बार बार नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बनते जा रहे हैं! नीतीश कुमार का अपना जनाधार मुट्ठी भर है। यह व्यक्तिगत आकलन नहीं, बल्कि आंकड़े इसी का इजहार करते हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को कभी इतनी सीटें नहीं आईं, जिससे वे खुद के बूते सरकार बना सकें। फिर भी पिछले 18 साल से वे बिहार के सीएम बने हुए हैं। इसे उनका तिकड़म ज्यादा कह सकते हैं, जनाकांक्षा तो बिल्कुल नहीं। जनाकांक्षा रहती तो वे अपने बूते जरूर सीएम बन जाते। पिछले 4 चुनावों पर नजर डालें तो ऐसा ही प्रतीत होता है। जाति के नाम पर सियासत में जमीन तलाशने वाले नीतीश कुमार का स्थायित्व भी नहीं रहा। वे कभी इनके तो कभी उनके साथ आते-जाते रहे। वे 2005 से बिहार के सीएम हैं, लेकिन हमेशा उन्हें सत्ता के सर्वोच्च पद के लिए जुगाड़ और तिकड़म का ही सहारा लेना पड़ा। वर्ष 2005 में बिहार असेंबली इलेक्शन दो बार हुए। पहला फरवरी में और दूसरा अक्तूबर में। फरवरी में हुए चुनाव में किसी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। इसलिए अक्तूबर में दोबारा चुनाव कराना पड़ा। पहले चुनाव में जेडीयू को 55 सीटें और दूसरे में 88 सीटें मिलीं। फरवरी में जेडीयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ा था और अक्तूबर में हुए इलेक्शन में 139 सीटों पर। राबड़ी देवी के नेतृत्व में पहली बार फरवरी 2005 में हुए चुनाव में आरजेडी ने 215 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उसे 75 सीटें मिलीं। बीजेपी ने 103 सीटों पर अपने को आजमाया। उसे 37 सीटें आईं। कांग्रेस 84 सीटों पर लड़ कर 10 सीटें ही हासिल पाई थी। सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत थी। किसी एक दल को सरकार बनाने का जनादेश नहीं मिला। इसलिए सरकार नहीं बन पायी और बिहार को राष्ट्रपति शासन का सामना करना पड़ा। उसी साल अक्टूबर-नवंबर में फिर से चुनाव हुए। साल में दूसरी बार हुए चुनाव में जेडीयू को जबरदस्त कामयाबी मिली, मगर बहुमत के आंकड़े से वह दूर रहा। उसे 88 सीटें मिली थीं। बीजेपी ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा तो उसे 55 सीटें मिली थीं। आरजेडी ने 175 सीटों पर चुनाव लड़ा। उसे 54 सीटें मिलीं। लोजपा ने 203 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उसे 10 सीटें मिलीं। कांग्रेस को 51 में से 9 सीटें ही आ पाईं। नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर पहली बार सरकार बनाई।
साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो जरूर, लेकिन इस बार भी वह अकेले बहुमत से दूर रही। एनडीए के बैनर तले जेडीयू और बीजेपी ने साथ चुनाव लड़ा। जेडीयू ने 141 सीटों पर लड़ कर 115 सीटें जीतीं। बीजेपी 102 सीटों पर लड़ी। उसे 91 सीटें मिलीं। यानी इस बार भी सहयोग लेकर ही नीतीश ने सरकार बनायी। राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 22 सीटें मिलीं। लोजपा 75 सीटों में से तीन सीटें निकाल पायी थी। सबसे बुरी गत कांग्रेस की रही। 243 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा, लेकिन उसे महज 4 सीटें ही मिलीं। उसके बाद से ही कांग्रेस ने महागठबंधन में ही चुनाव लड़ना उचित समझा। बिहार की सबसे बड़ी पार्टी मानी जाने वाली आरजेडी इस चुनाव में 22 सीटों पर सिमट गई थी। 2010 में एनडीए की सरकार बनी और नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनाए गए।
2015 का के चुनाव में आरजेडी-जेडीयू जैसे समाजवादी दलों ने कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा घोषित किया तो यह नीतीश को नागवार लगा। नाराजगी में उन्होंने बीजेपी से कुट्टी कर ली। लालू यादव की पार्टी आरजेडी और नीतीश कुमार के दल जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा। आरजेडी को 80 और जेडीयू को 71 सीटों पर कामयाबी मिली। कांग्रेस ने 41 और बीजेपी ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी को 53 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। आरजेडी से कम सीटों के बावजूद जेडीयू नेता नीतीश कुमार सीएम बने। 17 महीने बाद नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गये और फिर बीजेपी के साथ सरकार बनायी।
वर्ष 2020 में हुए चुनाव में एनडीए के बैनर तले जेडीयू ने बीजेपी के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा। लेकिन यह चुनाव जेडीयू के लिए सबसे बुरा साबित हुआ। उसे महज 43 सीटें मिलीं। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी रही आरजेडी। दूसरे नंबर पर बीजेपी थी। बीजेपी, जेडीयू हम और वीआईपी ने साझे में सरकार बनायी। बाद में वीआईपी तो अलग हो गयी, लेकिन तीन दलों की सरकार चलती रही। यहां भी नीतीश का तिकड़म काम आया। महज 43 सीटों वाली तीसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के नीतीश कुमार ही सीएम बने। हालांकि दो साल बाद ही एनडीए से अलग होकर नीतीश आरजेडी की अगुआई वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गये। यहां भी उनका तिकड़म काम आया। वे फिर सीएम बन गये।