Friday, February 7, 2025
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आखिर क्या है उत्तर प्रदेश के डॉक्टर संजय निषाद की कहानी?

आज हम आपको उत्तर प्रदेश के डॉक्टर संजय निषाद की कहानी सुनाने जा रहे हैं! उत्तर प्रदेश की राजनीति वैसे तो दो ध्रुवों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। एक तरफ भाजपा और दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी। लेकिन करीब एक दशक की चुनावी राजनीति देखें तो कई छोटे दलों ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। ये वो दल हैं जो सपा, भाजपा दोनों की जरूरत बनकर उभरे हैं। इनमें डॉ संजय निषाद एक प्रमुख नाम है। जिनकी निषाद पार्टी यानि निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल ने समाजवादी पार्टी से लेकर भाजपा को सहारा दिया। डॉ संजय निषाद इस समय एमएलसी हैं और योगी सरकार में मत्स्य पालन मंत्री। उनके बेटे प्रवीण निषाद संतकबीर नगर से भाजपा सांसद हैं, जबकि दूसरे बेटे सरवन कुमार निषाद चौरीचाैरा सीट से विधायक हैं। वैसे संजय निषाद की एक होम्योपैथी डॉक्टर से उत्तर प्रदेश की राजनीति अहम हिस्सा बनने के सफर की कहानी काफी रोचक है। डॉ संजय निषाद का जन्म गोरखपुर के कैंपियरगंज में हुआ। उनके पिता सेना में सूबेदार थे और मां गृहणी थीं। 1988 में संजय निषाद ने कानपुर विश्वविद्यालय से बीएमएच की उपाधि प्राप्त की ओर गोरखपुर में क्लीनिक खोलकर अभ्यास शुरू किया। इस दौरान व इलेक्ट्रो होम्योपैथी विधि को मान्यता के लिए संघर्ष भी कर रहे थे। धीरे-धीरे वह राजनीति की तरफ बढ़े। 2008 में वह बामसेफ से जुड़े और संजय निषाद ने मछुआ समुदाय की 553 जातियों को जोड़ने की मुहिम शुरू की। उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनोरिटी वेल्फेयर मिशन और शक्ति मुक्ति महासंग्राम नाम के दो संगठन भी बनाए। साथ ही निषाद एकता परिषद भी बनाई। इस मुहिम का असर ये हुआ कि संजय निषाद की पहुंच पूर्वांचल के कई जिलों तक हो गई। इसी के बाद उन्होंने 2016 में निषाद पार्टी की स्थापना की। कैंपियरगंज से पहली बार विधानसभा चुनाव भी लड़े, लेकिन जीत नहीं मिली।

2015 का साल डॉ संजय निषाद के राजनीति जीवन का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है। उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। इस दौरान गोरखपुर जिले में सहजनवां के कसरवल में जून महीने में एक प्रदर्शन हुआ। ये प्रदर्शन राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के आह्वान पर हुआ। इसमें निषादों को सरकारी नौकरी में 5 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की मांग की जा रही थी। सैकड़ों लोगों ने गोरखपुर सहजनवा रेलवे लाइन पर जाम लगा दिया। बाद में प्रदर्शन ने उग्र रूप धारण किया और पथराव हो गया। पुलिस की तरफ से कई राउंड फायर हुए। इसमें एक युवा की मोत हो गई और बवाल भड़क गया। प्रदर्शन में डीजीआईजी और एसपी समेत कई लोग घायल हो गए। इस कांड में डॉ संजय निषाद सहित कुल 36 लोगों के खिलाफ मुकदमा हुआ। डॉ संजय निषाद ने बाद में कोर्ट में सरेंडर कर दिया।

इस प्रदर्शन ने डॉ संजय निषाद का राजनीतिक रसूख तेजी से बढ़ाया। इसी के चलते उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया। चुनाव निषाद पार्टी भदोही की ज्ञानपुर सीट से पहली जीत दर्ज करने में सफल रही। विजय मिश्रा उसके पहले विधायक हुए। हालांकि इस जीत में विजय मिश्रा के रसूख को ज्यादा तरजीह मिली क्योंकि वह चौथी बार विधायक बने थे। बहरहाल, इस चुनाव में संजय निषाद खुद गोरखपुर ग्रामीण से चुनाव मैदान में उतरे। उन्होंने करीब 35 हजार के करीब वोट हासिल भी किए लेकिन जीत नहीं सके। लेकिन इन वोटों ने सियासतदानों के बीच उनकी धमक का एहसास जरूर करा दिया।

अब मछुआ समाज एक वोट बैंक बनकर उभर चुका था। इसी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए 2018 के लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव की सपा ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और डॉ संजय निषाद के बेटे डॉ प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बना दिया। ये सीट गोरखनाथ मंदिर की अपनी सीट मानी जाती थी। खुद योगी आदित्यनाथ इस सीट को छोड़कर यूपी के मुख्यमंत्री बने थे लिहाजा माना जा रहा था कि भाजपा ही जीतेगी। लेकिन उपचुनाव में रिजल्ट आया तो डॉ प्रवीण निषाद ने भाजपा को तगड़ा झटका देते हुए जीत हासिल कर ली।

इस हार ने बीजेपी को भी निषाद वोट बैंक की ताकत का एहसास करा दिया और डॉ संजय निषाद की निषाद पार्टी एक झटके में राष्ट्रीय फलक पर आ गई। इस हार के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति में तेजी से बदलाव करना शुरू किया और 2019 के लाेकसभा चुनाव से पहले डॉ संजय निषाद की सपा से दूरी बनते ही निषाद पार्टी को एनडीए में शामिल करा लिया। अखिलेश यादव का गेम पलट चुका था, उनके सासंद प्रवीण निषाद अब संतकबीर नगर से भाजपा प्रत्याशी हो गए थे। चुनाव में भाजपा को इस रणनीति का फायदा हुआ और प्रवीण निषाद की जीत हुई। यही नहीं गोरखपुर सीट भी वापस आ गई।

फिर 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले डॉ संजय निषाद एमएलसी बनाए दिए गए और उनके दूसरे बेटे सरवन निषाद को चौरीचौरा विधानसभाा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतार दिया। इस चुनाव में निषाद पार्टी ने कुल 16 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 10 अपने सिंबल पर और 6 बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़े। चुनाव में निषाद पार्टी को कुल 11 सीटों पर जीत मिली। इनमें बीजेपी के कमल चुनाव निषाद पर चौरीचौरा से सरवन निषाद, करछना से पीयूष रंजन निषाद, बांसडीह से केतकी सिंह, सुल्तानपुर सदर से राजबाबू उपाध्याय, तमकुहीराज से डॉ असीम रॉय जीते। वहीं निषाद पार्टी के अपने सिंबल पर भदोही की ज्ञानपुर सीट से विपुल दुबे, मझवान से डॉ बिनोद बिंद, मेहदावल से अनिल त्रिपाठी, नौतनवां से ऋषि त्रिपाठी, खड्डा से विवेक पांडे और शाहगंज रमेश सिंह को जीत मिली। इसमें नौतनवा सीट ऋषि त्रिपाठी की जीत खास रही, जिन्होंने बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि को चुनाव में हराया।

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