आज हम आपको फांसी लटकाने के नियम बताने वाले हैं! भारत में रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में फांसी की सजा सुनाई जाती है। जब फांसी का सजा तय हो जाती है तो उसके बाद जेल में ही उसका डेथ वारंट या फिर ब्लैक वारंट तैयार होता है। ये ब्लैक वारंट काले रंग के बॉर्डर वाला एक पेपर होता है जिसमें कैदी का नाम, उसकी सजा-ए-मौत का दिन और जगह लिखी हुई रहती है। जेल के अंदर बंद कैदी को 14 दिन का वक्त दिया जाता है। ये वो 14 दिन होते हैं जब कैदी अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करता है। इसके अलावा वो अपने रिश्तेदारों से मिल सकता है, अपनी वसीहत तैयार कर सकता है। इस दौरान कैदी को एक अलग सेल में रखा जाता है। इन चौदह दिनों में फांसी की पूरी तैयारियां की जाती हैं। मुजरिम के रिश्तेदारों को सूचना दे दी जाती है। इन्हीं 14 दिनों में एक मेडिकल ऑफिसर उसकी लंबाई और वजन के आधार पर ये तय करता है फांसी के तख्त के नीचे कितनी गहराई होनी चाहिए। इसके बाद जब फांसी के एक-दो दिन बचे होते हैं एक ट्रायल किया जाता है। ये ट्रायल होता है कैदी के वजन के बराबर रेत के बोरे को फांसी के फंदे में लटकाकर। इसके आधार पर ही रस्सी का ऑर्डर दिया जाता है।
कैदी की फांसी की पूरी जिम्मेदारी जेल सुपरिटेडेंट की होती है। ये पहले से ही तय हो जाता है कि कौन सा जल्लाद कैदी को फांसी के तख्ते पर लटकाएगा। फांसी वाले दिन जेल में सुपरिटेंडेंट के अलावा असिसटेंट सुपरिटेंडेंट , 6 वार्डन, एक मेडिकल ऑफिसर, एक जल्लाद और मजिस्ट्रेट भी मौजूद रहते हैं। फांसी के 2 दिन पहले ही जल्लाद उस जेल में पहुंच जाता है।
भारत में फांसी हमेशा सूर्योदय के समय ही होती है। यानी सुबह-सुबह ही कैदी को लटकाया जाता है। सर्दी गर्मी के हिसाब से फांसी की टाइमिंग अलग-अलग हैं। नवंबर से फ़रवरी तक सुबह 8 बजे का वक्त। मार्च, अप्रैल, सितंबर और अक्टूबर महीने में सुबह 7 बजे जबकी मई से अगस्त तक सुबह 6 बजे। इन महीनों में सामान्यतौर पर सूर्योदय का समय यही रहता है।सुबह का समय इसलिए चुना जाता है क्योंकि ये माना जाता है कि सुबह-सुबह फांसी देना कैदी के लिए मानसिक तौर पर आसान होता है। उसे पूरे दिन इंतजार नहीं करना पड़ता। इसके अलावा शव के अंतिम संस्कार के लिए भी पूरा दिन मिल जाता है।
फांसी वाले दिन मुजरिम जब सुबह उठता है तो उसे पहले नहलाया जाता है। अगर वो चाहता है तो उसे ब्रेकफास्ट करने के लिए दिया जाता है। उसकी अंतिम इच्छा भी उसी दिन सुबह पूरी की जाती है। ये अंतिम इच्छा जेल मैनुअल के हिसाब से तय होती है। जैसे कैदी अपनी पसंद का खाना खाने की इच्छा जाहिर कर सकता है, किसी से मिलने की इच्छा या फिर पूजा-पाठ की इच्छा बता सकता है। जेल सुपरिटेंडेंट, असिस्टेंट जेल सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर, छह वार्डन और जल्लाद उस वक्त वहीं मौजूद होते हैं। सुपरिटेंडेंट मुजरिम को वारंट पढकर सुनाता है और फिर उसके साइन लिए जाते हैं।
इसके बाद कैदी को सेल से बाहर निकालकर उस जगह ले जाया जाता है जहां उसे फांसी के फंदे पर लटकाना है। जल्लाद,मेडिकल सुपरिटेंडेंट और मजिस्ट्रेट पहले ही वहां पहुंच जाते हैं। कैदी के साथ होते हैं असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट, और छह वार्डन। कैदी के हाथों को पीछे की तरफ बांध दिया जाता है। और सब लोगों के बीच में उसे फांसी वाली जगह तक ले जाया जाता है। तब तक जल्लाद फांसी का फंदा तैयार कर चुका होता है।
इसके बाद कैदी को जल्लाद के हवाले कर दिया जाता है। ये मुजरिम के आखिरी चंद पल होते हैं। जल्लाद कैदी के सिर को काले कपड़े से ढकता है। ये कपड़ा कॉटन का होता है। कैदी को फट्टे के ऊपर खड़ा किया जाता है और फिर उसके गले में फांसी का फंदा डाला जाता है। इसके बाद जल्लाद कैदी के कान में कुछ बोलता है। ये शब्द होते हैं- ‘राम राम, मुझे माफ करना मैं अपना फर्ज निभा रहा हूं’। कैदी के धर्म के हिसाब से जल्लाद ये तय करता है कि राम-राम बोलना है या फिर सलाम।
इन शब्दों को बोलने के बाद जल्लाद लिवर हटा देता है और फिर मुजरिम के पैरों के नीचे से फट्टा हट जाता है और उसकी गर्दन फंदे के अंदर झूलने लगती है। थोड़ी ही देर में सजा-ए-मौत की प्रक्रिया पूरी होती है। मुजरिम को आधे घंटे तक वैसे ही रखा जाता है। इसके बाद मेडिकल ऑफिसर ये चेक करता है कि उसकी मौत हो गई है। इसके बाद बॉडी को वहां से हटाया जाता है और पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है। पोस्टमार्टम के बाद ही मुजरिम की डेड बॉडी उसके रिश्तेदारों को मिलती है। डेड बॉडी को रिश्तेदारों को देना है या फिर जेल में ही अंतिम संस्कार किया जाना है ये तय करना प्रशासन का निर्णय होता है। भारत में पब्लिक हॉलीडे के दिन फांसी नहीं दी जाती।