आज हम आपको टीले वाली मस्जिद का इतिहास बताने जा रहे हैं, जिसका मुद्दा अब कोर्ट पहुंच चुका है! 500 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद प्रभु श्री राम की नगरी अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राम मंदिर निर्माण शुरू हो गया है। अब मथुरा, काशी और लक्ष्मण टीला का मुद्दा भी कोर्ट पहुंच चुका है। लखनऊ के पक्का पुल के नीचे से निकली गोमती नदी के ठीक बाएं साइड में एक टीले वाली मस्जिद बनी हुई है। इसको हिन्दू पक्ष ने लक्ष्मण का टीला बताते हुए अपना हक मांगा है। अब यह मामला कोर्ट में पहुंच चुका है।
बुधवार को एडीजे प्रथम की कोर्ट में मुस्लिम पक्ष को तगड़ा झटका दे दिया है। मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष का मुकदमा चलने योग्य माना है। अब निचली अदालत में इनका मुकदमा चलेगा। वहीं कोर्ट के फैसले को हिंदू पक्ष अपनी जीत होने का दावा कर रहा है। टीले वाली मस्जिद बनाम लक्ष्मण टीला का मुकदमा साल 2013 से कोर्ट में चल रहा है। हिंदू पक्ष के पक्षकार वकील नपेंद्र पांडेय ने कहा कि जिसे मुस्लिम पक्ष टीले वाली मस्जिद कहता है वो हकीकत में लक्ष्मण का टीला है। उन्होंने कहा कि शेषनाग अवतारी भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण जी द्वारा शहर को बसाया गया था। उन्हीं के उसपर गोमती नदी के किनारे एक टीला था। पक्षकार ने बताया कि औरंगजेब के जमाने में लक्षमण टीला को ध्वस्त कर किया गया था। औरंगजेब ने पहले राम जी के मंदिर को ध्वस्त किया फिर यहाँ लक्ष्मण टीले को ध्वस्त किया था। औरंगजेब ने लक्ष्मण टीला को ध्वस्त करके एक मस्जिद बना दी थी।
हिंदू पक्षकार ने कहा कि उस मस्जिद में हमारी पूजा पाठ पहले से हो रही थी। साल 2001 में हजारों बलवाइयों ने वहां जाकर दंगा किया और हमारे मंदिर टीलेश्वर महादेव को तोड़ दिया था। शेषनागेश पाताल कूप को ध्वस्त कर दिया गया था। वकील नपेंद्र पांडेय ने कहा कि पूजा के अधिकार को लेकर कोर्ट में साल 2022 में एक याचिका दाखिल की थी कि हमें पूजा-पाठ से क्यों रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब हम लोग वहां पूजा-पाठ करने गए थे तब मुस्लिम पक्ष के द्वारा अभद्रता की गई थी। इसी को लेकर कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। 7/11 में मुस्लिम पक्ष अपर अदालत में गया था उसमें मुस्लिम पक्ष के द्वारा कहा गया कि यह मुकदमा चलने योग्य नहीं है क्योंकि इसमें कारण स्पष्ट नहीं है। इसी पर कोर्ट का निर्णय आया है कि हिंदू पक्ष का मुकदमा सुनने योग्य है।
टीले वाली मस्जिद के मौलाना फजलुल मन्नान ने कहा कि यह अंग्रेजों की साजिश थी वह यह प्रोपेगेंडा छोड़ गए हैं, जिससे हिंदू मुस्लिम लड़ते रहें। उन्होंने कहा कि एक पक्के पुल के पास लक्ष्मण टीला है और दूसरा बक्शी का तालाब में भी लक्ष्मण का टीला है। अपने एक बयान में उन्होंने कहा कि ये टीले वाली मस्जिद वर्ल्ड फेम है। टीले वाली मस्जिद का मामला हो, ज्ञानवापी का मसला या फिर ईदगाह मथुरा का प्रकरण हो। इस तरह से उनके जितने भी धार्मिक स्थल हैं, वो मस्जिद के ऊपर बने हुए हैं। ये पूरी तरह से गलत है। लोगों को लड़ाने की बात है। मौलाना फजलुल मन्नान ने कहा कि मैं इन बातों का खंडन करता हूं। साथ ही कहा कि अगर उन्हें तोड़कर बनाया जा रहा था तो जब तोड़ा जा रहा था आप कहां थे।
