तीन नए कानून में बहुत सारे बदलाव किए गए हैं! पुराने औपनिवेशिक काल के कई शब्दावली को हटा दिया गया है। ऐसे करीब 475 शब्दों को डिलीट किया गया है जिनमें लंदन गजट, ज्यूरी, हर हैनिस आदि शामिल हैं। पहले जहां 420 यानी धोखाधड़ी, दफा 302 यानी हत्या और 376 यानी रेप जैसे अपराध के लिए कानून की किताब में लिखी धाराएं लोगों के जुबान पर चढ़ी हुई थी, वह सब अब बदल गई हैं। सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा को भी शामिल किया गया है। साथ ही सिस्टम को विक्टिम सेंट्रिक बनाया गया है और उन्हें मुकदमे के स्टेज से लेकर जांच के स्टेज के बारे में बताए जाने को लेकर प्रावधान किया गया है। कानून में ऐसा प्रावधान किया गया है कि वह विक्टिम सेंट्रिक हो। इसके लिए कई फीचर जोड़े गए हैं। विक्टम को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा-360 के तहत अपनी बात रखने का अधिकार दिया गया है। साथ ही उसे धारा-173, 193 और 230 के तहत जानकारी पाने का अधिकार दिया गया है। विक्टिम को एफआईआर की कॉपी बिना शुल्क प्राप्त करने का अधिकार होगा। विक्टिम को 90 दिनों के भीतर जांच के बारे में स्टेटस रिपोर्ट सूचित करने का अधिकार होगा।
ऐसे मामले जहां एक तिहाई या आधी सजा अंडर ट्रायल भुगत चुका हो, वैसे मामले में जेल सुपरिटेंडेंट अदालत को केस के बारे में सूचित करेंगे। अगर कोई शख्स पहली बार का अपराधी है और जिस अपराध के लिए उसे बुक किया गया है, उसमें अगर वह एक तिहाई या उससे ज्यादा सजा काट चुका है तो ऐसे मामले में उसे जमानत दी जाएगी। भारतीय न्याय संहिता में कुल 358 धाराएं हैं और उसमें 20 नए अपराध को परिभाषित किया गया है। जिनमें स्नैचिंग से लेकर मॉब लिंचिंग शामिल किया गया है। साथ ही 33 अपराधों में सजा को बढ़ाया गया है। साथ ही 83 ऐसी धाराएं या अपराध हैं जिनमें जुर्माने की राशि भी बढ़ा दी गई है। ऐसे 23 अपराध हैं जिनमें न्यूनतम सजा का जिक्र नहीं था, इन्हें शुरू किया गया है। 19 धाराएं ऐसी हैं जिन्हें हटा दिया गया है। साथ ही सजा के तौर पर सामाजिक और समुदायिक सेवा को भी रखा गया है। पहले यह नहीं था। कई बार अदालत जमानत देने के मामले में शर्त के तौर पर समुदायिक सेवा के लिए कहते थे या फिर कई बार सजा के तौर पर भी इसे शर्त के तौर पर लागू किया जाता रहा है।
सीआरपीसी में जहां कुल 484 धाराएं थीं, वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। कुल 177 ऐसे प्रावधान हैं जिसमें संशोधन हुआ है। 9 नई धाराएं और कुल 39 उपधाराएं जोड़ी गई हैं। 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है। वहीं भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं होंगी। गवाहों की सुरक्षा के लिए कानून: ऐसा प्रावधान किया गया है कि गवाहों की सुरक्षा के लिए कानून बनेगा। राज्य सरकारें इसके लिए एक एविडेंस प्रोटेक्शन स्कीम लेकर आएगी और उसे नोटिफाई किया जाएगा। अब इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज की परिधि में लाया गया है। इलेक्ट्रॉनिक तौर पर जो बयान है उसे साक्ष्य की परिभाषा में शामिल कर लिया गया है।
कानून में अबकी बार सामुदायिक सर्विस को सजा के तौर पर शामिल किया गया है। पहले यह सजा के तौर पर कानून की किताब में दर्ज नहीं था लेकिन फिर भी कई बार अदालत केस की परिस्थितियों के हिसाब से सामुदायिक सेवा के लिए आदेश पारित करता रहा है। इसी कड़ी में गुजरात हाई कोर्ट ने निर्देश जारी किया था कि जो भी लोग बिना मास्क के पकड़े जाते हैं उन्हें कोविड मरीज के देखभाल के लिए बनाए गए सेंटर में कम्युनिटी सर्विस के लिए लगाया जाए, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। अपराध हैं जिनमें न्यूनतम सजा का जिक्र नहीं था, इन्हें शुरू किया गया है। 19 धाराएं ऐसी हैं जिन्हें हटा दिया गया है। साथ ही सजा के तौर पर सामाजिक और समुदायिक सेवा को भी रखा गया है। पहले यह नहीं था। कई बार अदालत जमानत देने के मामले में शर्त के तौर पर समुदायिक सेवा के लिए कहते थे या फिर कई बार सजा के तौर पर भी इसे शर्त के तौर पर लागू किया जाता रहा है।वहीं जुलाई 2019 में हत्या के केस में आरोपी को 100 पेड़ लगाने का निर्देश दिया गया था। घटना के वक्त आरोपी जुवेनाइल साबित हुआ था। लेकिन अब कानून की किताब में सामुदायिक सर्विस को सजा के तौर पर रखे जाने से अदालत अब इस सजा को विकल्प के तौर पर चुन सकेगी।