आज हम आपको बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय की कहानी बताने जा रहे हैं! बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कृष्ण वल्लभ सहाय की 31 दिसंबर को जयंती मनाई गयी! आजादी की लड़ाई में चार बार जेल जाने वाले के0बी0 सहाय देश में जमींदारी उन्मूलन का सूत्रधार रहे। रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह को चुनौती देने वाले के.बी. सहाय ने अंतरिम सरकार में राजस्व मंत्री की हैसियत से जमींदारी प्रथा उन्मूलन के लिए कानून बनाया। विधेयक का प्रारूप तैयार करने में केबी सहाय का साथ बजरंग सहाय ने दिया। इस कानून को बिहार एक्ट 1950 के नाम से जाना जाता है। इसने पूरे बिहार के जमींदारों में हड़कंप मचा दिया। दरभंगा राज के डॉ. कामेश्वर सिंह के नेतृत्व ने सभी जमींदारों ने इस कानून को हाई कोर्ट में चुनौती दी। दायर याचिका में इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 के विरूद्ध बताया गया। जमींदारों के खिलाफ इस लड़ाई में के.बी. सहाय प्रायः अकेले थे। उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। लेकिन वे बाल-बाल बच गये। लेकिन बिहार पहला राज्य था, जिसने जमींदारी प्रथा खत्म करने की पहल की थी। परंतु पहले पटना हाई कोर्ट ने और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून को निरस्त कर दिया। जमींदारी प्रथा उन्मूलन कानून के इस हश्र से हतप्रभ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान में पहला संशोधन किया। इस संशोधन के तहत अनुच्छेद 14 को निश्तेज करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 31 (ए) और 31 (बी) जोड़ा गया। जिसके बाद 1955 में भू हदबंदी विधेयक पेश किया गया। इसे संशोधित रूप में 1959 में स्वीकार किया गया। जबकि 1962 में इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।
देश में संसद और विधानसभा के पहले चुनाव के वक्त ही रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह और कृष्ण वल्लभ सहाय के बीच राजनीतिक जंग छिड़ गई थी। 30 दिसंबर 1951 को हजारीबाग में भारी भीड़ को संबोधित करते हुए राजा कामाख्या नारायण सिंह ने जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार जनता को दिलाने की वकालत प्रारंभ कर दी थी। उनके बढ़ते प्रभाव से चिंतित कांग्रेस और केबी सहाय ने उन पर लगाम कसने की शुरुआत अखबारों के माध्यम से की। कामाख्या नारायण सिंह के खिलाफ कबीना मंत्री की हैसियत से केबी सहाय का वह पत्र उन दिनों अंग्रेजी दैनिक ‘सर्चलाइट’ और ‘इंडियन नेशन’ छपा था। उस चुनाव में केबी सहाय के खिलाफ राजा कामाख्या नारायण सिंह बड़कागांव विधानसभा चुनाव क्षेत्र से मैदान में थे। राजा रामगढ़ की ओर से चुनाव प्रचार के लिए जो वीडियो फिल्म दिखाई जा रही थी, उसमें भारी भीड़ की उपस्थिति से डरी कांग्रेस सरकार ने फिल्म दिखाने वाली मशीन ही जब्त कर ली। कांग्रेस का आरोप था कि उस फूहड़ फिल्म को देखने से जनता भ्रम में पड़ जाती। भीड़ का हिस्सा पंडित नेहरू की सभा का होता और भाषण कर राजा रामगढ़ राजा कर रहे होते। फिल्म में रामगढ़ नरेश को गरीबों के बीच मुफ्त अनाज बांटते ही दिखाया जा रहा था, जबकि आरोप यह था कि अकाल की भयावह स्थिति में भी राजा बहादुर अपने महलों में सुरक्षित आराम फरमा रहे थे। आरोप-प्रत्यारोप के बीच चुनाव परिणाम आया, तो पता यही चला कि केबी सहाय बड़कागांव से चुनाव हार गए। मगर उनकी इज्जत गिरिडीह में बच गई, जहां से वे करीब 2 हजार मतों से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे और श्रीकृष्ण सिंह मंत्रिमंडल के सदस्य बने।
जमींदारी उन्मूलन कानून लाये जाने से खफा राजा रामगढ़ ने 1957 के चुनाव में गिरिडीह में भी केबी सहाय को चुनौती दे डाली। इस चुनाव में केबी सहाय रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह के हाथों बुरी तरह से पराजित हुए। वहीं बिहार कांग्रेस में भी अन्तर्कलह बढ़ गया। 1957 में जब केबी सहाय और महेश प्रसाद सिंह अपना-अपना चुनाव हारे थे, तो चर्चा यही हो रही थी कि दोनां ने एक-दूसरे को हराने का काम किया। गिरिडीह में केबी सहाय को हराने के लिए परिवहन मंत्री रहते हुए महेश प्रसाद सिंह पर परिवहन विभाग की बसों को गिरिडीह भेजने का आरोप लगा। वहीं केबी सहाय पर आरोप लगा कि मुजफ्फरपुर से महेश प्रसाद सिंह को हराने के लिए उन्होंने अपने स्वजातीय प्रसोपा (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी) नेता महामाया प्रसाद सिन्हा की आर्थिक मदद की। इन आरोपों के बीच कांग्रेस आलाकमान ने दोनों नेताओं को 1962 तक कोई भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी। लेकिन 23 अप्रैल 1959 को दिल्ली से खबर आई कि प्रतिबंध हटा लिया गया है।
24 अगस्त 1963 को कामराज योजना के तहत सीएम विनोदानंद झा को पद से इस्तीफा देना पड़ा। 24 सितंबर को नए सीएम का चुनाव कराने एसके पाटिल पटना पहुंचे। उनकी उपस्थिति में वीरचंद पटेल और केबी सहाय के बीच मुकाबला हुआ। इस मुकाबले में केबी सहाय की जीत हुई। लेकिन एक साल के बाद ही 6 अगस्त 1964 को बिहार विधानसभा में केबी सहाय सरकार के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। विपक्ष की ओर से कामाख्या नारायण सिंह ने सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए। वहीं केबी सहाय के खिलाफ भी व्यक्तिगत कई आरोप भी लगाए। लेकिन विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया। इस बीच केबी सहाय ने राजा रामगढ़ से जुड़ी स्वतंत्र पार्टी के 11 विधायकों को फोड़कर कांग्रेस में शामिल करा लिया। साथ ही कामाख्या नारायण सिंह को कांग्रेस में आने से रोक दिया। लेकिन कामराज ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया।
के.बी. सहाय को बिहार में दो बड़े उद्योग लगवाने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। एक बरौनी रिफाइनरी और दूसरा बोकारो में इस्पात प्लांट में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। तिलैया में सैनिक स्कूल और हजारीबाग में महिला कॉलेज की स्थापना में भी उनका काफी योगदान रहा। 1974 में बिहार से जेपी आंदोलन शुरू चुका था। उसी वक्त 2 जून 1974 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के.बी. सहाय की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। केबी सहाय उस वक्त बिहार परिषद के सदस्य भी थे। वे रामलखन यादव के पुत्र की शादी में शरीक होने पटना गए थे। 2 जून की सुबह वे सपरिवार कार से हजारीबाग लौट रहे थे। अपनी इस पटना यात्रा में वे आंदोलन का नेतृत्व थाम चुके जय प्रकाश नारायण से भी मिले थे। उनकी इस मौत को कुछ लोग हत्या की साजिश भी बता रहे थे।