Monday, December 23, 2024
HomeIndian Newsआखिर क्या है अशोक गहलोत की सबसे बड़ी ताकत?

आखिर क्या है अशोक गहलोत की सबसे बड़ी ताकत?

आज हम आपको अशोक गहलोत की सबसे बड़ी ताकत बताने वाले हैं! राजस्थान विधानसभा चुनाव में किसी के पक्ष या किसी के विरोध की लहर है? अब तक तो ऐसा नहीं कहा जा सकता। गहलोत सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है, लेकिन प्रदेश में भाजपा बहुत ही नीरस और गुटबाजी से ग्रस्त है। यह राजस्थान की राजनीति के लिए अजूबा नहीं है। आइए हम पिछले सर्वे डेटा से दो व्यापक बिंदुओं पर संक्षेप में विचार करें। पहला, राजस्थानी मतदाताओं का एक बड़ा बहुमत मतदान के बहुत करीब आ जाने पर फैसला करता है कि वह वोट किसे देगा। दूसरा, उम्मीदवारों का चयन महत्वपूर्ण है। लगभग एक-तिहाई से आधे मतदाता मूलतः अपने स्थानीय उम्मीदवारों के लिए वोट करते हैं। पिछले दो दशकों में लगभग 20% ने लगातार निर्दलीय या तीसरे पक्ष के उम्मीदवारों को वोट दिया है। भाजपा और कांग्रेस, दोनों की रणनीति इन पालाबदल मतदाताओं को लुभाने की रही है। हालांकि, इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण बदलाव दिख रहा है। दोनों ही दलों का फोकस एक करिश्माई या भरोसेमंद व्यक्तित्व को आगे करके वोट पाने पर है। कांग्रेस ने इसके लिए सीएम अशोक गहलोत का चेहरा आगे किया है तो भाजपा ने पीएम नरेंद्र मोदी को ही तुरूप का इक्का बना रखा है।

राजस्थान की राजनीति में ‘दरबारी’ साजिश और पार्टियों के अंदर बगावत का इतिहास रहा है। 1980 के दशक में कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री हुए, जो बारी-बारी से पद पर रहे। उदाहरण के लिए, राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया को गांधी हाईकमान ने गुटबाजी को संतुलित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। उस समय राजस्थान कांग्रेस के अंदर खेमेबंदी में ब्राह्मण और जाट अभिजात्य वर्ग का प्रभुत्व था।

1990 के दशक में भैरों सिंह शेखावत, अशोक गहलोत और बाद में वसुंधरा राजे जैसे नेताओं के बीच आम सहमति बनी कि एक-दूसरे के खिलाफ विद्रोह को हवा नहीं देनी है। सोचिए कि कैसे गहलोत ने 2020 में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के तख्तापलट के प्रयास से न केवल ‘चमत्कारिक’ तरीके से बच गए, बल्कि पार्टी हाईकमान की तरफ से अपने खिलाफ चली मुहीम को भी बेअसर कर दिया।

इन घटनाओं के बाद गहलोत राजस्थान की राजनीति के आला नेता के रूप में उभरे हैं। यह बात कांग्रेस पार्टी के टिकट वितरण में भी महसूस की जा सकती है। भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला देते हुए मौजूदा विधायकों के टिकटों में भारी कटौती की मांग उठ रही है। यहां तक कि कांग्रेस के आंतरिक सर्वेक्षणों ने बड़ी संख्या में सीटों पर निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर घोर असंतोष की ओर इशारा किया है। फिर भी, गहलोत अपने अधिकांश विधायकों और मंत्रियों को बनाए रखने में कामयाब रहे हैं, और संभवतः वो उन बीएसपी एवं निर्दलीय विधायकों को भी टिकट दिलवा देंगे जो उनके प्रति वफादार हैं।

सचिन पायलट के समर्थकों का भी ख्याल रखा गया है, लेकिन पार्टी ने जैसा टिकट बंटवारा किया है, उससे लगता नहीं कि पायलट ने जो गहलोत सरकार में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था, उसे तवज्जो मिली है। आरोप है कि गहलोत ने अपने विधायकों को व्यक्तिगत वफादारी के बदले में छूट दी है। दूसरी ओर, यह कहा जाता है कि मुख्यमंत्री को नौकरशाही के माध्यम से अपनी कल्याणकारी योजनाओं को चलाने की छूट मिली है और पार्टी संगठन के कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। ये कल्याणकारी योजनाएं – जैसे ‘महंगाई राहत’ शिविर जो रियायती सामान प्रदान करते हैं – स्विंग वोटर्स और गरीबों के बीच गहलोत के प्रति एक वर्ग में भरोसा बढ़ाती हैं।

चुनाव अभियान पर गहलोत के वर्चस्व के प्रति पायलट के समर्पण में उनकी कमजोरी साफ झलकती है। आखिरकार, हाईकमान ने बार-बार साफ किया है कि कांग्रेस गहलोत के नेतृत्व में और उनकी सामाजिक कल्याणकारी योजना को आगे रखकर ही चुनाव लड़ रही है। पायलट संभवतः पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी वाले प्रयोग की विफलता से हताश हो गए हैं। वो राजस्थान में तीन दशक से कांग्रेस की राजनीति पर गहलोत के कब्जे से छुटकारा चाहते हैं।

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान में काफी लोकप्रिय हैं, इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सबसे तगड़ा मुकाबला उन्हीं से है। पहली सूची में भाजपा ने कई सांसदों को विधानसभा के चुनाव मैदान में उतार दिया है जो प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत दूत के रूप में प्रभावी रूप से चुनाव लड़ेंगे। संदेश स्पष्ट है: भाजपा राजस्थान चुनाव को राष्ट्रीय चुनाव के लिए एक सेमीफाइनल के रूप में लड़ रही है और पीएम मोदी एक व्यक्तिगत जनादेश की तलाश कर रहे हैं।

भाजपा का चुनावी तर्क अपेक्षाकृत सरल है। 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने राजस्थान में 59% वोट हासिल किए थे। यह 2018 के राज्य चुनाव में उनके वोट शेयर में 20 प्रतिशत अंक की वृद्धि थी। इसके अलावा, मोदी की अपील उन निर्वाचन क्षेत्रों पर जबर्दस्त असर डालती है जिन्हें लक्ष्य बनाकर भाजपा अभियान चला रही है।

संकेत के लिए, राजस्थान में राजपूत और बनिया को भाजपा का मतदाता माना जाता है, ठीक वैसे जैसे कि दलितों और मुसलमानों को कांग्रेस के मतदाता माना जाता है। स्विंग वोटर्स ब्राह्मण, जाट, ओबीसी और आदिवासी हैं। 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों के बीच इन मोदी समर्थक मतदाताओं के वोट शेयर में उछाल की तुलना करें: ब्राह्मणों में 45% से 82%, जाटों में 26% से 85%, ओबीसी में 46% से 72% और आदिवासियों में 40% से 55%। इस प्रकार, भले ही इस चुनाव में स्विंग बहुत बड़ा नहीं हो, लेकिन भाजपा को लगता है कि मोदी का चेहरा आगे करके चुनाव लड़ना ही फायदेमंद होगा।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments