यह सवाल उठना लाजिमी है कि बिहार में मंत्रियों के पास विभाग कैसे बटेगा! जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ कर 129 विधायकों के समर्थन से सरकार तो बना ली, लेकिन अभी उनके साथ शपथ लेने वाले मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा नहीं हो सका है। मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर भी नीतीश किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके हैं। माना जा रहा है कि भाजपा की ओर से वे ग्रीन सिग्नल का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि इसके पहले नीतीश आठ बार सीएम बने, पर विभागों के बंटवारे और मंत्रिमंडल के विस्तार में इतना वक्त कभी नहीं लगा। हालांकि महागठबंधन के सीएम पद से इस्तीफा देने के पांच घंटे बाद ही उन्होंने आठ मंत्रियों के साथ शपथ ले ली थी। मंत्रियों के विभाग अब तक न बंट पाने की दो बड़ी वजहें बताई जा रही हैं। पहली वजह तो यह मानी जा रही है कि बीजेपी की ओर से ही इस पर अब तक मुहर नहीं लगी है। दूसरी चर्चा यह है कि नीतीश कुमार जो विभाग जेडीयू कोटे में चाहते हैं, वह भाजपा उन्हें देने को तैयार नहीं है। कहा जा रहा है कि नीतीश गृह विभाग अपने पास रखने की जिद पर अड़े हुए हैं। भाजपा यह विभाग अपने किसी मंत्री को देना चाहती है। इसी खींचतान के कारण विभागों का बंटवारा नहीं हो पा रहा है। दरअसल नीतीश की जिद का कारण यह बताया जा रहा है कि पिछले 18 साल से उनके ही पास गृह विभाग रहा है। यानी 18 साल से नीतीश बिहार के सीएम के साथ गृहमंत्री भी रहे हैं। इस बार भी वे गृह विभाग अपने पास ही रखना चाहते हैं।
गृह विभाग किसी भी सरकार के लिए लिए शासन-प्रशासन की कुंजी होता है। नीतीश यह कुंजी किसी को देना नहीं चाहते। वर्ष 2020 में नीतीश कुमार जब सातवीं बार बिहार के सीएम बने, तब भी उन्होंने यह विभाग अपने पास ही रखा था। महागठबंधन के साथ नीतीश ने 2022 में जब सरकार बनाई, तब भी आरजेडी के विधायकों की संख्या अधिक होने के बावजूद उन्होंने गृह विभाग अपने पास ही रखा। इस बार भी वे इसे अपने पास ही रखना चाहते हैं। हालांकि वे भाजपा पर दबाव बनाने की स्थिति में नहीं हैं। उनकी मौजूदा हालत ऐसी है कि भाजपा के डिक्टेशन पर चलना उनकी मजबूरी है। अब तक जिस तरह तिकड़म से वे साथी दलों को साधते रहे हैं, इस बार उसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही है। इसलिए कि उन्होंने अपनी पहल पर भाजपा का साथ लिया है। यानी नैतिक रूप से वे भाजपा पर दबाव बनाने के स्थिति में नहीं हैं। उनके पास विधायकों का संख्या बल भी ऐसा नहीं है कि वे भाजपा से अपनी जिद मनवा सकें। भाजपा की कृपा से ही यह विभाग उन्हें मिल सकता है।
नीतीश कुमार इससे पहले इतने लाचार कभी नहीं थे। इस बार उनके पास अपनी पार्टी जेडीयू के महज 45 विधायक ही हैं। दूसरा यह कि वे महागठबंधन से तकरार कर एनडीए में आए हैं। यही कारण है कि एनडीए में रहते वे जिस विजय सिन्हा के खिलाफ विधानसभा में आग बबूला हो गए थे, उन्हें डेप्युटी सीएम के रूप में उन्हें स्वीकार करना पड़ा। इतना ही नहीं, जिस सम्राट चौधरी ने उन्हें सीएम की कुर्सी से बेदखल करने के लिए पगड़ी बांध रखी थी, उन्हें भी डेप्युटी सीएम बनाने में उन्हें कोई एतराज नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में नीतीश भाजपा से अपनी जिद मनवा लेंगे, ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
विधानसभा का बजट सत्र 12 फरवरी से शुरू हो रहा है। इसी सत्र में स्पीकर अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होनी है। चौधरी आरजेडी कोटे से आते हैं। तेजस्वी यादव ने खेल अब शुरू होने की बात कह कर सस्पेंस बढ़ा दिया है। पहले भी जेडीयू के लोगों को तोड़ कर नीतीश को अपदस्थ करने की आरजेडी की कवायद की खबरें आ चुकी हैं। हालांकि यह नौबत आने से पहले ही नीतीश ने एनडीए से हाथ मिला कर आरजेडी के खेल को बिगाड़ दिया था। अब माना जा रहा है कि आरजेडी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जेडीयू के अपने करीबी वैसे विधायकों को पटा कर सरकार को झटका दे सकता है। तेजस्वी ने शायद इसी खेल की ओर इशारा किया था। विभागों के बंटवारे और मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे बड़ी बाधा यही है। नीतीश किसी को नाराज करने के बजाय सबको प्रलोभन देकर पटाए रखने की रणनीति पर चल रहे हैं। यह कितना कारगर होगा, देखना बाकी है। प्रवीण बागी का कहना है कि जिन मंत्रियों ने शपथ ले ली है, उनके विभाग बांटना तो मजबूरी है। अलबत्ता मंत्रिमंडल का विस्तार सत्र की समाप्ति के बाद होने की अधिक संभावना है।
भाजपा बिहार में बढ़ते अपराध पर अंकुश लगा कर ठीक उसी तरह का कीर्तिमान बनाना चाहती है, जैसा 2005 से 2010 के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने कर दिखाया था। भाजपा को गृह विभाग मिलने पर वह अपराधियों पर नकेल कसने के लिए यूपी का बुलडोजर मॉडल अपना सकती है। लोकसभा चुनाव में भाजपा लोगों को यह संदेश देना चाहेगी कि उसके आते ही अपराध काबू में आ गए। यूपी मॉडल में जाति-धर्म की परवाह किए बिना अपराधियों के साथ सरकार सख्ती बरतती रही है। बड़े-बड़े डान औकात में आ गए हैं। भाजपा की मंशा बिहार में वैसा ही कुछ कर दिखाने की है। भाजपा के भरोसेमंद सूत्र के मुताबिक नीतीश को साथ देकर यह काम वह कर सकती है, लेकिन क्रेडिट उसे शायद ही मिले। बिहार में तो क्रेडिट लेने की जंग में ही महागठबंधन की सरकार का अंत हो गया था। ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए भाजपा पहले ही यह लफड़ा सुलझा लेना चाहती है।