आखिर क्या है सरोगेसी कानून का नया नियम?

0
127

आज हम आपको सरोगेसी कानून का नया नियम बताने जा रहे हैं! क्या आप दंपती हैं जो सरोगेसी किराए की कोख के जरिए माता-पिता बनने का सपना देख रहे हैं? अगर हां, तो आपके लिए एक अच्छी खबर है! केंद्र सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में संशोधन किया है, जिससे अब डोनर गेमाइट्स यानी अंडाणु या शुक्राणु का उपयोग करने की अनुमति दे दी गई है, बशर्ते कि साझेदारों में से कोई एक मेडिकल कंडीशन के कारण अपने स्वयं के गेमाइट्स का उपयोग करने में असमर्थ हो। यह बदलाव उन दंपतियों के लिए राहत का संदेश है, जिनके स्वयं के बच्चे नहीं हो सकते हैं, लेकिन वे सरोगेसी के माध्यम से माता-पिता बनना चाहते हैं। सरकार के आदेश सरोगेसी चाहने वाले जोड़ों के लिए राहत लेकर आएंगे। डॉ. शिवानी ने कहा, ‘अधिकांश जोड़े कई बार गर्भपात और असफल आईवीएफ के बाद ही सरोगेसी का विकल्प चुनते हैं। यदि बच्चे पैदा करने का सपना देखने वाली महिला का ओवरी रिजर्व कम है, तो डोनर एग प्राप्त करना ही बच्चा पैदा करने का एकमात्र विकल्प है। मुझे खुशी है कि सरकार ने अपने पिछले फैसले पर पुनर्विचार किया है और इसे अनुमति दी है।’

इससे पहले, अधिनियम के तहत बनाए गए नियम 7 में ‘सरोगेट मां की सहमति और सरोगेसी के लिए समझौता’ पर बात की गई थी, जिसमें पति के शुक्राणु द्वारा डोनर ओओसाइट्स के निषेचन को मैंडेटरी बनाया गया था। इस संशोधन से पीड़ित कई महिलाओं ने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उनमें से अधिकांश को शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी मेडिकल रिपोर्ट पेश करके इस प्रावधान से छूट मिल गई, जिसमें दिखाया गया है कि वे विभिन्न चिकित्सीय स्थितियों के कारण अंडे का उत्पादन करने में असमर्थ थीं। हालांकि, कानून के अन्य प्रावधान जो अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी की अनुमति नहीं देते हैं, को भी चुनौती दी गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर असहमतियां जताई हैं और कहा है कि देश में विवाह संस्था को संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि यहां उन पश्चिमी देशों जैसे हालात की अनुमति नहीं दी जा सकती है जहां विवाह से इतर बच्चों का जन्म होना आम बात है।

सरोगेसी नियमों में संशोधन हुआ है, जिससे डोनर गेमाइट्स का उपयोग करने की अनुमति मिल गई है। डिस्ट्रिक्ट मेडिकल बोर्ड द्वारा यह प्रमाणित होना जरूरी है कि दंपती में से किसी एक को चिकित्सीय स्थिति के कारण अपने गेमाइट्स का उपयोग करने में असमर्थता है। सरोगेसी के जरिए जन्म लेने वाले बच्चे में कम से कम एक गेमाइट इच्छुक दंपती का होना चाहिए। अकेली महिलाएं विधवा या तलाकशुदा को सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए अपने अंडे और डोनर स्पर्म का उपयोग करना होगा। यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं के बाद किया गया है, जिसमें मेडिकल रिपोर्टों के आधार पर डोनर गेमाइट्स के उपयोग की अनुमति मांगी गई थी। डॉक्टरों का कहना है कि यह बदलाव सरोगेसी का सहारा लेने वाले दंपतियों के लिए राहत लेकर आएगा। 2021 में भारत ने सरोगेसी रेग्युलेशन एक्ट पारित किया था क्योंकि अनैतिक प्रथाओं, सरोगेट माताओं के शोषण, सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को त्यागने और मानव गेमाइट्स और भ्रूणों के आयात की रिपोर्टें सामने आ रही थीं।मार्च 2023 में जारी एक अधिसूचना ने सरोगेसी का सहारा लेने वाले दंपतियों के लिए डोनर गेमाइट्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद कई याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सरोगेसी नियमों में संशोधन करने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप हाल ही में किए गए बदलाव आए हैं।

सरोगेसी विनियमन अधिनियम की धारा 2 एस में ‘इच्छुक महिला’ को कानून के तहत एक भारतीय महिला के रूप में परिभाषित किया गया है जो 35-45 वर्ष आयु वर्ग की विधवा या तलाकशुदा है और सरोगेसी का लाभ उठाना चाहती है। इसका मतलब है कि एक अविवाहित महिला को सरोगेसी के माध्यम से मां बनने की अनुमति नहीं है। इस प्रावधान को चुनौती देते हुए एक याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह भेदभावपूर्ण है और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट आश्वस्त नहीं हुआ और कहा, ‘यहां मां बनना विवाह संस्था के भीतर ही आदर्श स्थिति है। विवाह संस्था के बाहर मां बनना आदर्श नहीं है। हम इस बारे में चिंतित हैं। हम बच्चे के कल्याण के लिहाज से बात कर रहे हैं। क्या देश में विवाह संस्था बचनी चाहिए या नहीं? हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं। विवाह संस्था को संरक्षित करना होगा। आप हमें कट्टरपंथी कह सकते हैं। हम आपके आरोप को स्वीकार करेंगे।’