बीजेपी लगातार लालू यादव से हारती ही जा रही है! RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद के राजनीति का अंदाज ही निराला था। गरीबों की भाषा, लोक कथाओं का पुलिंदा और लोगों को एक विश्वास के साथ जोड़ने की अद्भुत कला के शिल्पी हैं लालू प्रसाद। यही वजह भी है कि चाहे शरद यादव हों या रंजन यादव या फिर भाजपा के नंदकिशोर यादव या फिर नित्यानंद राय, किसी में भी यादव वोट को ट्रांसफर कराने की क्षमता नहीं दिखी। अपने बढ़ते कद के कारण नित्यानंद राय या नंदकिशोर यादव अपना किला केवल सुरक्षित रख पाए। वो भी तब, जब राजद से कोई मजबूत यादव उम्मीदवार उनके सामने नहीं रहा। राजद को कमजोर करने के लिए नीतीश कुमार ने भी चाहा कि एमवाई समीकरण में दरार डाल सकें। मगर ऐसा नहीं हो पाया। सबसे पहले तो शरद यादव के सहारे ये कोशिश नीतीश कुमार ने की। वो खुद तो एक हद तक वोट पा लेते थे लेकिन किसी के हक में यादव वोट ट्रांसफर नहीं करा सके। नीतीश कुमार ने दूसरी कोशिश लालू यादव के सबसे करीबी दोस्त रंजन यादव को यादवों के वोटबैंक में दरार डालने को बुलाया। मगर इनका हश्र तो ये हुआ कि खुद चुनाव हार गए। यादव का वोट अपने पक्ष में नहीं कर सके, तो दूसरों को यादव वोट ट्रांसफर कैसे करा सकते थे?
नीतीश कुमार ने राजद के एमवाई समीकरण में यादव को नहीं तोड़ सके तो मुस्लिम मत को जदयू के पक्ष में करने की मुहिम चलाई। इसके लिए अली अशरफ फातमी, सलीम परवेज, हारून रशीद, मोनाजिर हसन, शाहिद अली खान, गुलाम गौस जैसे नेताओं को इस काम पर लगाया। लेकिन मुस्लिम मत को पूरी तरह से मोड़ने में वो असफल ही रहे। उन्हें कुछ ही सफलता मिली। जदयू के सूत्रों की बात करें तो नीतीश कुमार इस बात से काफी दुखी भी हुए। इस कारण को जानने के लिए जदयू के कई बड़े नेता उर्दू अखबार के संपादक और प्रबुद्ध लोगों से राय-मशविरा भी किया। इस बातचीत का नतीजा निकला कि आप जिस दिन भाजपा से हट जाएंगे, पूरा वोट आपके पक्ष में जाएगा।
भाजपा ने भी राजद के एमवाई को तोड़ने के लिए कई कद्दावर नेताओं को लगाया लेकिन बीजेपी असफल रही। सबसे पहले भाजपा ने अपने कद्दावर नेता नंदकिशोर यादव को लगाया। वो वर्ष 1996 से लगातार दो बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। मगर वे यादव वोट को भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर नहीं करा पाए। यादव वोट को अपनी ओर करने के लिए भाजपा ने भूपेंद्र यादव को भी बिहार का प्रभारी बनाया। इन्होंने नित्यानंद राय को बतौर मुख्यमंत्री भी प्रोजेक्ट किया और इन्हें 2016 से 2019 तक के लिए प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया। बतौर अध्यक्ष पूरे बिहार का दौरा भी किए। एक बार तो लगा कि यादव का किला इस बार डह जाएगा। लेकिन वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 16 यादव उम्मीदवार उतारे मगर एक मात्र पवन यादव ही चुनाव जीत पाए। वो भी तब, जब उनके विपक्ष में कोई यादव उम्मीदवार नहीं था। बाकी 15 उम्मीदवार चुनाव हार गए।
आरजेडी के सीनियर नेता सुमन मल्लिक कहते हैं कि राजनीति में दो तरह के लोग होते हैं। एक सिर्फ कथनी में विश्वास करते हैं और एक करनी में। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ऐसे नेता है जो करनी में विश्वास करते हैं।मगर वे यादव वोट को भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर नहीं करा पाए। यादव वोट को अपनी ओर करने के लिए भाजपा ने भूपेंद्र यादव को भी बिहार का प्रभारी बनाया। इन्होंने नित्यानंद राय को बतौर मुख्यमंत्री भी प्रोजेक्ट किया और इन्हें 2016 से 2019 तक के लिए प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया। बतौर अध्यक्ष पूरे बिहार का दौरा भी किए। एक बार तो लगा कि यादव का किला इस बार डह जाएगा। लेकिन वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 16 यादव उम्मीदवार उतारे मगर एक मात्र पवन यादव ही चुनाव जीत पाए। वो भी तब, जब उनके विपक्ष में कोई यादव उम्मीदवार नहीं था। बाकी 15 उम्मीदवार चुनाव हार गए। इस वजह से इनकी पहचान देश और राज्य में पिछड़ों के मसीहा के रूप में हुई। विश्वास का ये सिलसिला लंबा चला। तीन दशक में कोई भी पार्टी या नेता लालू प्रसाद के करीब नहीं पहुंच पाया और न ही पिछड़ों, खास कर यादवों का विश्वास हासिल कर पाया।
जब कभी भी किसी पार्टी का कद्दावर नेता यादव जाति को बरगलाना चाहा तो इस जाति के प्रबुद्ध लोगों ने लालू प्रसाद के प्रति एकजुटता बनाने में मदद भी की। इस लंबे अंतराल में भी यादव जाति लालू प्रसाद के साथ ही रही।