आज हम आपको 2024 के पुष्पक विमान के बारे में जानकारी देने वाले हैं! त्रेतायुग में लंकापति रावण के पास एक विमान था। नाम था पुष्पक। यह विमान अपनी अद्भुत शक्तियों और सुंदरता के लिए जाना जाता था। अब कलयुग में एक बार फिर पुष्पक विमान की चर्चा है। लेकिन क्यों? दरअसल इसरो ने एसयूवी कार जितने आकार का एक पंखों वाला रॉकेट तैयार किया है। इसरो ने इसका नाम रावण के पुष्पक के नाम पर ही रखा है। इसे स्वदेशी स्पेस शटल कहा जा रहा है। कर्नाटक में एक रनवे पर इसकी सलफल लैंडिग कराई गई जिसके बाद से यह चर्चा में आ गया। टेस्ट के दौरान, इस रॉकेट को भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर से छोड़ा गया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ ने इस परीक्षण के परिणाम को बहुत अच्छा और सटीक बताया। इसमें सबसे महंगे उपकरण सबसे ऊपरी भाग में होते हैं। इस भाग को सुरक्षित वापस लाने से काफी बचत होगी। भविष्य में इस वाहन का इस्तेमाल अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स में ईंधन भरने या उन्हें वापस लाकर मरम्मत करने के लिए भी किया जा सकता है। पुष्पक अंतरिक्ष में कचरे को कम करने की दिशा में भी एक कदम है।इसरो ने बताया कि हमने फिर कमाल कर दिया। पुष्पक RLV-TD को एक ऊंचाई से छोड़ा गया जिसके बाद उसने रनवे पर वापस आने के लिए सफलतापूर्वक खुद ही रास्ता बना लिया। इसरो ने बताया कि यह परीक्षण अंतरिक्ष से वापस पृथ्वी पर आने वाले रॉकेट के गति और दिशा को नियंत्रित करने का अभ्यास था। अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, पुष्पक को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाया गया और फिर वहां से छोड़ा गया। इस दौरान उसने लैंडिंग के लिए पैराशूट, ब्रेक और पहिए का इस्तेमाल किया।
इसरो के अध्यक्ष श्री सोमनाथ ने पहले कहा था कि ‘पुष्पक अंतरिक्ष कार्यक्रम को सबसे किफायती बनाने की भारत की एक महत्वाकांक्षी कोशिश है। उन्होंने यह भी बताया कि ‘पुष्पक अंतरिक्ष में जाने वाला एक ऐसा वाहन है जिसे दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें सबसे महंगे उपकरण सबसे ऊपरी भाग में होते हैं। इस भाग को सुरक्षित वापस लाने से काफी बचत होगी। भविष्य में इस वाहन का इस्तेमाल अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स में ईंधन भरने या उन्हें वापस लाकर मरम्मत करने के लिए भी किया जा सकता है। पुष्पक अंतरिक्ष में कचरे को कम करने की दिशा में भी एक कदम है।
पहली बार इसे 2016 में उड़ाया गया था। उस समय इसने बंगाल की खाड़ी में बने एक वर्चुअल रनवे पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की थी। प्लान के मुताबिक, इसके बाद ये समुद्र में चला गया और इसे वापस नहीं लाया गया। दूसरी टेस्ट फ्लाइट 2023 में हुई थी, जहां इस पंखों वाले रॉकेट को चिनूक हेलीकॉप्टर से हवा में छोड़ा गया और फिर इसने खुद ही लैंडिंग कर ली। इसरो के अध्यक्ष श्री सोमनाथ के अनुसार, इस रॉकेट का नाम रामायण में वर्णित ‘पुष्पक विमान’ से लिया गया है, जो धन के देवता कुबेर का वाहन था। इसे बनाने में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक समर्पित टीम को 10 साल लग गए। ये 6.5 मीटर लंबा हवाई जहाज जैसा रॉकेट 1.75 टन वजनी है। बता दें कि उसने रनवे पर वापस आने के लिए सफलतापूर्वक खुद ही रास्ता बना लिया। बता दें कि इसे स्वदेशी स्पेस शटल कहा जा रहा है। कर्नाटक में एक रनवे पर इसकी सलफल लैंडिग कराई गई जिसके बाद से यह चर्चा में आ गया। टेस्ट के दौरान, इस रॉकेट को भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर से छोड़ा गया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ ने इस परीक्षण के परिणाम को बहुत अच्छा और सटीक बताया। इसरो ने बताया कि हमने फिर कमाल कर दिया। पुष्पक RLV-TD को एक ऊंचाई से छोड़ा गया जिसके बाद उसने रनवे पर वापस आने के लिए सफलतापूर्वक खुद ही रास्ता बना लिया। इसरो ने बताया कि यह परीक्षण अंतरिक्ष से वापस पृथ्वी पर आने वाले रॉकेट के गति और दिशा को नियंत्रित करने का अभ्यास था। अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, पुष्पक को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाया गया और फिर वहां से छोड़ा गया। नीचे उतरते समय छोटे-छोटे इंजन इसकी मदद करते हैं कि ये सही जगह पर जाकर जमीन पर बैठ सके। इस पूरे प्रोजेक्ट पर सरकार ने 100 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं।