आखिर चुनाव में एक कैंडिडेट कितना रुपया खर्च कर सकता है?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि चुनाव में एक कैंडिडेट कितना रुपया खर्च कर सकता है !लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीति के इस महाकुंभ की शुरुआत हो गई है। 19 अप्रैल से 1 जून तक चलने वाले इस चुनावी अखाड़े में कई दिग्गज आमने-सामने होंगे। हालांकि देखा जाए तो मुकाबला दो टीमों के बीच ही होगा। एक तरफ तीसरी बार जीत के रथ पर चढ़ने को बेकरार एनडीए है तो सामने सालभर के अंदर बना नए विपक्षी गठबंधन इंडिया है। जीत किसे सिर पर ताज पहनने का मौका देगी, यह तो 4 जून को पता चलेगा। अब बात इस सबसे बड़े रण में उतरने वाले उम्मीदवारों की करते हैं। चुनाव आते ही कैंडिडेट पैसे को पानी की तरह बहाते हैं लेकिन ऐसा अब नहीं हो सकेगा। इसपर चुनाव आयोग ने सख्ती करते हुए कुछ सीमाएं लगा दी हैं। अब उम्मीदवार एक निश्चित अमाउंट तक ही चुनाव में खर्च कर सकेंगे। चुनाव में उम्मीदवारों के पैसे खर्च करने पर ईसीआई ने लगाम लगाई है। नई व्यवस्था के मुताबिक, लोकसभा चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार के लिए खर्च सीमा ₹95 लाख और विधानसभा चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार के लिए खर्च सीमा ₹40 लाख रुपये रखी गई है। यह खर्च उम्मीदवार की ओर से नामांकन दाखिल करने के बाद से चुनाव प्रक्रिया पूरा होने तक के बीच किया गया खर्च माना जाएगा। इसमें जनसभाओं, रैलियों, विज्ञापनों, होर्डिंग्स, पैम्फलेट्स, फ्लेक्स, प्रचार सामग्री और चुनाव से जुड़े अन्य सभी कार्यों पर होने वाला खर्च भी शामिल है।

पहले यह सीमा अलग-अलग राज्यों के हिसाब से 54 लाख रुपये से 70 लाख रुपये के बीच थी, जिसे अब बढ़ाकर 75 लाख रुपये से 95 लाख रुपये कर दिया गया है। वहीं, विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा भी बढ़ाई गई है। पहले यह सीमा 20 लाख रुपये से 28 लाख रुपये के बीच थी, जिसे अब बढ़ाकर 28 लाख रुपये से 40 लाख रुपये कर दिया गया है। यह नई सीमा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में लागू है, जबकि गोवा और मणिपुर में यह सीमा 28 लाख रुपये ही है।

2020 में कोरोना महामारी के चलते 10% की बढ़ोतरी को छोड़ दें, तो चुनाव खर्च सीमा में आखिरी बड़ा बदलाव 2014 में हुआ था। चुनाव आयोग ने 2020 में खर्च सीमा पर अध्ययन करने के लिए एक समिति बनाई थी. आयोग के बयान के अनुसार समिति ने राजनीतिक दलों, मुख्य चुनाव अधिकारियों और चुनाव पर्यवेक्षकों से सुझाव आमंत्रित किए थे। समिति ने पाया कि 2014 के बाद से मतदाताओं की संख्या और महंगाई में काफी बढ़ोतरी हुई है। साथ ही, प्रचार के तरीकों में भी बदलाव को ध्यान में रखा गया, क्योंकि प्रचार अब धीरे-धीरे ऑनलाइन हो लगा है। चुनाव आयोग ने बताया कि समिति ने खर्च सीमा बढ़ाने की सिफारिश की थी। समिति ने दो मुख्य बातों को ध्यान में रखा – पहली, राजनीतिक दलों की मांग, और दूसरी, मतदाताओं की संख्या में वृद्धि। मतदाताओं की संख्या 2014 के 83.4 करोड़ से बढ़कर 2021 में 93.6 करोड़ हो गई है। साथ ही, 2014 से 2022 के बीच महंगाई भी 32.08% बढ़ी। चुनाव आयोग ने कहा कि उसने समिति की सिफारिशों को मान लिया है और उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाने का फैसला किया है।

बता दे कि चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है, लेकिन यह बेहद खर्चीला होने के साथ बड़े पैमाने पर अस्थायी रोजगार भी पैदा करता है। नगर निगम जैसे छोटे चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं तो विधानसभा चुनाव में इससे कई गुना अधिक खर्च होता है। बात जब लोकसभा चुनाव की होती है तो खर्च अरबों रुपये में पहुंच जाता है। बावजूद इसके कि चुनाव आयोग ने इस खर्च पर कई तरह की बंदिशें लगा रखी हैं। पिछले हर चुनाव में आयोग ने बढ़ती महंगाई के हिसाब से उम्मीदवारों के खर्च करने की सीमा बढ़ाई है। लोकसभा चुनाव के लिए अब यह 95 लाख रुपये प्रति उम्मीदवार तक जा पहुंची है।यह खर्च उम्मीदवार की ओर से नामांकन दाखिल करने के बाद से चुनाव प्रक्रिया पूरा होने तक के बीच किया गया खर्च माना जाएगा। इसमें जनसभाओं, रैलियों, विज्ञापनों, होर्डिंग्स, पैम्फलेट्स, फ्लेक्स, प्रचार सामग्री और चुनाव से जुड़े अन्य सभी कार्यों पर होने वाला खर्च भी शामिल है। लोकसभा की 543 सीटों के लिए खड़े उम्मीदवार कितना खर्च करेंगे, यह उनकी पार्टियों और इलाके पर निर्भर करेगा।देश के 75-80 चुनाव क्षेत्र ऐसे रहे, जहां 2019 लोकसभा चुनाव में हर संसदीय क्षेत्र में खर्च औसतन 40 करोड़ रुपये हुआ, जबकि इसकी सीमा महज 70 लाख रुपये प्रति उम्मीदवार थी।