आज हम आपको विपक्ष के INDIA गठबंधन में चल रही खींचतान के बारे में बताने वाले हैं! लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा विपक्षी एकता गठबंधन INDIA की पोल खुलती दिख रही। केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी को हैट्रिक से रोकने के लिए देशभर के कई विपक्षी दलों ने मिलकर ये गठबंधन बनाया। हालांकि, लोकसभा चुनाव से पहले ही इंडी अलायंस बिखर चुका है। कांग्रेस की ओर से कोशिशें तो बहुत हुई लेकिन विपक्षी एकजुटता में बिखराव साफ नजर आया। पहले पंजाब, फिर केरल के बाद अब पश्चिम बंगाल में भी गठबंधन टूट चुका है। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने बंगाल में सभी सीटों पर उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। इसी के साथ कांग्रेस की ओर से टीएमसी संग बातचीत के दावों की पोल खुल गई। इससे पहले पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया। ऐसा ही हाल केरल में भी दिख रहा जहां कांग्रेस अकेली नजर आ रही। सिर्फ यूपी, बिहार ने एक तरह से विपक्षी गठबंधन की लाज बचाई है। इसके अलावा दिल्ली, गुजरात, हरियाणा में जरूर आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया है। बावजूद इसके क्षत्रपों के गढ़ में इंडिया अलायंस हवा होता नजर आ रहा। याद करिए 23 जून 2023 का वो दिन जब बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी एकता के दावों के साथ अहम बैठक हुई। इसमें शामिल दो दर्जन से ज्यादा पार्टियों ने बीजेपी को हराने के लिए एकजुट लड़ने का ऐलान किया। जैसे ही ये घोषणा हुई तो देशभर की राजनीति में हलचल मच गई। हालांकि, कुछ महीनों में ही इस गठबंधन की पोल खुलने लगी। सबसे पहले विपक्षी एकता की नींव रखने में अहम रोल निभाने वाले नीतीश कुमार इससे अलग हुए। उनकी पार्टी जेडीयू ने बीजेपी संग गठबंधन का फैसला किया। यही नहीं बिहार में उन्होंने आरजेडी-कांग्रेस से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार भी बना ली। यहीं से इंडिया अलायंस में टूट का दौर शुरू हो गया।
नीतीश कुमार के I.N.D.I.A. से अलग होते ही मानों इसकी बैठकें और तमाम गतिविधियां लगभग ठप सी हो गई हैं। टीएमसी ने पहले ही क्लीयर कर दिया था कि वो पश्चिम बंगाल में अकेले दावेदारी करेगी। कांग्रेस को तभी तगड़ा झटका लगा था। हालांकि, कांग्रेस आलाकमान की कोशिश ममता को मनाकर गठबंधन थी। इसमें भी पेंच ये था बंगाल कांग्रेस नेतृत्व नहीं चाहता था कि वो ममता के साथ जाए। अधीर रंजन लगातार इस पर अपना स्टैंड रख रहे थे। हालांकि, वो आलाकमान की पहल को भी नकार नहीं रहे थे। बावजूद इसके ममता बनर्जी अपने रूख पर कायम रहीं और अब 10 मार्च को उन्होंने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी। इसी के साथ तय हो गया कि बंगाल में कांग्रेस अब अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी।
कुछ ऐसा ही हाल केरल में भी नजर आ रहा, जहां कांग्रेस और लेफ्ट के बीच गठबंधन का गणित नहीं बैठ सका। लेफ्ट की ओर से कैंडिडेट्स पर फैसला लगभग फाइनल हो गया। उधर कांग्रेस ने भी 16 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इसी के साथ ये साफ हो गया कि उनकी लेफ्ट के साथ बात नहीं बनी। इस तरह से यहां भी विपक्षी अलायंस बिखरा नजर आया। कांग्रेस को एक और बड़ा झटका पंजाब में भी लगा जहां आम आदमी पार्टी ने गठबंधन से अलग अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया। इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस में शामिल रही आप ने पंजाब में कांग्रेस के साथ जाने से इनकर दिया। भगवंत मान ने साफ कर दिया पार्टी अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ेगी। हालांकि, आप और कांग्रेस के बीच दिल्ली, हरियाण और गुजरात में जरूरी सीट शेयरिंग फॉर्म्युला फाइनल हो गया। बीजेपी को रोकने के लिए इन तीन राज्यों में दोनों दल एक साथ चुनावी रण में उतरेंगे।
उत्तर प्रदेश में जरूर इंडिया अलायंस एकजुट नजर आ रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की घोषणा हो चुकी है। यूपी में सीटों को लेकर जो समझौता हुआ उसके मुताबिक, कांग्रेस राज्य की 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बाकी 63 सीटें सपा और उसके साथ शामिल सहयोगियों को मिलेंगी। वहीं सपा और कांग्रेस गठबंधन मध्य प्रदेश में भी रहेगा। मध्य प्रदेश की खजुराहो सीट समाजवादी पार्टी को देने पर कांग्रेस राजी हो गई है। इसके अलावा राज्य की बाकी बची 28 सीटों पर कांग्रेस अपने उम्मीदवार उतारेगी। केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी को 2024 में रोकने के लिए इंडी अलायंस बन तो गया लेकिन इसमें शामिल दलों के बीच संवादहीनता साफ दिखी। इससे भी कई राज्यों में गठबंधन पर प्रतिकूल असर पड़ा। जब लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी गठबंधन बना तो सवाल यही था कि आखिर उनका टारगेट क्या है। बैठकें तो कई बार हुई दो दर्जन से ज्यादा पार्टियों के नेता शामिल भी हुए लेकिन कोई क्लीयर रोडमैप नहीं दिखा। इसके अलावा अलग-अलग दलों के प्रमुखों में आपसी अंतर्विरोध भी बिखराव में अहम रोल निभाया।
इंडिया अलायंस में शामिल पार्टियां लगातार अलग स्टैंड लेते हुए बाहर होती नजर आईं। यही नहीं जिस तरह से कई बड़े राज्यों में गठबंधन सफल नहीं उससे चुनाव बाद भी इसकी स्थिरता पर सवाल उठना लाजमी है। दूसरी ओर अगर बीजेपी नेतृत्व की प्लानिंग देखें तो उन्होंने पहले खुद के लिए 370 सीटों का टारगेट सेट किया। यही नहीं अलग-अलग राज्यों में अलायंस को लेकर भी बीजेपी आलाकमान काफी एक्टिव दिखा। यही वजह है कि पार्टी ने एक दिन पहले ही आंध्र प्रदेश में अपने पुराने साथी टीडीपी को एनडीए में लेकर आए। ओडिशा में भी पार्टी की कोशिश बीजू जनता दल के साथ गठबंधन की है। इस तरह बीजेपी लगातार अपने कुनबे को बढ़ाने में जुटी है, दूसरी विपक्षी कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया अलायंस में टूट थम ही नहीं रहा।