Friday, September 20, 2024
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आखिर क्या है उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीट का किस्सा?

आज हम आपको उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीट का किस्सा बताने जा रहे हैं! दोआबा की फतेहपुर लोकसभा सीट अपनी गंगा-यमुनी तहजीब के लिए जानी जाती है। देश में जय जवान जय किसान का नारा देकर खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का संदेश देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पूर्व पीएम वीपी सिंह को दिल्ली तक पहुंचाया। हालांकि उनके बच्चों को इस लोकसभा सीट से मतदाताओं ने दरकिनार कर दिया। दरअसल, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री और पोते विभाकर शास्त्री ने भी अपनी राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए फतेहपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन विभाकर शास्त्री कामयाब नहीं हुए। इसी तरह देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे अजेय सिंह ने भी इस लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरकर अपनी किस्मत आजमाई। उन्हें भी मतदाताओं ने नकार दिया। फतेहपुर लोकसभा सीट से पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री साल 1980 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और लोकदल के उम्मीदवार सैय्यद लियाकत हुसैन को शिकस्त दी। सैय्यद लियाकत हुसैन इसी लोकसभा क्षेत्र के स्थानीय उम्मीदवार थे। इस चुनाव में हरिकृष्ण शास्त्री ने जिलेवाद के नारे को बेअसर कर दिया था और चुनाव जीतने में सफल हुए थे। वहीं 1984 में भी हरिकृष्ण शास्त्री ने इसी लोकसभा से लगातार दूसरी बार जीत का परचम लहराया था अपने पिता के अच्छे कार्यों को लोकसभा क्षेत्र में जन-जन तक पहुंचाया और 1998 में चुनाव लड़े। फिर भी उन्हें महज 24,688 वोट ही मिले। इसके बाद वर्ष 1999 और 2009 के चुनाव में भी किस्मत आजमाई। तीनों बार मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सहेजने में असफल साबित हुए।और सांसद बने थे।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1989 में फतेहपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित होकर देश के 8वें प्रधानमंत्री बने थे इसी तरह बेटे अजय प्रताप सिंह ने भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास किया और वर्ष 2009 में इसी लोकसभा सीट से जनमोर्चा के टिकट पर चुनावी रण में ताल ठोकीं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1989 में फतेहपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित होकर देश के 8वें प्रधानमंत्री बने थे। इसी तरह बेटे अजय प्रताप सिंह ने भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास किया और वर्ष 2009 में इसी लोकसभा सीट से जनमोर्चा के टिकट पर चुनावी रण में ताल ठोकीं।हालांकि यहां की जनता ने उन्हें भी कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। इस चुनाव में अजय सिंह को मात्र 7,422 मत ही प्राप्त हुए। यह भी पिता की विरासत को सहेजने में कामयाब नहीं हुए।

हरिकृष्ण शास्त्री को लोकसभा क्षेत्र में अच्छे कार्य की बदौलत लोगों ने भैया का दर्जा दिया था। इसके बाद बोफोर्स घोटाले के चलते वर्ष 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा, जिसके कारण हरिकृष्ण शास्त्री को भी इस लोकसभा सीट से दो बार हार मिली। तीनों बार मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सहेजने में असफल साबित हुए।और सांसद बने थे।हरिकृष्ण शास्त्री की मौत के बाद विभाकर शास्त्री पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। अपने पिता के अच्छे कार्यों को लोकसभा क्षेत्र में जन-जन तक पहुंचाया और 1998 में चुनाव लड़े। फिर भी उन्हें महज 24,688 वोट ही मिले। इसके बाद वर्ष 1999 और 2009 के चुनाव में भी किस्मत आजमाई। तीनों बार मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सहेजने में असफल साबित हुए।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1989 में फतेहपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित होकर देश के 8वें प्रधानमंत्री बने थे। इसी तरह बेटे अजय प्रताप सिंह ने भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास किया और वर्ष 2009 में इसी लोकसभा सीट से जनमोर्चा के टिकट पर चुनावी रण में ताल ठोकीं। हालांकि यहां की जनता ने उन्हें भी कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। इसी तरह बेटे अजय प्रताप सिंह ने भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास किया और वर्ष 2009 में इसी लोकसभा सीट से जनमोर्चा के टिकट पर चुनावी रण में ताल ठोकीं। हालांकि यहां की जनता ने उन्हें भी कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। इस चुनाव में अजय सिंह को मात्र 7,422 मत ही प्राप्त हुए। यह भी पिता की विरासत को सहेजने में कामयाब नहीं हुए।इस चुनाव में अजय सिंह को मात्र 7,422 मत ही प्राप्त हुए। यह भी पिता की विरासत को सहेजने में कामयाब नहीं हुए।

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