आज हम आपको बताएंगे कि हिमाचल प्रदेश की आपदा के पीछे कारण क्या है! शिमला शहर जिसकी खूबसूरती के कायल अंग्रेज भी थे अब तबाही का मंजर देख रहा है। बारिश के बाद शिमला में लैंडस्लाइड की खबरों ने पूरे देश के लोगों को दिल दहला दिया है। वो शहर जहां दूर-दूर से लोग प्रकृति का आनंद लेने आते हैं आज वो बर्बादी की तरफ बढ़ रहा है। तीन दिन पहले शिमला में शिव मंदिर गिर गया. उसके दो दिन बाद ही एक बड़ी इमारत भरभराकर ढह गई। कैमरे में जो तस्वीरें कैद हुई उसे देखकर किसी का भी दिल घबरा जाए। इन इमारतों के ढहने से 11 लोगों की मौत की खबर आई। कौन है मौत के इन आंकड़ों का जिम्मेदार? शिमला में 1980 से लेकर 1990 के बीच में काफी ज्यादा इमारतों का निर्माण हुआ। बिना नक्शे, बिना प्लान पास करवाए, इस खूबसूरत शहर में बिल्डिंग पर बिल्डिंग बनती चली गई। यहां पर सिर्फ ढाई मंजिला तक इमारत बनाने की परमिशन है, लेकिन अगर आप देखें तो यहां आपको ऊंची-ऊंची बिल्डिंग मिल जाएंगी। पूरा शहर होटल्स से पटा हुआ है। हरियाली और खूबसूरती की मिसाल रहा शिमला कुछ सालों में कंक्रीट का जंगल बन गया।
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि पुराना शिमला का 25 फीसदी हिस्सा डेंजर जोन में आता है। ऐतिहासिक रिज, ग्रांड होटल, लक्कड़ बाजार और लद्दाखी मोहल्ला जहां सैकड़ों सैलानी होटल्स में जाकर रुकते हैं वहां का 25% से ज्यादा इलाका डूबत क्षेत्र है, लेकिन बावजूद इसके यहां धड़ल्ले से इमारतें बनती चली गई। पहाड़ों को काट दिया गया, पेड़ों को हटा दिया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि सैलानियों के लिए होटल बनाने हैं। शिमला जब बसा था तो ये अनुमान था कि इस इलाके में करीब 25000 लोग बस सकते हैं, लेकिन हैरान करने वाले डाटा देखिए। पिछले साल हां की आबाद करीब 2.5 लाख थी। सोचिए जिस जगह पर 25000 लोगों को रहना था वहां ढाई लाख लोगों के रहने की व्यवस्था की गई। कितने गुना मकान यहां बढ़ गए। एक खबर के मुताबिक शिमला में करीब 10 हजार से अधिक अवैध मकान हैं, जो बिना नक्शे और अनुमति के बने हैं।
अदालत भी शिमला के अवैध निर्माण पर चिंता जता चुकी है। साल 2015 में उच्च न्यायालय ने शिमला में बेतरतीब तरीके से बनी इमारतों और अतिक्रमणों पर संज्ञान लिया था और बिल्डरों को सचेत किया था। न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यहां अधिकतर इमारतें ढलान पर बनी हैं , जो बेहद खतरनाक हैं। दरअसल शिमला की बढ़ती आबादी और होटल बिजनेस के दबाव में सरकार ने यहां 70 डिग्री तक ढलान पर इमारत बनाने की अनुमति दे दी है। लोगों ने होटल और घर तो बना लिए, लेकिन अब परिणाम सामने आ रहे हैं। ऐसी भयानक तस्वीरें शिमला में अब आम होती जा रही हैं।
सोचिए शिमला में रोज सैकड़ों सैलानी जाते हैं और उन्हें ऐसे ही होटल्स में रुकना पड़ता है जो डेंजर जोन में बने हुए हैं। यानी आप अपने कमरे में बैठे हैं और कभी कोई भी हादसा हो सकता है। ऐसा नहीं है कि ये होटल या इमारतें बिना प्रशासन की मर्जी से बन जाए। फिर क्यों लोगों की जान के साथ इतने समय से खिलवाड़ हो रहा है? क्यों यहां की सरकार और प्रशासन आंख मूंदकर बैठे हुए हैं और इंतजार कर रहे हैं हादसों का। ये प्रकृति का प्रकोप नहीं है, बल्कि जानबूझकर एक खूबसूरत शहर को बर्बादी और मौत की तरफ धकेलने की साजिश है। आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश में जुलाई-अगस्त के महीने में हुई बारिश में जमकर तबाही मचाई. इससे आम जन जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हुआ है. हिमाचल प्रदेश सरकार लगातार केंद्र सरकार से मांग कर रही है कि इस तबाही को राष्ट्रीय आपदा घोषित की जाए, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है. इसकी हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुकून ने बताया कि सरकार ने इस तबाही को राज्य आपदा घोषित कर दिया है. जल्द ही इसकी नोटिफिकेशन जारी हो जाएगी!
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि बीते दिनों प्रदेश में हुई बारिश की वजह से भारी नुकसान हुआ है. सरकार आर्थिक बदहाली के बावजूद प्रभावितों तक राहत पहुंचाने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है. बीते दिन हुई बारिश की वजह से हिमाचल प्रदेश को अब तक 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि वह दिल्ली जा रहे हैं और यहां केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने बीते 50 सालों में कभी ऐसी तबाही नहीं देखी!