Friday, December 27, 2024
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आखिर शराबबंदी के क्या है साइड इफेक्ट?

शराबबंदी के साथ उसके साइड इफेक्ट भी सामने आते हैं! शराबबंदी होने के बाद लोग चोरी छुपे शराब के रूप में जहर पीने लगे हैं। पहले पीकर आते थे। झगड़ा करते थे। अब पीने के बाद सीधे मर जा रहे हैं, तो इसका क्या फायदा? ये बयान है उन महिलाओं का, जिनके पति छपरा में जहरीली शराब पीकर काल के गाल में समा चुके हैं। महिलाएं साफ कहती हैं कि पहले कम से कम पीकर मरते तो नहीं थे। अब तो हमारी दुनिया उजड़ जा रही है। छपरा जहरीली शराब कांड में 38 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जहरीली शराबकांड के बाद शराबबंदी के खिलाफ महिलाओं का ये बयान किसी एक महिला का नहीं है। बाकी महिलाओं की बात हम करेंगे। सबसे पहले कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं। 14 दिसंबर 2022 को छपरा में जहरीली शराब से मौत होने का सिलसिला शुरू होता है। 15 दिसंबर 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान आता है। वे कहते हैं कि शराबबंदी से बिहार को बहुत फायदा हो रहा है। इससे महिलाएं खुश हैं। सीएम एक बार फिर पुरानी बात दुहराते हैं कि महिलाओं के कहने पर शराबबंदी की है। जानकर ये बताते हैं कि उस वक्त महिलाओं ने इसलिए शराबबंदी की मांग की और शराबबंदी के बाद खुश हो गईं, उन्हें लगा कि शराब अब बिहार में पूरी तरह नहीं मिलेगी। राज्य में वर्ष 2016 में शराबबंदी कानून लागू किया गया। स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और मीडिया रिपोर्टस की मानें, तो 2016 में जहरीली शराब से 13 लोगों की मौत हुई। 2017 में 8 लोगों की, 2018 में 9 लोगों की, 2019 में 9 लोगों की, 2020 में 6 लोगों की, 2021 में 90 लोगों की और 2022 में लगभग 100 लोगों की मौत हो चुकी है। ज्यादात्तर मौतें मुजफ्फरपुर, छपरा, बेतिया, बेगूसराय और गोपालगंज में हुई हैं। हालांकि, इस आंकड़े को बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी कम बताते हैं। उनका कहना है कि बिहार में शराबबंदी के बाद जहरीली शराब पीने से 1 हजार लोगों की मौत हुई, 35 हजार करोड़ की राजस्व क्षति और 6 साल में 4 लाख गरीब जेल भेजे गए हैं। जहरीली शराब से मौत के बाद नीतीश कुमार से शराबबंदी की मांग करने वाली महिलाएं अब शराब की दुकानें खोलने की मांग कर रही हैं।

भोजपुर जिले के आरा की गरीब और दलित महिलाएं मुख्यमंत्री से विलाप कर रही हैं। उनका कहना है कि जहरीली शराब से मौत काफी दुखद है। अवैध शराब का धंधा जारी है। गरीब लोग सस्ती शराब पीकर मर रहे हैं। अमीर लोग महंगी शराब पीकर बच निकलते हैं। शराबबंदी कानून में संशोधन कीजिए। वहीं, सर्वोदय नगर की रहने वाली संगीता कहती हैं कि इससे तो अच्छा पहले ही था कि लोग शराब पीकर आते थे और घर में सो जाते थे। अब तो सीधे पीकर मर जा रहे हैं। इसमें सरकारी तंत्र पूरी तरह दोषी है। बिहार में शराबबंदी कानून अच्छे से लागू ही नहीं हो पाया। सुषमा एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहती हैं कि बिहार में शराबबंदी कानून खत्म कर फिर से शराब को चालू करना चाहिए। जहरीली शराब पीने के कारण लोग मर रहे हैं। शराब चालू हो जाने के बाद मरने से बच जाएंगे। मुख्यमंत्री अपने फैसले पर दोबारा विचार करें। बिहार में फिर से शराब को चालू कर देना चाहिए। वहीं, आरा के बैंक कॉलोनी की रहने वाली मीरा देवी कहती हैं कि पूरे बिहार में, हर इलाके में शराब मिल रही है। शराब जब चालू थी, तो लोग इतनी संख्या में अपनी जान नहीं गंवाते थे। मुझे लगता है कि सरकार को शराब चालू कर देना चाहिए। रागिनी पांडेय नाम की महिला कहती हैं कि अवैध शराब का कारोबार सभी जगहों पर चल रहा है। इससे कोई शहर अछूता नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने फैसले पर विचार करना चाहिए। लोग बेवजह मर रहे हैं।

