसे किया जाता है और इसमें किस तकनीकी का प्रयोग किया जाता है…. तो आज हम आपको इसी बारे में जानकारी दे रहे हैं….. बता दें कि ऊंचे-ऊचे पहाड़ों पर सुरंग बनाने के लिए ड्रिल और ब्लास्ट विधि (DBM) का इस्तेमाल किया जाता है। यह तकनीक काफी रिस्की होती है। कभी-कभी ब्लास्ट के दौरान चट्टान का बड़ा हिस्सा खिसक जाता है और आसपास के घरों में दरार भी आ जाती है। इसके अलावा सुरंग-बोरिंग मशीन (TBM) से भी सुरंग बनाई जाती है। ड्रिल और ब्लास्ट विधि में चट्टान में छेद कर विस्फोटक भरा जाता है और फिर विस्फोट से चट्टान तोड़ी जाती है। जबकि सुरंग-बोरिंग मशीन विधि में मशीनों के जरिए चट्टान में छेद किया जाता है।
ये ड्रिल और ब्लास्ट विधि की तुलना में मंहगी तो है , लेकिन काफी सुरक्षित भी है। वहीं, न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मैथड सुरंग खोदने का एक पारंपरिक तरीका है। इसका इस्तेमाल सबसे पहले 1962 में ऑस्ट्रिया के रैजबिज ने किया था। न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मैथड का इस्तेमाल आम तौर पर उन इलाकों में किया जाता है, जहां पर टर्नल बोरिंग मशीन से सुरंग बनाना असंभव होता है। बता दें कि एक्सपर्ट बताते हैं कि सुरंग-बोरिंग मशीन विधि का उपयोग ऊंचे पहाड़ों में सुरंग बनाने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि इससे पहाड़ में खाली जगह बनने पर चट्टान फट जाती है और उसका हिस्सा गिर जाता है। सुरंग-बोरिंग मशीन तकनीक 400 मीटर तक ऊंची चट्टानों में इस्तेमाल की जाती है। दिल्ली मेट्रो के लिए सुरंगों का निर्माण सुरंग-बोरिंग मशीन विधि के जरिए किया गया है। वहीं जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड सहित हिमालय जैसी जगहों पर ड्रिल और ब्लास्ट विधि तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि सेला दर्रे पर वर्तमान में, भारतीय सेना के जवान और क्षेत्र के लोग तवांग पहुंचने के लिए बालीपारा-चारीदुआर रोड का उपयोग कर रहे हैं। सर्दी के मौसम में अत्यधिक बर्फबारी के कारण सेला दर्रे में भयंकर बर्फ जम जाती है। इससे रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाता है। साथ ही, दर्रे पर 30 मोड़ आते हैं, जो बहुत ही घुमावदार हैं। इस कारण यहां आवाजाही पर पूर्ण रूप से बाधित हो जाती है। सफर के लिए कई-कई घंटों तक का इतंजार करना पड़ता है। इस दौरान पूरा तवांग सेक्टर देश के बाकी हिस्सों से कट जाता है। सेला दर्रा सुरंग मौजूदा सड़क को बायपास करेगी और यह बैसाखी को नूरानंग से जोड़ेगी। इसके साथ ही सेला सुरंग सेला-चारबेला रिज से कटती है, जो तवांग जिले को पश्चिम कामेंग जिले से अलग करती है। रोहतांग सुरंग या अटल सुरंग वर्तमान में भारत की सबसे लंबी ऊंचाई वाली सुरंग है, जो हिमालय पर्वत में स्थित है।
अक्टूबर 2020 में उद्घाटन किया गया, यह 9.02 किमी लंबी सुरंग लेह और मनाली को जोड़ती है और इसे सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा बनाया गया था। यह हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रा के नीचे और 3,878 मीटर की ऊंचाई पर बनाई गई है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर, अटल सड़क सुरंग लेह और मनाली के बीच यात्रा के समय को 4 घंटे कम कर देती है। इस सुरंग में भी इसी विधि का प्रयोग किया गया है! तो यह है भारत में सुरंग खोदने की विधि, जानकारी अच्छी लगी हो तो बने रहिए मोजों पत्रकार के साथ!