आखिर नए संसद और पुराने संसद में क्या है अंतर?

0
157

आज हम आपको नए संसद भवन और पुराने संसद भवन में अंतर बताने वाले हैं! एक वह भी संसद भवन था। एक यह भी संसद भवन है। रविवार को जब नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था, तो पुराने भवन की कई स्मृतियां भी आंखों के सामने घूम रही थीं, जिन्हें मैंने बीते कुछ वर्षों में बतौर रिपोर्टर बेहद नजदीक से देखा था। संसद के गलियारे से लेकर लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों की गैलरी तक एक-एक दीवार जानी-पहचानी से लगने लगी थी। चौड़ी सीढ़ियों पर चलते हुए हम संसद की गैलरी तक पहुंचते थे। पुराना संसद भवन देखकर उसकी विरासत और उम्र का अहसास हमेशा दिखता था। रविवार को हमने इतिहास बनते देखा। देश को नया संसद भवन मिला। नई संसद की लोकसभा में मुख्य कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। देश के कई गणमान्य लोग लगातार आ रहे थे, लेकिन हम इस नए भवन में पुराने भवन की स्मृतियों को तलाश रहे थे। देख रहे थे क्या बदला, कितना बदला और कैसे बदला। इसी सोच के बीच हम नए संसद भवन के मध्य में पहुंच चुके थे। एंट्रेंस पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम देखकर लग गया कि शायद कागजी पास का जमाना जाने वाला है और यहां भी डिजिटल एंट्री की नई व्यवस्था मुमकिन है। शुरू में ही भव्यता और आधुनिकता का समागम नए भवन में दिखने लगता है। आगे बढ़ने पर दीवारें और उसमें कलात्मकता का पुट संदेश दे जाता है कि आधुनिकता में विरासत का भी समागम किया गया है। हालांकि जगह के लिहाज से पुराने और नए संसद भवन की एंट्री लगभग एक ही जगह से है। पुराने संसद भवन के अंदर हम बाएं से प्रवेश करते थे, वहीं, नए भवन में हमने दाएं से एंट्री ली।

असल फर्क अंदर गैलरी में दिखा। पुराने लोकसभा से लगभग दोगुनी जगह। दीवारें भी भव्य। पुरानी लोकसभा में संसद सदस्य बहुत करीब होकर बैठते थे। जिस दिन सदन में लगभग सभी सांसद होते थे, वहां हाउसफुल दिखता था। सभी सीट के सामने एक माइक लगा होता था। चौड़ी सीढ़ियों पर चलते हुए हम संसद की गैलरी तक पहुंचते थे। पुराना संसद भवन देखकर उसकी विरासत और उम्र का अहसास हमेशा दिखता था। रविवार को हमने इतिहास बनते देखा। देश को नया संसद भवन मिला। नई संसद की लोकसभा में मुख्य कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। देश के कई गणमान्य लोग लगातार आ रहे थे, लेकिन हम इस नए भवन में पुराने भवन की स्मृतियों को तलाश रहे थे। देख रहे थे क्या बदला, कितना बदला और कैसे बदला। इसी सोच के बीच हम नए संसद भवन के मध्य में पहुंच चुके थे। एंट्रेंस पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम देखकर लग गया कि शायद कागजी पास का जमाना जाने वाला है और यहां भी डिजिटल एंट्री की नई व्यवस्था मुमकिन है।साथ ही मीडिया गैलरी में टीवी। नए सदन में सभी सदस्यों के सामने स्क्रीन के साथ पूरा डिजिटल सिस्टम है। मानो पूरा ऑफिस उनकी सीट पर है। चारों ओर दीवार से जुड़ी बड़ी-बड़ी टीवी स्क्रीन सुनिश्चित करते थे कि आप किसी भी कोने में हो रही घटना को मिस नहीं करेंगे। पहले के सदन में अगर आप एक सीट पर बैठे हों, तो दूसरे कोने में हो रही घटनाओं को देखने में दिक्कत होती थी।

पुरानी संसद के सदन में जब शोर होता था तो उसमें एक पक्ष होता था, जबकि दूसरा विपक्ष। लेकिन रविवार को मौका अलग था। यहां सिर्फ एक पक्ष के लोग थे। कांग्रेस सहित 20 विपक्षी दलों ने इस समारोह का बहिष्कार कर रखा था। अगर पहले दिन, पहली सभा में विपक्ष भी रहता तो बेहतर होता।चौड़ी सीढ़ियों पर चलते हुए हम संसद की गैलरी तक पहुंचते थे। पुराना संसद भवन देखकर उसकी विरासत और उम्र का अहसास हमेशा दिखता था। रविवार को हमने इतिहास बनते देखा। देश को नया संसद भवन मिला। नई संसद की लोकसभा में मुख्य कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। देश के कई गणमान्य लोग लगातार आ रहे थे, लेकिन हम इस नए भवन में पुराने भवन की स्मृतियों को तलाश रहे थे। देख रहे थे क्या बदला, कितना बदला और कैसे बदला। इसी सोच के बीच हम नए संसद भवन के मध्य में पहुंच चुके थे। एंट्रेंस पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम देखकर लग गया कि शायद कागजी पास का जमाना जाने वाला है और यहां भी डिजिटल एंट्री की नई व्यवस्था मुमकिन है। लोकतांत्रिक बहस के इस पावन स्थल की खूबसूरती और बढ़ती। लेकिन विरोध, नाराजगी यह भी इसी लोकतंत्र के ही अलग-अलग आयाम हैं। उम्मीद करता हूं कि नए संसद भवन में आने वाले दिनों में नई सुविधाओं के साथ वाद-संवाद और देश के लोकतंत्र को बेहद करीब से जानने का सफर बदस्तूर जारी रहेगा।