आखिर क्या है न्‍यूक्लियर फ्यूजन रिएक्‍टर?

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आज हम आपको न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर के बारे में बताने जा रहे हैं! साफ-सुथरी ऊर्जा के लिए एक न्‍यूक्लियर फ्यूजन रिएक्‍टर तैयार करने की कोशिशें दशकों से हो रही हैं। यह उम्‍मीद की ऐसी किरण है जिसकी खोज में दुनियाभर के वैज्ञानिक लगे थे। हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सफलता पा ली है। कैलिफोर्निया के लॉरेंस लिवरमोर नैशनल लैबोरेटरी में यह ब्रेकथ्रू मिला। एक एक्‍सपेरिमेंटल फ्यूजन रिएक्‍टर से वैज्ञानिकों ने ‘नेट एनर्जी गेन’ हासिल किया। क्‍लीन एनर्जी की दिशा में इसे गेमचेंजर की तरह देखा जा रहा है। सफल प्रयोग की अहमियत इस बात से समझें कि पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी फ्यूजन रिएक्‍टर ने जितनी एनर्जी खपाई, उससे कहीं ज्‍यादा पैदा की। अमेरिकी वैज्ञानिकों की यह कामयाबी कैसे दुनिया को बेहतर, सुरक्षित बना सकती है, जीवाश्‍म ईंधनों पर निर्भरता खत्‍म करा सकती है, आइए विस्‍तार से समझते हैं। दो तरह के न्यूक्लियर रिएक्‍शंस से एनर्जी पैदा होती है- फिशन और फ्यूजन। हिंदी में इन्‍हें नाभिकीय विखंडन और नाभिकीय संलयन कहते हैं। न्यूक्लियर फिशन पर आधारित पावर प्‍लांट्स से एनर्जी 1950s से पैदा की जा रही है। भारत के पास भी ऐसे कई न्‍यूक्लियर पावर प्‍लांट्स हैं। हालांकि, दुनियाभर के वैज्ञानिक सालों से न्यूक्लियर फ्यूजन पर आधारित रिएक्‍टर डिवेलप करने की कोशिश में जुटे हैं। नाभिकीय संलयन पर आधारित रिएक्‍टर से साफ-सुथरी और सुरक्षित ऊर्जा मिल सकती है, वह भी प्रचुर मात्रा में। इसके जरिए इंसान जीवाश्‍म ईंधनों पर निर्भरता खत्म कर सकता है जिनका अंधाधुंध दोहन जलवायु के लिए संकट बन चुका है।

फ्यूजन या संलयन वह न्‍यूक्लियर प्रक्रिया है जिससे सूर्य और बाकी तारे ऊर्जा पैदा करते हैं। इसमें दो परमाणु जुड़कर एक भारी तत्व का परमाणु बनाते हैं। उदाहरण के तौर पर, सूरज के भीतर हाइड्रोजन के दो परमाणु मिलते हैं और हीलियम के परमाणु में बदल जाते हैं। ताजा खोज से पता चला है कि एक कॉमर्शियल पावर प्लांट में भी इसी प्रोसेस से ऊर्जा पैदा करना संभव हो सकता है।फिशन और फ्यूजन, दोनों में ही परमाणु के नाभिक में मौजूद प्रोटॉन्‍स और न्यूट्रॉन्स की बाइंडिंग एनर्जी का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा की जाती है। दोनों के बीच बड़ा अंतर यह है कि जहां फिशन में भारी और अस्थिर नाभिक टूटकर दो छोटे नाभिकों में तोड़ा जाता है। वहीं, फ्यूजन में दो हल्के नाभिकों को जोड़ा जाता है।

न्यूक्लियर फिशन रिएक्टर में यूरेनियम का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता है। यूरेनियम इतनी आसानी से नहीं मिलता। जब यूरेनियम के परमाणु पर न्यूट्रॉन रेडिएशन की बमबारी की जाती है तो वह बेरियम और क्रिप्टॉन जैसे तत्‍वों के छोटे परमाणुओं में टूट जाता है। इससे और न्यूट्रॉन रेडिएशन पैदा होता है जिसकी वजह से यूरेनियम के और परमाणु टूटते चले जाते हैं। नतीजा चेन रिएक्शन होता है। जो ऊर्जा पैदा होती है, उसका इस्‍तेमाल पानी उबालकर भाप बनाने और बिजली बनाने के लिए टरबाइन चलाने में होता है।

न्यूक्लियर फिशन या नाभिकीय विखंडन के साथ सबसे बड़ी समस्‍या रेडिएशन की है। इसके बाय-प्रोडक्‍ट्स हजारों साल तक रेडियोऐक्टिव रहते हैं। उन्‍हें ठिकाने लगाने के लिए खास इंतजाम करने पड़ते हैं। रिएक्‍टर में हादसे के चलते वातावरण में रेडियोऐक्टिव पदार्थ मिलने का खतरा रहता है। ऐसा ही कुछ 1979 में थ्री माइल आइलैंड और 1986 में चेर्नोबिल में हुआ। दोनों दुर्घटनाएं न्यूक्लियर फिशन रिएक्‍टर में हादसे का नतीजा थीं।

फिलहाल दुनिया की ऊर्जा की जरूरत का करीब 10% न्‍यूक्लियर फिशन से आता है। world-nuclear. org के अनुसार, दुनियाभर में ऐसे करीब 440 रिएक्‍टर्स हैं। 50 से ज्‍यादा देशों में करीब 220 रिसर्च रिएक्‍टर्स भी हैं जो मेडिकल और इंडस्ट्रियल आइसोटोप्‍स तैयार करते हैं। 92 रिएक्‍टर्स के साथ, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर एनर्जी प्रोड्यूसर है। न्यूक्लियर फ्यूजन में न्यूक्लियर फिशन से कहीं ज्यादा ऊर्जा पैदा हो सकती है, वह भी घातक रेडियोऐक्टिव बाय-प्रोडक्‍ट्स के बिना। अभी तक, लैब के भीतर फ्यूजन रिएक्‍शंस ट्रिगर करना टेढ़ी खीर साबित होता आया है क्योंकि नाभिकों को जोड़ने के लिए अत्यधिक दबाव और तापमान की जरूरत पड़ती है। फ्यूजन रिएक्शन के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा चाहिए होती है क्योंकि यह 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस या उससे ऊंचे तापमान पर होता है। यह खुद से होता रहे, उसके लिए जरूरी है कि जितनी ऊर्जा भीतर जाए, उससे कहीं ज्यादा पैदा हो। एक बार फ्यूजन का कॉमर्शियलाइजेशन हो गया तो हम कार्बन-फ्री बिजली बना सकते हैं।

न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर से बिना किसी रेडियोऐक्टिव बाय-प्रोडक्‍ट्स के साफ-सुथरी ऊर्जा मिल पाना संभव है। इससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में खासी मदद मिलेगी। दूसरा, चूंकि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्‍टर्स को बस हाइड्रोजन की जरूरत पड़ती है और वह प्रचुर मात्रा में उपलब्‍ध है तो इन्‍हें कहीं भी सेटअप किया जा सकता है। ‘द फ्यूजन इंडस्ट्री एसोसिएशन’ का कहना है कि 2030s तक न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए पावर ग्रिड्स में बिजली सप्लाई संभव हो सकेगी।