Friday, January 10, 2025
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आखिर इलेक्शन बॉन्ड के आंकड़ों से क्या पड़ सकता है असर? जानिए!

आज हम आपको बताएंगे कि इलेक्शन बॉन्ड के आंकड़ों से क्या फर्क पड़ सकता है! सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को इलेक्शन बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी सौंप दी है। चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर इस बात की पुष्टि की। निर्वाचन आयोग ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी और 11 मार्च, 2024 के आदेश के सिलसिले में एसबीआई को दिए गए निर्देशों के अनुपालन में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने निर्वाचन आयोग को 12 मार्च को चुनावी बॉन्ड पर डिटेल सौंपी है। अब सवाल है कि आखिर इन आंकड़ों और जानकारी से क्या सामने आएगा। जानते हैं इस मुद्दे से जुड़े कुछ जरूरी सवालों के जवाब। भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर बताया कि शीर्ष अदालत के आदेश के अनुपालन में, चुनाव आयोग को प्रत्येक चुनावी बांड की खरीद की तारीख, खरीदार का नाम और खरीदे गए चुनावी बांड का मूल्य की जानकारी दे दी गई है। हलफनामे में कहा गया है कि बैंक ने चुनाव आयोग को चुनावी बांड के नकदीकरण की तारीख, योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों के नाम और उक्त बांड के मूल्य के बारे में डिटेल भी पेश कर दी है। एसबीआई का कहना है कि डेटा 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच खरीदे और भुनाए गए बॉन्ड के संबंध में प्रस्तुत किया गया है।

चुनाव आयोग को दो काम करने हैं। पहला, 13 मार्च किसी समय ईसी की वेबसाइट पर पार्टियों में इलेक्शन बॉन्ड योगदान पर अपना डेटा अपलोड करना होगा। दूसरा, 15 मार्च शाम 5 बजे तक EC को इलेक्शन बॉन्ड पर SBI डेटा अपलोड करना होगा। पहला डेटा सेट पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपलोड करने के लिए कहा ताकि इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित सभी डेटा एक ही स्थान पर हो।

आवश्यक रूप से नहीं। इसके पीछे तीन कारण हैं। पहली वजह है यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह प्राप्तकर्ताओं के साथ दाताओं के मिलान के लिए नहीं कह रहा है। उदाहरण के लिए, यदि कंपनी X ने दर्शाया है कि उसने 100 रुपये का इलेक्शन बॉन्ड खरीदा है, और पार्टी Y ये कहती है कि हमे 100 रुपये मिले हैं, तो हम यह नहीं मान सकते कि X ने Y को दिया है। दूसरा, एसबीआई की तरफ से दिए गए डिटेल में प्रत्येक बॉन्ड को मिला ‘यूनिक नंबर’ शामिल हो भी सकता है और नहीं भी। यदि यह संख्या खरीददारों और प्राप्तकर्ताओं दोनों की जानकारी में है, तो किसी को भी पार्टियों को दिए गए दान का मिलान करने की अनुमति मिल जाएगी। तीसरा, यह मानते हुए भी कि यूनिक नंबर उपलब्ध हैं, हम डोनर की ‘सही’ कॉर्पोरेट पहचान के बारे में अधिक समझदार नहीं हो सकते हैं। क्योंकि जब इलेक्शन बॉन्ड पेश किए गए थे, तो कंपनी अधिनियम में संशोधन ने किसी भी कंपनी को, चाहे वह कितनी भी नई या कितनी घाटे में चल रही हो, इन बांडों को खरीदने की अनुमति दी थी। जैसा कि एक्सपर्ट कहते रहे हैं, यह प्रभावी रूप से एक बड़े कॉर्पोरेट को राजनीतिक फंडिंग के स्पष्ट उद्देश्य के लिए एक ‘शेल कंपनी’ स्थापित करने की अनुमति देता है। इसलिए, यदि आप देखते हैं, मान लीजिए, ‘फ्लेमिंगो’ नामक कंपनी एक बड़ी दाता है, और यदि आप ठीक से आश्वस्त हैं कि ‘फ्लेमिंगो’ एक स्थापित कंपनी नहीं है, तो यह पता लगाना मुश्किल हो सकता है कि कौन सा बड़ा कॉर्पोरेट दाता फ्लेमिंगो के पीछे है।

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में केंद्र की चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था। शीर्ष अदालत ने इसे ‘असंवैधानिक’ करार दिया। अदालत निर्वाचन आयोग को दानदाताओं, उनके द्वारा दान की गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का खुलासा करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह प्रणाली अपारदर्शिता का शीर्ष है। इसे हटाया जाना चाहिए। यह कैसे किया जाना है यह सरकार या विधायिका को तय करना है। यह मुख्य रूप से चंदा देने वालों को सक्रिय भूमिका में ला देता है। यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है। यह पहुंच नीति-निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है। इस बात की भी वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से पैसे और राजनीति के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण बदले की व्यवस्था हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से कहा था कि यहां तक कि आपके अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न भी संकेत देते हैं कि प्रत्येक खरीदारी के लिए आपके पास एक अलग केवाईसी होनी चाहिए। इसलिए, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि जब भी कोई खरीदारी करता है, तो केवाईसी अनिवार्य होता है। एसबीआई ने 2018 में योजना की शुरुआत के बाद से 30 किस्त में 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बॉण्ड जारी किए। एसबीआई ने विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक का समय मांगा था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने बैंक की याचिका खारिज कर दी और उसे मंगलवार को कामकाजी समय समाप्त होने तक सभी विवरण निर्वाचन आयोग को सौंपने को कहा था। राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में चुनावी बॉन्ड पेश किया गया था। चुनावी बॉन्ड की पहली बिक्री मार्च 2018 में हुई थी।

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