आज हम आपको नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के बारे में जानकारी देने वाले हैं! हाइड्रोजन पृथ्वी पर उपलब्ध सबसे साफ ईंधन है। समस्या यह है कि लगभग सारी हाइड्रोजन किसी दूसरे तत्व के साथ गुंथी हुई है। फिर चाहे वह पानी हो या हाइड्रोकार्बन्स। अभी खालिस हाइड्रोजन निकालने में वातावरण प्रदूषित होता है लेकिन जल्द ही ऐसा नहीं होगा। ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ से दुनिया को साफ करने का रास्ता मिल सकता है। भारत ने इस दिशा में पहल की है। पिछले दिनों नैशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी मिली। भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में सबसे आगे निकल जाए। ग्रीन हाइड्रोजन में ‘विश्वगुरु’ बनकर भारत एक साफ-सुथरी दुनिया का सपना साकार करने में अहम भूमिका निभा सकता है। सोलर या विंड पावर प्रोजेक्ट्स की बिजली के इस्तेमाल से पानी को इलेक्ट्रोलाइज कर निकाली जाने वाली हाइड्रोजन को ‘ग्रीन’ हाइड्रोजन या GH2 कहते हैं। GH2 या ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे साफ ईंधन माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके उत्पादन या इस्तेमाल से कोई कार्बन फुटप्रिंट नहीं छूटता। लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में काफी ऊर्जा खर्च होती है।
रंग से पता चलता है कि हाइड्रोजन कहां से निकाली गई है। फिलहाल नैचरल गैस से निकाली जाने वाली ग्रे हाइड्रोजन सबसे ज्यादा यूज होती है। कोयले के गैसीयकरण से भूरी (ब्राउन) हाइड्रोजन निकलती है। इस प्रक्रिया से बाई-प्रोडक्ट के रूप में ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं। ब्लू हाइड्रोजन को कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज फैसिलिटीज में बंद ग्रीन हाउस गैसों से निकाला जाता है। फिलहाल हाइड्रोजन का इस्तेमाल तेल रिफाइनरियों, स्टील, फर्टिलाइजर्स, बल्क केमिकल्स जैसी बड़ी इंडस्ट्रीज में होता है। एक अहम इस्तेमाल इसे CNG और PNG से ब्लेंड करना होगा ताकि उनके उत्सर्जन को साफ किया जा सके। नवंबर 2020 में तीसरी रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टर्स मीट में पीएम नरेंद्र मोदी ने खासा सामने रखा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2021 को बजट भाषण में रोडमैप दिखाया। 17 फरवरी, 2022 को ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया की नीतियों में बदलाव को नोटिफाई किया। इस साल 4 जनवरी को कैबिनेट ने बाजार में कदम रखने के लिए इंसेंटिव पैकेज को मंजूरी दी।
क्लाइमेट ऐक्शन और एनर्जी ट्रांजिशन में भारत की पोजिशन मजबूत करना। साथ ही एनर्जी इम्पोर्ट्स पर निर्भरता कम करना। ग्रीन हाइड्रोजन से भारत अपने ऊर्जा आयात बिल में 1 लाख करोड़ रुपये तक की बचत कर सकता है। परंपरागत ईंधन की जगह इसके इस्तेमाल से महंगी गैस के शिपमेंट्स में 68% तक की कटौती हो सकती है। सरकार का लक्ष्य है कि भारत 2030 तक ग्लोबल GH2 डिमांड के 10% तक पहुंच जाए।
ग्रीन हाइड्रोजन के दाम कई फैक्टर्स पर निर्भर करते हैं- सोर्स, बाजार की स्थितियां और करेंसी रेट्स। अभी ग्रीन हाइड्रोजन पर 300 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत आती है। नैचरल गैस से ग्रे हाइड्रोजन निकालने पर औसत 130 रुपये/किलो की लागत आती है लेकिन यूक्रेन संकट के बाद से यह 200-250 रुपये/किलो हो गई है। 2 बिलियन डॉलर से थोड़ा ज्यादा। ज्यादातर रकम 15 गीगावॉट्स की घरेलू इलेक्ट्रोलाइजर मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी को बढ़ाने में खर्च होगी। सरकार को उम्मीद है कि 2030 तक भारत की क्षमता 60 GW की हो जाएगी जो दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। बाकी बचे पैसों का इस्तेमाल स्ट्रैटीजिक इन्वेशंस के लिए होगा।
आधिकारिक दस्तावेज बताते हैं कि कम से कम 25 देश ग्रीन हाइड्रोजन के लिए काम कर रहे हैं। जर्मनी ने सबसे ज्यादा 10.3 बिलियन डॉलर की पेशकश की है। अमेरिका 9 बिलियन डॉलर, फ्रांस 8.2 बिलियन डॉलर और यूरोपियन यूनियन 4.3 बिलियन डॉलर दे रहा है। सरकारी कंपनियों- इंडियन ऑयल और GAIL ने कॉमर्शियल स्केल पर ग्रीन हाइड्रोजन प्लान्स की घोषणा की है। इसी हफ्ते NTPC देश की पहली ऐसी इकाई बनी जिसने PNG में GH2 ब्लेंड किया है। GAIL और IOC ने भी CNG को ग्रे हाइड्रोजन संग ब्लेंड करने के पायलट प्रोजेक्ट्स चला रखे हैं। ऑयल इंडिया लिमिटेड ने असम के काजीरंगा नैशनल पार्क में हाइड्रोजन बसें चलाई हैं। प्राइवेट सेक्टर की बात करें तो रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, अडाणी ग्रुप, ACME ग्रुप जैसे बड़े समूहों की ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर के लिए बड़ी योजनाएं हैं।
हाइड्रोजन बेहद ज्वलनशील है क्योंकि इसका ऊर्जा घनत्व काफी ज्यादा होता है। इसे ट्रांसपोर्ट या स्टोर करने में खतरा है। ऐसे में दो विकल्प हैं- इस्तेमाल वाली जगह के पास GH2 प्लांट्स लगाए जाएं और ग्रीन पावर को दूर से लाया जाए। या फिर गैस को लिक्विड अमोनिया में कन्वर्ट करके ट्रांसपोर्ट किया जाए। दोनों विकल्पों का असर प्रोजेक्ट्स की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।