आज हम आपको ओडिशा के जाजपुर में रहने वाली मीनू की कहानी बताने वाले हैं! लोग अक्सर बड़े लोगों की ही सक्सेस स्टोरी पढ़ना पसंद करते हैं। लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने तमाम झंझावातों के बीच अपना मुकाम बनाया है। अपने परिवार को संभाला है और इज्जतपूर्वक अपना जीवन यापन कर रही हैं। आज हम ओडिशा में जाजपुर के एक दूरस्थ गांव टमका गांव में जन्मी मीनू मोहंता की सक्सेस स्टोरी बता रहे हैं। उनके पिताजी गांव में राजमिस्त्री का काम करते थे। महज 14 साल की उम्र में ही एक फैक्ट्री में सेक्युरिटी गार्ड का काम कर रहे व्यक्ति से शादी हुई। शादी के नौ साल बाद ही एक दुर्घटना में उनके पति चल बसे। घर में दो छोटे बच्चे थे। बच्चों का पेट भरने की खातिर स्टोन क्रशर में मजदूरी की। फिर जिंदल स्टेनलेस में सफाई कर्मचारी बनीं। वहां उन्होंने ऐसी प्रतिभा और लगन से काम सीखा और किया कि कल उन्हें इंडियन स्टील एसोसिएशन का प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘विंग्स ऑफ स्टील’ दिया गया। उन्हें देश के स्टील सेक्रेटरी नागेंद्र नाथ सिन्हा ने यह पुरस्कार दिया। आप मीनू की कहानी जान कर आप द्रवित हो जाएंगे। वह बताती हैं कि उनके पिता राजमिस्त्री का काम करते थे। आमदनी कम थी और परिवार में सदस्यों की संख्या ज्यादा। तब भी उन्होंने मीनू को कैझारा प्राथमिक विद्यालय में भेजा। लेकिन सांतवी कक्षा में ही थी कि उनकी शादी हो गई। शादी के बाद 14 साल की मीनू अपने पति के साथ कलिंगनगर चली गईं। वहां उनके पति नीलांचल इस्पात निगम में सेक्युरिटी गार्ड का काम करते थे। पति ने प्रोत्साहित किया तो मीनू वहां फिर से पढ़ने लगी। लेकिन नौंवीं कक्षा में ही थी कि वह मां बनने वाली थी। फिर पढ़ाई छूट गई। साल 2004 में उनके सिर उस वक्त कुफ्र टूटा, जब उनके पति एक सड़क दुर्घटना में काल-कलवित हो गए। उस समय उनकी बेटी महज 6 साल की थी और बेट 4 साल का।
जब मीनू के पति सड़क दुर्घटना का शिकार हुए तो जैसे उनका जहां ही लुट गया। उनके पास कोई कोई नकदी नहीं थी। परिवार से पर्याप्त सहारा नहीं मिला। ऐसे में सबसे पहली समस्या सामने आई कि अपना और बच्चों का पेट कैसे भरे। कोई उपाय नहीं दिखा तो कलिंगनगर में ही एक स्टोन क्रशर में मजदूरी करने लगी। काम मिला बड़े पत्थरों को तोड़ कर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटना, ताकि उन्हें स्टोन क्रशर मशीन में डाला जा सके। इस काम के लिए उन्हें दिहाड़ी मिलती थी 60 रुपये। उन्हें यह किया ताकि परिवार का पेट भर सके और बच्चों को स्कूल भेज सके। साल 2011 में उन्होंने जिंदल स्टेनलेस के ओडिशा में जाजपुर स्थित प्लांट में सफाईकर्मी के रूप में जुड़ीं। उन्हें प्लांट के स्टील मेल्टिंग शॉप में फ्लोर क्लीनिंग का काम दिया गया। साल 2013 के दौरान वहां डुलेवो क्लीनिंग व्हीकल खरीदा गया। इससे स्टील मेल्टिंग शॉप में भी अच्छे से और जल्दी साफ-सफाई हो जाती थी। मीनू इस मशीन को बड़े गौर से देखती थी। उनका मन करता था कि इसे वह भी चलाए। उनके सुपरवाइजर ने मीनू की जिज्ञासा को देखते हुए उन्हें मशीन ड्राइविंग सीखने को प्रेरित किया। मीनू ने इसे चलाना सीखा और जल्द ही प्रवीण हो गईं।
वह चलाती तो थी Dulevo cleaning vehicle, लेकिन उनका ध्यान अटक गया शॉप के ऊपर लगे ओवरहेड क्रेन। यह क्रेन लोहे के बड़े-बड़े पिंडों को उठा कर इधर से उधर करता था। वह चाहती थी कि क्रेन चलाए। लेकिन वह यह बात मैनेजमेंट से कहे कैसे। इसी बीच साल 2015 में उन्हें डुलेवो क्लीनिंग मशीन चलाने में प्रवीणता हासिल करने के लिए स्टील मेल्टिंग शॉप के हेड ने सम्मानित किया। इसी दौरान उनसे पूछा गया कि उनका इंटरेस्ट किसी और चीज में है? मीनू ने बिना वक्त जाया किए बताया कि वह ओवरहेड क्रेन चलाना चाहती है। शॉप के हेड ने उनकी बात मान ली और उन्हें तीन महीने का वक्त दिया कि यह काम सीखो। मीनू ने ओवरहेड क्रेन चलाने का काम महज एक महीने में ही सीख लिया। अगले दो महीने के दौरान वह इस काम में परफेक्ट हो गई। फिर तो वह शॉप में सबसे भरोसेमंद क्रेन ड्राइवर हो गईं।
यदि आप स्टील सेक्टर में रूचि रखते हैं तो आप इंडियन स्टील एसोसिएशन के बारे में जानते होंगे। यह संस्था देश के स्टील प्रोड्यूसरों की है। आईएसए हर साल विंग्स ऑफ स्टील अवार्ड वैसे व्यक्ति को देता है, जो कि अपने काम में प्रवीणता का एक नया मुकाम हासिल किया हो। इस साल का विंग्स ऑफ स्टील अवार्ड मीनू मोहंता को मिला है। उन्हें यह पुरस्कार केंद्रीय इस्पात मंत्रालय के सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा के हाथों मिला। इस अवसर पर मीनू ने जिंदल स्टेनलेस का आभार जताया कि उसने न सिर्फ उन्हें नौकरी दी बल्कि उन्हें मन का काम करने का अवसर दिया। उनकी उपलब्धि को जिंदल स्टेनलेस के एमडी अभ्युदय जिंदल ने भी सराहा। उन्होंने कहा कि जिंदल स्टेनलेस मीनू की प्रतिभा को सलाम करता है। यह अच्छी बात है कि उनके संघर्ष और जज्बे को इंडियन स्टील एसोसिएशन ने भी पहचाना और इस काबिल समझा कि उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा सके।
मीनू ने जिंदल स्टेनलेस की नौकरी करते हुए बच्चों की पढ़ाई पर भी काफी ध्यान दिया। उनकी बेटी ने तो हाइयर सेकेंडरी पास कर लिया और कॉलेज में फर्स्ट इयर में एडमिशन ले लिया। इस बीच उनकी शादी हो गई और वह अपने पति के घर चली गई। वह अपने बेटे को खूब पढ़ाना चाहती थी लेकिन उसका मन पढ़ने में मन नहीं लगा। तमाम प्रयासों के बावजूद उसने नौंवीं में ही पढ़ाई छोड़ दी। उसने नीलांचल इस्पात निगम में जेसीबी ड्राइवर की नौकरी कर ली। बेटे की भी शादी हो गई है और उसे एक बेटी है।