Monday, December 23, 2024
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आखिर कितना ताकतवर है ब्रिटेन का चैलेंजर-2 टैंक?

ब्रिटेन का चैलेंजर-2 टैंक सबसे ताकतवर बताया जा रहा है! ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने यूक्रेन को चैलेंजर-2 टैंक देने का ऐलान किया है। उन्होंने शनिवार को यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ फोन पर बातचीत के बाद यह ऐलान किया। सुनक ने कहा कि उनका यह ऐलान यूक्रेन के युद्ध के प्रयासों को मजबूत करने के लिए है। उन्होंने यह भी कहा कि वे यूक्रेन को और भी मिलिट्री हार्डवेयर और अतिरिक्ट आर्टिलरी सिस्टम मुहैया करवाएंगे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि यह कदम यूक्रेन को समर्थन बढ़ाने की ब्रिटेन की महत्वकांक्षा को दर्शाता है। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी ब्रिटेन को धन्यवाद देते हुए कहा कि टैंक भेजने का निर्णय न केवल हमें युद्ध के मैदान में मजबूत करेगा, बल्कि अन्य भागीदारों को भी सही संकेत देगा। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन का समर्थन हमेशा मजबूत था और अब अभेद्य हो गया है। 1990 के दशक के अंत में निर्मित चैलेंजर टैंक 20 साल से अधिक पुराना है। इसे FV4034 चैलेंजर 2 या ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय के कोड नेम CR2 के नाम से भी जाना जाता है। चैलेंजर-2 यूनाइटेड किंगडम और ओमान की सेनाओं में शामिल तीसरी पीढ़ी का मुख्य युद्धक टैंक (MBT) है। इसे ब्रिटिश कंपनी विकर्स डिफेंस सिस्टम्स ने डिजाइन और निर्मित किया था, जिसे अब BAE सिस्टम्स लैंड एंड आर्मामेंट्स के रूप में जाना जाता है। विकर्स डिफेंस सिस्टम्स ने 1986 में चैलेंजर-2 को चैलेंजर-1 की जगह लेने के लिए एक प्राइवेट वेंचर के रूप में विकसित करना शुरू किया था। ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने दिसंबर 1988 में एक प्रोटोटाइप निर्माण करने का आदेश दिया था।

चैलेंजर-2 के सभी परीक्षण पूरे होने के बाद ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने 140 यूनिट बनाने का पहला ऑर्डर दिया। इसके बाद 1994 में 268 यूनिट बनाने का एक और फॉलो अप ऑर्डर दिया गया। इस टैंक का उत्पादन 1993 से शुरू हुआ। उत्पादन में देरी के कारण इस टैंक को 1998 में ब्रिटिश सेना की सर्विस में शामिल किया गया। इसकी आखिरी यूनिट की डिलीवरी 2002 में हुई थी। चैलेंजर-2 टैंक को ओमान को भी निर्यात किया गया था। यह टैंक अपने पुराने वर्जन चैलेंजर-1 का एक व्यापक नया रूप है। हालांकि इसकी चेचिस और ऑटोमोटिव कंपोनेंट एक तरह ही नजर आते हैं। इसके बावजूद ये सभी पार्ट नई डिजाइन के हैं। चैलेंजर-1 और चैलेंजर-2 में सिर्फ 3 फीसदी पार्ट ही कॉमन हैं।

चैलेंजर-2 टैंक 550 किलोमीटर की रेंज में 59 किलोमीटर /घंटा की स्पीड से दौड़ सकता है। चैलेंजर-2 एक 55-कैलिबर की 120-मिलीमीटर लंबी L30A1 टैंक गन से लैस है। इससे पहले ही ब्रिटिश टैंकों जैसे चीफटेन और चैलेंजर-1 में L11 गन को इस्तेमाल किया गया था। नाटो की मुख्य युद्धक टैंकों में लगे गनों की तुलना में L30A1 ज्यादा ताकतवर है। इससे आर्मर-पियर्सिंग फिन-स्टेबलाइज्ड डिस्कार्डिंग-सबोट राउंड के अलावा हाई एक्सप्लोसिव स्क्वैश हेड (एचईएसएच) राउंड को भी फायर किया जा सकता है। चैलेंजर 2 टैंक L94A1 EX-34 7.62 मिमी की चेन गन और 7.62 मिमी की L37A2 (GPMG) मशीन गन से भी लैस है।इसकी आखिरी यूनिट की डिलीवरी 2002 में हुई थी। चैलेंजर-2 टैंक को ओमान को भी निर्यात किया गया था। यह टैंक अपने पुराने वर्जन चैलेंजर-1 का एक व्यापक नया रूप है। हालांकि इसकी चेचिस और ऑटोमोटिव कंपोनेंट एक तरह ही नजर आते हैं। इसके बावजूद ये सभी पार्ट नई डिजाइन के हैं। चैलेंजर-1 और चैलेंजर-2 में सिर्फ 3 फीसदी पार्ट ही कॉमन हैं। इस टैंक में मेन गन के 50 राउंड और 7.62 मिमी मशीन गन और चेन गन के 4,200 राउंड स्टोर किए जा सकते हैं।

चैलेंजर-2 टैंक को ऑपरेट करने के लिए चार सदस्यों वाले चालक दल की जरुरत होती है। इस टैंक का ऊपरी और निचला हिस्सा स्पेशल मटेरियल से बने कवच से सुरक्षित हैं। इसे डोरचेस्टर के नाम से भी जाना जाता है। आज तक के ऑपरेशन के दौरान सिर्फ एक चैलेंजर-2 टैंक ही नष्ट हो पाया है। 2002 में इराक के बसरा में एक फ्रेंडली फायरिंग के दौरान टैंक का हैच खुले रह जाने से एक चैलेंजर टैंक नष्ट हो गया था।इसकी आखिरी यूनिट की डिलीवरी 2002 में हुई थी। चैलेंजर-2 टैंक को ओमान को भी निर्यात किया गया था। यह टैंक अपने पुराने वर्जन चैलेंजर-1 का एक व्यापक नया रूप है। हालांकि इसकी चेचिस और ऑटोमोटिव कंपोनेंट एक तरह ही नजर आते हैं। इसके बावजूद ये सभी पार्ट नई डिजाइन के हैं। चैलेंजर-1 और चैलेंजर-2 में सिर्फ 3 फीसदी पार्ट ही कॉमन हैं। इस टैंक ने बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, कोसोवो और इराक में मिलिट्री ऑपरेशन में हिस्सा लिया है। सेवा में शामिल होने के बाद भी चैलेंजर-2 टैंक में कई अपग्रेडेशन किए गए हैं। इससे टैंक की सुरक्षा, गतिशीलता और घातकता में सुधार हुआ है। मार्च 2021 में, ब्रिटिश सेना ने LEP के तहत 148 चैलेंजर-2 टैंक को अपग्रेड करने की योजना की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य टैंक की सर्विस लाइफ को 2035 तक के लिए बढ़ाना है।

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