आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्रॉस वोटिंग क्या होती है? जिसकी चर्चा हर चुनाव में है… हाल ही में 56 राज्यसभा सीटों पर राज्यसभा चुनाव संपन्न कर लिए गए,लेकिन इसी बीच क्रॉस वोटिंग एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ था कि आखिर यह क्रॉस वोटिंग होती क्या है? जिसके कारण कई नेता हार जाते हैं, तो कई नेता जीत जाते हैं… तो आज हम आपको इसी क्रॉस वोटिंग के बारे में जानकारी देने वाले हैं… साथ यह भी बताने वाले हैं कि आखिर क्रॉस वोटिंग हमारे राजनीतिक इतिहास में कब-कब हुई है और उससे क्या-क्या प्रभाव पड़े हैं? आपको बता दें कि क्रॉस वोटिंग का मतलब समझने के लिए पहले जानते हैं कि राज्यसभा चुनाव कैसे होते हैं. हर राज्य की आबादी के आधार पर राज्यसभा सांसदों की सीटें तय हैं. राज्य के विधायक वोट देकर अपना राज्यसभा सांसद चुनते हैं. राज्य में राज्यसभा सांसद की सीटों और विधायकों की संख्या के आधार पर तय होता है कि जीत के लिए एक सदस्य को कितने मत चाहिए होते हैं. जैसे कि यूपी में 399 विधायक हैं और 10 सीटों पर राज्यसभा सांसद का चयन होना है. ऐसे में एक उम्मीदवार को जीत के लिए कम से कम 37 वोट मिलना जरूरी है… राज्यसभा चुनाव के दौरान हर पार्टी के विधायक अपना मत तय करते हैं और इसे पार्टी के मुखिया को दिखाते हैं. इसके बाद उसे सभापति के पास जमा कर दिया जाता है. जब विधायक अपनी पार्टी के उम्मीदवार की बजाय किसी अन्य उम्मीदवार को वोट दे देता है, तो उसे क्रॉस वोटिंग कहते हैं. 27 फरवरी को हुए राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के विधायकों के क्रॉस वोटिंग करने के आसार थे… क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक को पार्टी से निकाला भी जा सकता है. हालांकि, राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग होती रही है…. बता दें कि पहली बार 1998 में क्रॉस वोटिंग हुई थी. कांग्रेस प्रत्याशी की हार के बाद ओपेन बैलेट का नियम भी लाया गया, जिसके कारण हर विधायक को अपना मत पार्टी के मुखिया को दिखाना होता है, लेकिन क्रॉस वोटिंग अभी भी होती है. 2022 में हरियाणा के कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी. वह बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. इसी चुनाव में राजस्थान से बीजेपी नेता शोभारानी कुशवाह ने भी क्रॉस वोटिंग की थी. वह भी पार्टी से निकाल दी गईं…. यही नहीं 2016 में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के छह नेताओं ने बीजेपी के लिए क्रॉस वोटिंग की थी. पार्टी ने सभी को निष्कासित कर दिया था. 2017 में कांग्रेस की अपील पर दो नेताओं के वोट खारिज हो गए थे, क्योंकि इन दोनों ने अपना बैलेट पेपर अमित शाह को दिखाया था. इसके बाद कांग्रेस के अहमद पटेल राज्यसभा सांसद बने थे…. यानी सीधी सी बात यह है कि क्रॉस वोटिंग अपने पार्टी के बजाय किसी अन्य पार्टी के नेता को वोट देने से है… यानी क्रॉस वोटिंग करने से है… इसके बाद विधायकों को हटाया जा सकता है या फिर विधायक स्वयं ही उस पार्टी को छोड़ सकते हैं!
बता दे कि संविधान के मुताबिक, राज्यसभा चुनावों में राजनीतिक दलों की ओर से व्हिप तो जारी किया जा सकता है, लेकिन ये बेअसर ही होता है. दरअसल, पार्टी की ओर से जारी व्हिप को मानना या ना उसके खिलाफ जाना पूरी तरह से विधायकों और सांसदों की मर्जी पर निर्भर करता है. वहीं, राज्यसभा चुनावों में पार्टी लाइन के खिलाफ मतदान करने पर दलबदल कानून भी लागू नहीं होता है. बता दें कि राज्यसभा में सांसदों की ज्यादा से ज्यादा संख्या होना हर पार्टी के लिए जरूरी है, क्योंकि इसी संख्या के आधार पर राष्ट्रपति चुनाव में हर दल अपनी दावेदारी पेश करता है. राष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा के सदस्यों की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है!
सबसे पहले जानते हैं कि क्रॉस वोटिंग क्या है औऱ ऐसा करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है? क्रॉस वोटिंग का मतलब है कि अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर दूसरी पार्टी के पक्ष में वोट करना. आमतौर पर दुनियाभर में राजनीतिक दलों के बीच संसद या महत्वपूर्ण मामलों में क्रासवोटिंग के उदाहरण हैं. हालांकि, पार्टियां इसे व्हिप जारी कर रोकने की पूरी कोशिश करती हैं. हालांकि, कई बार राजनीतिक दलों को इसमें नाकामी मिलती है. राज्यसभा चुनावों में दलबदल कानून लागू नहीं होने के कारण क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती हैं. साफ है कि हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में पार्टी लाइन के खिलाफ जाने वाले विधायकों पर पार्टी नेतृत्व कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगा!