आज हम आपको भारत के वोटिंग का इतिहास बताने जा रहे हैं! भारत में हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। इस साल मतदाता दिवस की थीम ‘वोट जैसा कुछ नहीं, वोट जरूर डालेंगे हम’रखी गई है। चुनाव आयोग की ओर से ये कार्यक्रम देशभर में आयोजित किया जाएगा। देश में मतदाता दिवस की शुरुआत 2011 से हुई। इसका उद्देश्य नागरिकों में चुनावी जागरुकता पैदा करना और उन्हें चुनाव में मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करना है। अब तक देशभर में वोटिंग ईवीएम से होती है, और काफी कम वक्त में उसके नतीजे भी सामने आ जाते हैं। वहीं चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग सिस्टम को भी शुरू करने जा रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में पहली बार वोटिंग कोरे कागज पर हुई। कोरे कागज से रिमोट वोटिंग तक का इतिहास आज हम आपको बताने जा रहे हैं। देश में पहला चुनाव साल 1952 में हुआ। उस समय आज की तरह संसाधन नहीं थी। अब निकाय चुनावों में भी प्रत्याशी गाड़ियों की कतारों से पर्चा भरने जाते हैं और सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक में उनकी चर्चा होती है। लेकिन पहले चुनाव के वक्त न तो महंगी कारें थीं और न ही सोशल मीडिया। ऐसे में प्रत्याशी बैलगाड़ी से जनता के बीच जाते थे और प्रचार करते थे। इतना ही नहीं जिस गांव में रात हो जाती थी, नेताजी वहीं रुकते थे और दूसरे दिन समर्थकों के साथ आगे बढ़ जाते थे। कई पुराने नेताओं ने इस बात का जिक्र किया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के पहले चुनावों में आज की तरह न तो ईवीएम थी और व ही वैलेट पेपर। पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ ही होते थे। इन्हें कराना बहुत बड़ा टास्क होता था। पहले चुनावों में हर पार्टी के लिए अलग-अलग रंग की मतपेटी बनाई गई। मतदाता अपनी मर्जी के हिसाब से अपने प्रत्याशी को चुनते थे। वोट डालने के लिए उन्हें एक कोरा कागज दिया जाता था, जिसे वो इन मतपेटी में डालते थे। यानी आज जिस तरह बैलेट पेपर पर कई प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह होते हैं और एक मतपेटी, वैसा तब नहीं था। पहले चुनावों में जितने प्रत्याशी उतनी ही मतपेटी बनाई गईं। आंकड़े बताते हैं कि इसके लिए लोहे की 2 करोड़ 12 लाख मतपेटियां बनाईं गईं और करीब 62 करोड़ मतपत्र छापे गए।
आजाद भारत में दूसरे आम चुनाव 1957 में हुए। इस समय लोग पहले से ज्यादा जागरुक हो चुके थे। साथ ही चुनाव आयोग ने भी चुनावी प्रक्रिया में कई बदलाव किए। इस चुनाव में लकड़ी के डिब्बों पर उम्मीदवारों का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा जाने लगा। लेकिन मतपत्र अभी भी कोरा कागज हुआ करता था। मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के डिब्बे में कोरा कागज डालकर मतदान करते थे। बाद में इन कोरे कागज को गिनकर चुनाव के नतीजे आते थे।
चुनाव आयोग को ये समझ में आ गया था कि ये प्रत्याशियों की नाम की मतपेटी बनाने की प्रक्रिया ज्यादा दिन नहीं चलेगी। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने इसमें बड़ा बदलाव किया और पहली बार 1962 के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह के बैलेट पेपर छापे गए। अब मतदाताओं को अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम के सामने मुहर लगाकर मतपेटी में डालना होता था। चुनाव की ये प्रक्रिया लंबे वक्त तक चली। आज भी कई जगहों पर पंचायत चुनाव में इसका इस्तेमाल होता है।
इसके बाद धीरे-धीरे चुनाव प्रक्रिया में और बदलाव हुए और ईवीएम का दौर शुरू हुआ। देश में पहली बार 1982 में केरल के परावुर विधानसभा के 50 वोटिंग बूथ पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। हालांकि यहां हारे हुए प्रत्याशी ने हारने का कारण ईवीएम बताया और कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की। कोर्ट ने फिर से चुनाव का आदेश दिया। इसके बाद कई सालों तक ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ। लेकिन दिसंबर 1988 में संसद में संसोधन करके रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट, 1951 में सेक्शन 61ए जोड़ा गया और चुनाव आयोग को ईवीएम का इस्तेमाल करने का अधिकार मिल गया। इसके बाद 1998 में मध्य प्रदेश के 5, राजस्थान के 6 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के 6 विधानसभा क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल हुआ। वहीं 2004 से देशभर में इसका चलन शुरू हो गया।
ईवीएम शुरू होने के बाद इसमें भी बदलाव हुए। ईवीएम के साथ अब वीवीपैड भी जोड़ा गया है। इसमें जब आप चुनाव में ईवीएम में किसी कैंडिडेट के सामने बटन दबाकर उसे वोट करते हैं तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है। यह बताती है कि आपका वोट किस कैंडिडेट को डाला है। हाल ही में चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम का प्रोटोटाइप भी जारी किया। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले चुनावों में रिमोट वोटिंग सिस्टम से वोट डाले जाएंगे।