जहरीली शराब से लगातार हो रही मौत से उब चुकी महिलाओं की ओर से शराबबंदी खत्म करने की मांग उठने लगी है। महिलाओं की मांग का समर्थन करते हुए बिहार के बुद्धिजीवी वर्ग भी उनके समर्थन में आने लगा है।  पियक्कड़ पति से महिलाएं तब भी त्रस्त होती थीं। दारूबंदी का अर्थ है कि पीने की लत से मुक्ति मिले। केवल भय, त्रास और कानून का डंडा ही नहीं, नैतिक रूप से भी लोगों को जागरूक करना चाहिए था, जो सरकार नहीं कर सकी। थाने से शराब कहां चली जाती है, ये इनको पता नहीं है। क्या प्रशासन को मालूम नहीं कि ट्रक के ट्रक शराब कहां से आ रही है। घर-घर में शराब का उत्पादन हो रहा है। उनके ऑफिसर भी पी रहे हैं, डॉक्टर भी पी रहे हैं। लॉ एंड ऑर्डर खत्म है। आए दिन हत्या हो रही है। शराब पीकर कोई आदमी हत्या करता है, ये तर्क नहीं दिया जा सकता है। डॉ. संजय पंकज गुस्से में कहते हैं कि हत्या करने वाला बिना शराब पीये भी कर सकता है। नीतीश कुमार अस्थिर मति वाले लोग हैं। कुछ महिलाओं ने कह दिया कि शराब बंद कीजिए, लेकिन आज जो सामूहिक मौत हो रही है। जब शराब बिकती थी, उस समय तो इस तरह सामूहिक मौत नहीं हुई। कोई ऐसा गांव नहीं जहां दलित महिलाएं शराब बनाने में शामिल नहीं हैं। आपने ताड़ी प्रतिबंधित कर दिया। आज तक ताड़ी पीकर किसी ने किसी की हत्या कर दी हो, ऐसा सुनने में नहीं आया।

महिलाओं की ओर से शराबबंदी कानून खत्म किये जाने की मांग का समर्थन करते हुए कहते हैं कि पीने वाला जो पहले पीता था। आज भी पी रहा है। नवल शर्मा कहते हैं कि उन्हें एक भी ऐसा व्यक्ति पूरे सोसाइटी में नहीं मिला, खासकर ग्रामीण इलाके के मजदूर तबके में। जो पहले शराब पीता था और शराबबंदी के बाद शराब छोड़ दिया हो। इसका सीधा इफेक्ट हो रहा है घरेलू महिलाओं पर, क्योंकि जो बोतल पहले चालीस में आती थी, वो डेढ़ सौ में मिल रही है। इसका सीधा खामियाजा महिलाओं के बजट पर पड़ा है। नीतीश कुमार सरकार की बैशाखी पर चलने वाली संस्थाओं, जैसे-एएन सिन्हा इंस्ट्टीयूट, आद्री वैगरह से सर्वे कराकर जनता की आंखों में धूल झोकते हैं कि बिहार में घरेलु हिंसा में कमी आई है। अपराध में कमी आई है। नवल शर्मा कहते हैं कि अगर नीतीश कुमार में नैतिक बल है, तो वे सरकारी संस्थाओं से सर्वे न कराकर, वे किसी सेवानिवृत्त जज से इसका सर्वे कराएं। हकीकत सामने आ जाएगी। नीतीश कुमार अपराध में कमी की बात करते हैं और एनसीआरबी कुछ और ही कहता है। घरेलु हिंसा शराबबंदी लागू होने वाले साल में थोड़ी कम रही, उसके बाद तेजी से बढ़ गई। नवल शर्मा ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहा कि एनसीआरबी के आंकड़े नीतीश कुमार के दावों की पोल खोलते हैं। महिलाओं पर अत्याचार और अपराध पहले की तुलना में ज्यादा बढ़े हैं। अब महिलाओं के लिए शराबबंदी गले की फांस बन गई है।

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