टीले वाली मस्जिद का प्रकरण 2013 से कोर्ट में चल रहा है। वकील हरिशंकर जैन ने साल 2013 में मस्जिद पर लखनऊ कोर्ट में पहली याचिका दाखिल की थी। हिंदू पक्ष ने अपना हक मांगते हुए याचिका में दावा किया था कि ये पूरा परिसर शेषनागेस्ट टीलेश्वर महादेव का है। इसलिए यहां हिंदुओं को पूजा-पाठ करने की इजाजत देने की मांग की गई थी। साथ ही याचिका में मस्जिद को हटाकर हिंदुओं को सौंपने की मांग की गई थी। इसके बाद साल 2018 में मस्जिद परिसर में प्रभु श्री के भाई लक्ष्मण जी की मूर्ति लगाने को लेकर विवाद हो गया था। यूपी में बीजेपी सरकार आने के बाद बीजेपी पार्षद रजनीश गुप्ता और रामकृष्ण यादव ने लखनऊ नगर निगम को प्रस्ताव दिया था। प्रस्ताव में मस्जिद के पास 151 फिट ऊंची मूर्ति लगाने का प्रस्ताव किया गया था। लेकिन मुस्लिमो के विरोध के बाद मामला शांत पड़ गया था।
वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक 1296 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने लक्ष्मण टीले पर मौजूद गुफा को तोड़ी थी। जानकारों की माने तो लक्ष्मण टीले पर एक शेष गुफा थी। बार तोड़े जाने के कारण इस जगह पर टीला बन गया था। इसके बाद भी इसका नाम लक्ष्मण टीला ही बना रहा। इसके बाद 1659 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब ने टीले वाली मस्जिद बनवाई थी। इसका जिक्र पूर्व सांसद लालजी टंडन की किताब अनकहा लखनऊ में है।
1901 में अंग्रेजो के कब्जे से मस्जिद छुड़वाई गई। शाह पीर मुहम्मद पहले से ही यहां रहते थे, मस्जिद से थोड़ी दूर पर उनकी कब्र दरगाह भी है। टीले पर स्थित होने की वजह से इसका नाम टीले वाली मस्जिद पड़ा। टीले वाली मस्जिद में तीन गुंबद और ऊंची मीनारें हैं, जो की दूर से दिखाई देती हैं। मस्जिद उठे हुए चबूतरे पर ईंट और पत्थर से बनी हुई है। वहीं मस्जिद परिसर में लगे इमली के पेड़ पर करीब 40 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी। टीले वाली मस्जिद 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की गवाही भी बना था।
वहीं लखनऊ की टीले वाली मस्जिद से जुड़ा विवाद दशकों पुराना है। इसको लेकर लखनऊ से पूर्व सांसद और राज्यपाल स्वर्गीय लालजी टंडन ने अपनी किताब अनकहा लखनऊ में भी इसका जिक्र किया है। अपनी किताब में उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण से शहर का नाता तोड़ने का आरोप लगाया था।
दिवंगत नेता लालजी टंडन ने अपनी किताब लिखा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान राज्य की राजधानी की सबसे बड़ी सुन्नी मस्जिद का निर्माण लक्ष्मण टीला पर किया गया था, जो भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर बनाया गया, एक ऊंचा मंच था। किताब इस वजह से राजनीतिक विवाद में भी घिर गई थी। हिन्दू महासभा के प्रवक्ता शिशिर चतुर्वेदी का कहना है कि टीले वाली मस्जिद हमारा लक्ष्मण टीला हुआ करता था यहां पर 8-9 हिन्दू परिवार भी रहा करते थे लेकिन उनका सामान फेंकवाकर उस पर जबरन कब्जा कर लिया गया और हिन्दू परिवारों को वहां से भगा दिया गया था। उसके बाद सपा सरकार में उसे टीले वाली मस्जिद बनाकर वक्फ वगैरा से कब्जा कर लिया गया था। उसी की लड़ाई 2013 से चल रही है।