Friday, November 22, 2024
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आखिर क्या है उत्तर प्रदेश की आठ सीटों का समीकरण?

आज हम आपको उत्तर प्रदेश की आठ सीटों का समीकरण बताने जा रहे हैं! उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग शुरू हो गई है। भीषण गर्मी के बीच मथुरा, अलीगढ़, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, अमरोहा, बुलंदशहर और मेरठ में चुनावी माहौल भी गरमाता जा रहा है। दूसरे चरण की वोटिंग के दौरान मतदाता आठ लोकसभा सीटों के 91 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला कर रहे हैं। उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो रही है। आठ लोकसभा सीटों पर चुनावी माहौल गरमाया रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी प्रचार मैदान में पूरी ताकत जो कि वही विपक्ष की ओर से कोई बड़े स्तर पर चुनावी अभियान इन सीटों पर नहीं चल पाया। मायावती और अखिलेश यादव को छोड़कर किसी भी बड़े चेहरे ने इन सीटों पर प्रचार नहीं किया। दूसरे चरण के मतदान के दौरान भारतीय जनता पार्टी को अपने गढ़ को बचाने में खासी मशक्कत की है। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक लोकसभा सीटों को मथते दिखे। लोकसभा चुनाव 2019 में इन आठ में से 7 लोकसभा सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। केवल अमरोहा लोकसभा सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई थी। इन आठ लोकसभा सीटों पर भाजपा और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन का असर दिख रहा है। गठबंधन के तहत भाजपा ने राष्ट्रीय लोक दल को बागपत सीट दी है। इस हिसाब से 7 सीटों पर एक बार फिर भाजपा को जीत का गणित तैयार करती दिखी है। मतदाता अब इन सीटों के दावेदारों के भाग्य का फैसला कर रहे हैं। बुलंदशहर में पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुत्व के नायक रहे कल्याण सिंह का प्रभाव अब भी दिख रहा है। इस सीट पर भाजपा 1991 के बाद से लगातार मजबूत होती दिखी है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर डॉ. भोला सिंह लगातार तीसरी बार चुनावी मैदान में हैं। वे हैट्रिक लगाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। बसपा ने नगीना के सांसद गिरीश चंद्र को बुलंदशहर में प्रत्याशी बनाया है। उनके सामने जीत का पहाड़ चढ़ने की बड़ी चुनौती है।

वहीं, कांग्रेस-सपा गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में आई है। बुलंदशहर से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव शिवराम वाल्मीकि को चुनावी में मैदान में उतारा गया है। कांग्रेस उम्मीदवार मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस-सपा गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में किसी भी बड़े चेहरे ने प्रचार नहीं किया।

यमुना नदी के तट पर बसी मथुरा नगरी में लोकसभा चुनाव की नई रणनीति तैयार करने की कोशिश की जा रही है। धार्मिक वातावरण के बीच भाजपा ने सांसद हेमा मालिनी को तीसरी बार टिकट देकर चुनावी पंडितों को चौंका दिया है। 2019 में हेमा मालिनी 2.93 लाख के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। भाजपा और रालोद के भारी अंतर विरोध के बाद भी हेमा के लिए यहां बड़ी चुनौती नहीं दिख रही है। हेमा मालिनी और जयंत चौधरी के मंच पर राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश उपाध्यक्ष और पार्टी का क्षत्रिय चेहरा नरेंद्र सिंह को स्थान नहीं मिला। इसको लेकर बड़ी चर्चा देखी गई।

मथुरा सीट से लोकसभा चुनाव 2019 में 2.93 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल करने में सफल हुई थी। मथुरा से कांग्रेस ने मुकेश धनगर और बसपा ने जाट कैंडिडेट एवं पूर्व आईएएस अधिकारी सुरेश सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। सीएम योगी ने मथुरा में संबोधन के दौरान ‘भगवान कृष्ण भी प्रतीक्षा कर रहे हैं’ का संदेश दिया। इसने चुनावी माहौल को अगल रंग दे दिया।

गाजियाबाद में लोकसभा चुनाव को लेकर अतुल गर्ग को चुनावी मैदान में उतारा गया है। भारतीय जनता पार्टी ने जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह का टिकट काटकर अतुल गर्ग को चुनावी मैदान में उतारा है। गाजियाबाद सीट पर भाजपा केंद्रीय इकाई की सीधी नजर होती है। ऐसे में 29.38 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर चुनावी हलचल तेज है। जनरल वीके सिंह का टिकट कटने के बाद क्षत्रिय मतदाताओं में नाराजगी दिखी। योगी सरकार में मंत्री रहे अतुल गर्ग के चुनावी मैदान में उतरने से कई समीकरणों के बनने- बिगड़ने का खतरा दिखा। गाजियाबाद सीट पर क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, गुर्जर वोटों की संख्या काफी ज्यादा है। बीजेपी इन वोट बैंक पर अपना अधिकार मानती रही है। पीएम नरेंद्र मोदी ने जनरल वीके सिंह को अपने रथ पर सवार कर गाजियाबाद में रोड शो किया। इसके जरिए क्षत्रियों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की गई। वहीं, कांग्रेस ने 2019 के बाद फिर डोली शर्मा को टिकट देकर अलग रणनीति बनाने की कोशिश की है। बसपा ने नंद किशोर पुंडीड के जरिए क्षत्रिय वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश की है।

बागपत को जाट राजनीति का गढ़ कहा जाता रहा है। चौधरी चरण सिंह के काल से यह समाजवादी चिंतकों और इस विचारधारा से प्रभावित नेताओं के लिए राजनीति की काशी कही जाती रही है। पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी का इस सीट पर प्रभाव दिखता है। हालांकि, चार दशकों में पहली बार इस सीट पर चौधरी परिवार का कोई उम्मीदवार नहीं है। 16.46 लाख मतदाता वाली बागपत सीट पर रालोद के कर्मयोगी चेहरा रहे डॉ. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाकर बड़ा संदेश दिया है। इस पर 2014 और 2019 में भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने जीत दर्ज की थी। भाजपा से गठबंधन के बाद यह सीट रालोद के खाते में गई। बागपत में सपा ने पहले मनोज चौधरी को उम्मीदवार घोषित किया। बाद में साहिबाबाद के पूर्व विधायक अमरपाल शर्मा को टिकट दे दिया। बसपा में दिल्ली हाई कोर्ट के वकील प्रवीण बंसल पर दांव लगाया है। इस सीट पर जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

अमरोहा लोकसभा सीट सपा-कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस के पाले में गई है। इस सीट से कांग्रेस ने बसपा के निवर्तमान सांसद कुंवर दानिश अली को चुनाव मैदान में उतारा है। यह सीट पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के तेवर भरे संबोधनों से चर्चा में आ गया है। अमरोहा की धरती पर राजनीतिक पारा गरमाया हुआ है। 17.13 लाख वोटों वाली इस सीट पर वर्ष 1984 के बाद किसी प्रत्याशी को लगातार दो बार जीत नहीं मिल सकी है। दानिश अली के सामने इस तिलिस्म को तोड़ने की चुनौती है। दानिश से नाराज पूर्व सीएम मायावती उन्हें बिना नाम लिए विश्वासघाती बता चुकी हैं। बसपा ने इस सीट पर मुस्लिम चेहरा मुजाहिद को खड़ा कर सपा-कांग्रेस उम्मीदवार को घेर लिया है। 6.5 लाख से अधिक मुस्लिम वोटों के बंटवारे के बीच भाजपा 2014 की तरह कमल खिलाने की कोशिश में जुट गई है।

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