अमेरिका अब पाकिस्तान के पीछे पड़ चुका है! पाकिस्तान के नए-नवेले सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से बातचीत की है। इस दौरान दोनों के बीच आपसी हितों और हालिया क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर चर्चा हुई। पेंटागन ने बताया कि ऑस्टिन ने मुनीर से शुक्रवार को फोन पर बात की और पाकिस्तान का नया सेना प्रमुख बनने पर उन्हें बधाई दी। ऑस्टिन ने कहा कि मुझे पाकिस्तान के नवनियुक्त सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को बधाई देने का अवसर मिला। उन्होंने ट्वीट किया, अमेरिका और पाकिस्तान की पुरानी रक्षा साझेदारी है और मैं जनरल मुनीर के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं। अमेरिका के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने भी काबुल में हुए आतंकवादी हमले के एक दिन बाद गुरुवार को मुनीर से फोन पर बात कर पाकिस्तान एवं क्षेत्र में मौजूदा सुरक्षा हालात पर चर्चा की थी। जनरल मिले ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख का नया पदभार ग्रहण करने पर जनरल मुनीर को बधाई दी थी। यह तीन महीने में पाकिस्तानी सेना प्रमुख का दूसरी बार अमेरिका के शीर्ष रक्षा अधिकारियों से बातचीत है। इससे पहले अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा अमेरिका पहुंचे थे। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के अलावा रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन से मुलाकात की थी। अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन तो पेंटागन के बाहर आकर जनरल बाजवा का स्वागत किया था। इसे अमेरिका और पाकिस्तान के रक्षा संबंधों की मजबूती का प्रतीक बताया गया था। बड़ी बात यह है कि इस स्वागत के समय बाजवा का कार्यकाल सिर्फ 1 महीने का बचा हुआ था। यह वही पाकिस्तान है, जिसके पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान डेढ़ साल तक अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के एक फोन का इंतजार करते सत्ता से हटा दिए गए थे। इसके बावजूद पाकिस्तान की सैन्य सत्ता को इतना महत्व देना चर्चा का विषय बना हुआ है।
अमेरिका पूरी दुनिया में लोकतंत्र की दुहाई देता रहता है। वह चीन और रूस जैसे कम्युनिस्ट और तानाशाही हूकुमत वाले देशों की आलोचना करता रहता है। इसके बावजूद अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान की सरकार की जगह वहां की सेना से बात कर रहा है। इस मुद्दे पर विशेषज्ञों का कहना है कि पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में असली ताकत सेना के हाथों में है। सेना जिसे चाहे, उसे प्रधानमंत्री बना सकती है। खुद इमरान खान भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उनको सत्ता से हटाने के पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ था। इमरान के शासनकाल में विपक्ष का आरोप था कि पाकिस्तानी सेना ने नवाज शरीफ को हटाकर उन्हें सत्ता पर बैठाया था। ऐसे में बिना ताकत वाली सरकार के साथ बातचीत करने से बढ़िया सीधे पाकिस्तानी सेना के साथ डील करना है।
पाकिस्तान पूरी दुनिया में चीन के सबसे करीब है। चीन की अमेरिका से पुरानी दुश्मनी है। ऐसे में अमेरिका की चाहत पाकिस्तान को फिर से अपने पाले में करने की भी है। 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ कथित युद्ध का ऐलान किया था। इसमें पाकिस्तान सबसे बड़ा साझीदार बना था। अमेरिका ने पाकिस्तान को दिल खोलकर हथियार और पैसे दिए। हालांकि, जब अफगानिस्तान में अमेरिका को एक के बाद एक विफलता मिलने लगी और पेंटागन को यह लगने लगा कि वह कभी भी पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण नहीं कर सकता, तो उसका पाकिस्तान से मोहभंग होना शुरू हुआ। बराक ओबामा ने अपने दूसरे कार्यकाल में पाकिस्तान को अमेरिकी फंडिंग देने पर रोक लगाना शुरू किया। इसके बाद जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए तो उन्होंने पूरी तरह पाकिस्तान के साथ रिश्ते तोड़ लिए। इसका नतीजा यह हुआ कि खैरात का भूखा पाकिस्तान तुरंत ही अमेरिका के सबसे बड़े विरोधी चीन की गोद में जा बैठा।
अगस्त 2021 में अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान काफी मजबूत हो गया है। इस इलाके में ईरान, रूस और चीन की बढ़ती गतिविधियों ने भी अमेरिका की नींद उड़ा रखी है। ऐसे में अमेरिका की चाहत पाकिस्तानी सेना के जरिए अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी को बढ़ाना है। इमरान खान ने अपने कार्यकाल में अमेरिका को ड्रोन ऑपरेशन के लिए एयरबेस देने से इनकार किया था। उन्होंने इसे पाकिस्तानी संप्रभुता और अफगानिस्तान के लोगों के साथ रिश्तों के साथ जोड़ा था। ऐसे में वर्तमान शहबाज शरीफ सरकार चाहकर भी अमेरिका को सैन्य सुविधा नहीं दे सकती है। इसी कारण अमेरिका अब सीधे पाकिस्तानी सेना से डील कर अफगानिस्तान में अपने मिलिट्री ऑपरेशन को जारी रखने की तैयारी कर रहा है।
अमेरिका जानता है कि वह पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक मदद कर भारत पर दबाव बना सकता है। भारत ने यूक्रेन युद्ध में अमेरिका साथ देते हुए रूस की आलोचना नहीं की थी। इतना ही नहीं, भारत ने रूस से रिकॉर्ड पेट्रोलियम की खरीद भी की है। अमेरिका का तर्क है कि ऐसी खरीदारी से रूस के खिलाफ लगे प्रतिबंध कमजोर हो रहे हैं। वहीं, भारत का कहना है कि हमारे देश के लोगों की आय इतनी ज्यादा नहीं है कि वे यूरोपीय और अमेरिकी लोगों की तरह ज्यादा पैसे खर्च कर पेट्रोल और डीजल खरीद पाएं। ऐसे में जनता को सस्ता तेल उपलब्ध करने के लिए वह रूस से तेल आयात कर रहा है। अमेरिका इसी से चिढ़ा हुआ है और पाकिस्तान की मदद कर दिखाना चाहता है कि हम अब भी आपके दुश्मन को ताकतवर बना सकते हैं।