आज हम आपको हाउसबोट की खासियत बताने वाले हैं! केरल में बेहतरीन समुद्र तट तो हैं ही, साथ ही मीलों-मील तक फैला बैकवाटर भी है। इन्हीं बैकवाटर मे शाही सुविधाओं से लैस हाउसबोट चलते हैं। आपने यदि कश्मीर की डल झील में शिकारों को देखा है तो यह उसी तरह का अनुभव है। लेकिन एक अंतर है, डल झील के अधिकतर शिकारे स्थिर रहते हैं पर केरल के हाउसबोट आपको मीलों-मील का सफर कराएंगे। पानी में तैरते नाव पर आाप नाश्ता, दोपहर का खाना और रात में डिनर का आनंद लेंगे। केरल के हाउसबोट या केट्टुवल्लम का एक हिस्सा बांस और कॉयर से ढंका होता है। इसमें टूरिस्ट के आराम करने के लिए कमरे बने होते हैं। कमरे से जुड़े हुए बाथरूम भी बने होते हैं। इन बाथरूम में किसी लक्जरी होटल की तरह सारी सुविधाएं होती हैं। इन्हीं कमरों के पीछे एक किचन भी होता है। हाउसबोट की सैर करने वाले गेस्ट का भोजन इसी में बनाया जाता है।हाउसबोट में यात्रा करने की एक खास बात यह है कि आप बोट में आराम करते हुए अछूते और दुर्गम पहुंच वाले ग्रामीण केरल के बेहतरीन नजारे देख सकते हैं।
यूं तो केट्टुवल्लम को सामानों की ढुलाई के लिए बनाया गया था। लेकिन जब विज्ञान ने तरक्की तो सामानों को ढोने के नए-नए साधन आ गए। अब तो छोटे-बड़े ट्रक हर गांव और हर गली तक जाने लगे हैं। ये ट्रक केट्टुवल्लम के मुकाबले सस्ते होते हैं। इन्हें चलाना भी सस्ता पड़ता है। इनका मेंटनेंस भी आसान है। इसलिए केट्टुवल्लम की चमक फीकी पड़ने लगी। ऐसे में केरल के नाविकों ने 100 साल से अधिक इन पुराने बोटों को बाज़ार में बनाए रखने का नया तरीका ढूंढ लिया। और माल ढोने का केट्टुवल्लम बन गया नए जमाने का हाउसबोट। केट्टुवल्लम को हाउसबोट में बदलते समय, इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि केवल प्राकृतिक वस्तुओं का ही इस्तेमाल किया जाए। इसमें बांस की चटाइयों का उपयोग होता है। इसकी छत बनाने में पेड़ की छाल और सुपारी के पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमल होता है। बोट के फर्श के लिए लकड़ी के तख्तों का इस्तेमाल होता है। कमरे में बिस्तर के लिए नारियल के पेड़ की लकड़ी और कॉयर का इस्तेमाल किया जाता है। आजकल लाइटिंग के लिए सोलर पैनलों को प्राथमिकता दी जाती है।
आज, इन हाउसबोट में आपको वही आराम मिलता है जो आपको किसी अच्छे होटल में मिलेगा। इसमें आपको अच्छे बेडरूम, आधुनिक शौचालय, सुंदर लीविंग रूम, किचन और बैकवाटर के नज़ारे देखने के लिए बाल्कनी भी मिलेंगे। लकड़ी या ताड़ की मुड़ी छत के हिस्से बाहर की खुले होते हैं जिससे छाया मिलती है और आप बिना किसी बाधा के बाहर के नज़ारे देख सकते हैं। वहां ज्यादातर बोट में स्थानीय मल्लाह होते हैं। कुछ बोट में 40 एचपी का इंजन लगा होता है। नज़ारे देखने वाले लोगों के ग्रुप के लिए दो या दो से अधिक हाउसबोड को जोड़कर बोट ट्रेन भी बनाया जाता है। हाउसबोट पहले विदेशी टूरिस्ट ज्यादा पसंद करते थे। दरअसल केरल के हाउसबोट पर किसी फाइव स्टार होटल से कम सुविधा नहीं होती है। साथ ही इसे चलाने के लिए कम से कम तीन कर्मचारी को तैनात करना पड़ता है। उसे मीलों-मील चलाने के लिए डीजल भी खर्च होता है। साथ में खाना-पीना भी। इसलिए इसका किराया थोड़ा महंगा होता है। इसलिए इसे पहले विदेशी टूरिस्ट ही ज्यादा पसंद करते थे। अब तो देशी टूरिस्ट भी इसका खूब उपयोग करने लगे हैं।
जब आप किसी हाउसबोट में होते हैं तो आपको चारों तरफ पानी ही पानी दिखता है। आप वहां मछली पकड़ने का भी आनंद ले सकते हैं। यदि आपको मछली पकड़ना पसंद नहीं है तो हाउसबोट पर तैनात कर्मचारी आपके लिए मछली पकड़ेंगे। फिर उसी मछली को आपके सामने पकाएंगे। फिर उसे खाने का आनंद कुछ ज्यादा ही आएगा। आप चाहें तो अपने मन से भी कोई डिश बना या बनवा सकते हैं।
आप पूछेंगे कि पूरे केरल में हाउसबोट चलते हैं? तो इसका जवाब है नहीं। केरल के हाउसबोट सिर्फ बैकवाटर्स में ही चलते हैं। इसलिए इन हाउसबोटों का हब अलापुझा या अलेप्पी है। इन दिनों वहां 500 से भी ज्यादा हाउसबोट चल रहे हैं। इनमें से कुछ लक्जरी हाउसबोट भी हैं, जिनमें किसी सेवन स्टार होटल की तरह की सारी सुविधाएं हैं। यदि पूरे राज्य की बात करें तो आप तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, कोट्टयम, आलपुझा , एर्नाकुलम , त्रिश्शूर और कासरगोड़ में हाउसबोट की सुविधा ले सकते हैं।
हाउसबोट बड़े, धीमे चलने वाले विशेष तरह के नाव होते हैं। इसमें किसी फाइव स्टार होटल की तरह कमरे बने होते हैं। इसमें टूरिस्ट रात गुजारते हैं। यह वास्तव में केरल में पुराने ज़माने में चलने वाले केट्टुवल्लम का ही नया रूप है। केरल में असली केट्टुवल्लम का इस्तेमाल कई टन चावल और मसालों को लाने-ले जाने के लिए किया जाता था। एक स्टैंडर्ड केट्टुवल्लम कुट्टनाड से कोच्ची पोर्ट तक 30 टन माल ले जा सकता है।