आखिर कैसी है भारत की नई विदेश नीति?

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आज हम आपको भारत की नई विदेश नीति के बारे में जानकारी देने वाले हैं! हमारे लिए अमेरिका से राब्ते में रहने, चीन को रोकने, यूरोप से फायदा उठाने, रूस को भरोसे में रखने, जापान से गलबहियां करने, पड़ोसियों को लुभाने, पड़ोस एवं समर्थन के पारंपरिक क्षेत्रों का विस्तार करने का समय है।’ विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पुस्तक ‘द इंडिया वे’ में लिखे इस एक वाक्य से नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति की बहुआयामी झलक मिल जाती है। इसे जमीन पर परखने की कोशिश करेंगे तो पता चलेगा कि मोदी सरकार बिल्कुल इसी नजरिए से भारत की विदेश नीति को बढ़ा रही है। बीते 10 वर्षों में भारत के विदेशों से विकसित हो रहे संबंधों का जायजा लेते हैं तो कुछ प्रमुख बिंदु स्पष्ट रूप से उभरते हैं। वो यह कि भारत ने विदेशों के साथ संबंधों में ‘संतुलन’ साधने की पुरजोर कोशिश की है। वक्त की मांग समझते हुए भारत ने जिसे दंडित किया तो उसकी मदद भी की। पाकिस्तान इसका बड़ा उदाहरण है। इसी तरह, आपदा में तुर्किये की मदद के लिए सबसे पहले अपनी टीम भेजकर भारत ने दुनिया को यह बताया कि मतभेद अपनी जगह, लेकिन मानवीय सहायता की दरकार में भारत हमेशा सबसे भरोसेमंद है। यही भारत की पहचान है। लेकिन इस पहचान के साथ एक नया पहलू भी जुड़ा है- छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं। चीन-पाकिस्तान जैसे देशों के प्रति भारत के कठोर रुख ने दुनिया को बिल्कुल सटीक संदेश दे दिया है। तो आइए, मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल का जायजा लेने की कड़ी में आज भारत की ‘विदेश नीति’ के इन्हीं पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं। पहले बात उदारता की। जयशंकर अपनी पुस्तक ‘द इंडिया वे’ में एक जगह लिखते हैं, ‘मानवीय सहायता और आपदा में मदद उदार रुख प्रदर्शित करने का एक स्पष्ट तरीका है।’ कोरोना वायरस से पैदा हुई वैश्विक महामारी कोविड-19 ने दुनिया के सामने मानवता की रक्षा का सबसे बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया तब भारत इसका हल ढूंढने में जुट गया। इसने न सिर्फ अपने लिए बल्कि पूरे विश्व को ध्यान में रखकर समाधान ढूंढने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और जब वैक्सीन के रूप में वह समाधान मिला तो इसे सबके लिए सुलभ करने का बीड़ा भी उठाया। भारत ने कोविड के दौरान ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के जरिए 100 से अधिक देशों को टीके और 150 से अधिक देशों को दवाइयां दीं। वैश्विक व्यवधानों के दौरान विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं पर भारत की ऐसी पहल ने साझेदार देशों के साथ विश्वास को बढ़ावा दिया है।

दूसरी तरफ, तुर्किये जैसे विरोधी देश में आपदा आई तब भारत ने मानवता की रक्षा में दौड़ पड़ा। पिछले साल फरवरी में तुर्किये में भयंकर भूकंप आया। उस वक्त भारत ने दुनिया के किसी और देश से पहले मदद भेजी। एनडीआरएफ सर्च एंड रेस्क्यू टीम, डॉग स्क्वॉड, मेडिकल सप्लाई, ड्रिलिंग मशीन और अन्य उपकरण तुर्किये भेजे गए। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर हुआ। इसके बाद भी जब तुर्किये ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ जहर उगला तो मोदी सरकार की पहल पर सवाल उठने लगे। एक राय यह सामने आई कि भारत के प्रति दुश्मनी के भाव के कारण तुर्किये इस तरह की उदारता के लायक नहीं है। लेकिन द इंडिया वे में एस. जयशंकर लिखते हैं, ‘दुनिया को यह जरूर बताया जाना चाहिए कि सीमित संसाधनों के बावजूद हमने दूसरों को आर्थिक मदद और ट्रेनिंग मुहैया कराई। दुनिया के साथ हमारे बढ़ते राब्ते को महज हमारी महत्वाकांक्षा के चश्मे से देखना सही नहीं, इसके बहुत अलग और गंभीर मायने हैं।’

जयशंकर के इस विचार की पुष्टि 19 पाकिस्तानी नागरिकों को सोमालिया के समुद्री डाकुओं के चंगुल से छुड़ाए जाने की घटना से भी होती है। इसी वर्ष जनवरी में भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस सुमित्रा ने पाकिस्तानी मछुआरों के जहाज अल नाईमी को समोलियाई डाकुओं से मुक्त कराया। उस जहाज के चालक दल में 19 पाकिस्तानी नागरिक थे। भारतीय सैनिक उस पाकिस्तान के नागरिकों की जान बचाने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी जिसने भारत को आतंकवाद का दर्द दिया। आज भी वह भारत की बर्बादी के सपने देखता है। मोदी सरकार में भारत ने पाकिस्तान की इस बीमारी का इलाज भी वक्त-वक्त पर किया है। वो चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक, मोदी सरकार ने पाकिस्तान को साफ संदेश दे दिया कि वो ‘जैसा करेगा, वैसा भरेगा।’ उड़ी अटैक के बाद भारतीय सेना ने 29 सितंबर, 2016 को पाकिस्तान के अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक किया था। पाकिस्तान उसके बाद भी पुलवामा में सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हमला करवा दिया। इसके जवाब में 26 फरवरी, 2019 को बालाकोट एयरस्ट्राइक हुआ।इस कार्रवाई में भारत ने पाकिस्तान के करीब 300 आतंकी मार गिराए। मतलब साफ है, अब यह संभव नहीं कि भारत के खिलाफ साजिश को अंजाम देकर पाकिस्तान चैन से बैठ जाए। उसकी हरकतों पर बीते 10 वर्षों से मुंहतोड़ जवाब मिल रहा है।

मोदी सरकार की उदार विदेश नीति के नमूने खाड़ी देशों के साथ भारत के मौजूदा रिश्तों में देखे जा सकते हैं। अरब के मुस्लिम देश ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान के समर्थक और भारत के अनिवार्य विरोधी रहे। मोदी सरकार ने विदेश नीति में उदारता का भाव भरकर इस स्थिति को उलट दिया। सऊदी अरब, यूएई, बहरीन से लेकर कई देश आज भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने को प्राथमिकता दे रहे हैं। कई देशों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा। यहां तक कि यूएई ने पीएम मोदी के आग्रह पर भव्य मंदिर बनाने की न केवल अनुमति दी बल्कि वहां के राज परिवार ने जमीन भी मुहैया कराई। भारत के मुस्लिम देशों के साथ सुधरे संबंधों का ही नतीजा है कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने लाख प्रॉपगैंडा किया लेकिन किसी खाड़ी देश का उसे मनमाफिक समर्थन नहीं मिला। मुस्लिम देशों के संगठन आईओसी ने जरूर भारत के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पास किए, लेकिन वो औपचारिकता से बढ़कर और कुछ नहीं हैं।