आखिर क्या है भारत में गरीबी का हाल?

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आज हम आपको भारत में गरीबी का हाल बताने वाले हैं! गरीब सिर्फ वह नहीं होता जिसकी आमदनी बहुत कम होती है बल्कि इसका संबंध रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ शिक्षा की उपलब्धता से भी है। भारत में वर्ष 2005-06 और 2015-16 के बीच गरीब आबादी को ये सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में बेशक प्रगति की, लेकिन उसके बाद से इस तरह बढ़ रहे कदम की रफ्तार धीमी हो गई। इसके पीछे कई वजहे हैं।  देश अपने यहां गरीबों की गिनती लोगों की आय के आधार पर करता है। वो यह तय करते हैं कि बेसिक कैलरी लेवल का खाना जुटाने के लिए औसतन कितनी आमदनी की जरूरत होती है। उसी के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण कर दिया जाता है। इस स्तर से कम कमाने वाला हर व्यक्ति गरीब है। गरीबी रेखा निर्धारण के इस पैमाने में एक खामी है। वो यह कि वह गरीबी के अन्य आयामों को नजरअंदाज कर देता है। उदाहरण के लिए, एक तरफ बेघर व्यक्ति और दूसरी तरफ वो जिसके पास बिजली कनेक्शन वाला हवादार मकान हो, दोनों ही आमदनी के आधार पर गरीबी रेखा से नीचे हो सकते हैं, लेकिन सच्चाई में बेघर व्यक्ति की हालत मकान वाले के मुकाबले बदतर है।

यूएनडीपी का वैश्विक बहुआयामी गरीबी आय के अलावा गरीबी के अन्य पहलुओं पर भी गौर करता है। इसके सबसे हालिया संस्करण में भारत के बारे में चिंताजनक नतीजे दिए हैं। इसमें कहा गया है कि भले ही वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच बहुआयामी गरीबी MDP 2.7 प्रतिशत अंक पर्सेंटेज पॉइंट या पीपी प्रति वर्ष की औसत दर से गिरी, लेकिन वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच आंकड़ा 2.3 प्रतिशत अंक रह गया। आंकड़े में यह गिरावट इसलिए संभव है कि बाकी गरीब परिवार दूरदराज या सबसे गरीब इलाकों में स्थित हैं। साथ ही, 2019-21 की अवधि में वैश्विक महामारी कोविड का भी असर रहा है।

यूं तो नीति आयोग और यूएनडीपी, दोनों अपनी रिपोर्ट में बहुआयामी गरीबी की गणना करने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करते हैं, लेकिन दोनों के गणना का सिस्टम अलग है। यही वजह है कि दोनों की रिपोर्ट में गरीबी को लेकर अलग-अलग आंकड़े हैं। नीति आयोग का अनुमान है कि 2015-16 और 2019-21 के बीच 13.5 करोड़ लोग एमडीपी से बच गए जबकि यूएनडीपी ने इसे 14 करोड़ बताया है।

2005-06 में 55% से थोड़ा अधिक भारतीयों को बहुआयामी रूप से गरीब माना गया था। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, यह अनुपात 2015-16 में घटकर 27.7 प्रतिशत और 2019-21 में 16.4 प्रतिशत रह गया। 2015-16 और 2019-21 के बीच गिरावट की धीमी दर के बावजूद जनसंख्या वृद्धि के कारण 2005-06 और 2015-16 के बीच के वर्षों की तुलना में इस अवधि के दौरान सालाना अधिक लोग बहुआयामी गरीबी एमडीपी से बच गए।अधिकांश देशों में प्राथमिक शिक्षा की अवधि है। वह परिवार भी वंचित माना जाता है कि जिसका स्कूली उम्र वाला बच्चा उस उम्र तक स्कूल नहीं जाता है जिस उम्र में वह 8वीं कक्षा पूरी कर ले।

इस आयाम में पोषण और बाल मृत्यु दर शामिल हैं। इस पैमाने में यदि किसी परिवार में अविकसित उम्र के लिहाज से कम शारीरिक आकार का या कम वजन वाला बच्चा, या फिर कम बॉडी मास इंडेक्स वाला वयस्क है तो उस परिवार को गरीब माना जाता है। इसी तरह, जिस परिवार में सर्वे से पहले पांच वर्षों के भीतर किसी बच्चे की मृत्यु हो गई है, उसे भी गरीब ही माना जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, 2005-06 में 44.3% भारतीय परिवार उचित पोषण से वंचित थे। 2015-16 में कुपोषण की दर 21.1 प्रतिशत थी जो 2019-21 में 11.8 प्रतिशत तक गिर गई। 2005-06 और 2015-16 के बीच गिरावट की औसत दर 2.3 पीपी प्रति वर्ष और अगले पांच वर्षों में 1.9 पीपी थी। बाल मृत्यु दर 2005-06 में 4.5% से गिरकर 2015-16 में 2.2% और 2019-21 में 1.5% हो गई।

वह परिवार वंचित या गरीब माना जाता है जिसमें 10 वर्ष या उससे अधिक आयु के किसी भी सदस्य ने कम से कम छह साल की स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है, जो अधिकांश देशों में प्राथमिक शिक्षा की अवधि है। वह परिवार भी वंचित माना जाता है कि जिसका स्कूली उम्र वाला बच्चा उस उम्र तक स्कूल नहीं जाता है जिस उम्र में वह 8वीं कक्षा पूरी कर ले। ऐसे परिवारों की संख्या जिसमें किसी सदस्य ने भी प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं की है, 2005-06 में 24% से गिरकर 2019-21 में 7.7% हो गई। वहीं, ऐसे परिवारों की संख्या जिनके बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, उसी अवधि में 19.8% से गिरकर 3.9% हो गई। चिंताजनक यह है कि हाल के वर्षों में गिरावट की यह दर धीमी हो गई है।