आज हम आपको वियना समझौता के बारे में बताने वाले हैं! बीते दिनों डिप्लोमेसी की दुनिया में वियना कन्वेंशन का कई बार जिक्र हुआ। कनाडा और भारत के कूटनीतिक संबंधों के मद्देनजर दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका हवाला देकर आरोप- प्रत्यारोपों का एक दौर भी देखने को मिला। दरअसल बीते दिनों कनाडा ने भारत में तैनात अपने 41 डिप्लोमैट्स को वापस बुलाया था। कनाडा ने कहा कि उसे ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि भारत ने एक तारीख के बाद इन सभी लोगों की राजनयिक प्रतिरक्षा हटाने की एकतरफा घोषणा कर दी थी। इस दौरान कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली ने भारत पर वियना कन्वेंशन के नियमों को तोड़ने के आरोप भी लगाए। हालांकि भारत ने कहा कि उसने महज वियना कन्वेंशन में मौजूद राजनयिक मौजूदगी में समानता के सिद्धांत का ही पालन किया है। भारत ने आर्टिकल 11.1 का जिक्र करते हुई इस कदम को एकदम सही बताया। इस मसले पर हालांकि वियना कन्वेंशन का जिक्र करके अमेरिका और ब्रिटेन ने कनाडा का साथ दिया। ऐसे में ये समझना जरूरी है कि वियना कन्वेंशन आखिर दो देशों के आपसी संबंधों के तनाव के दौरान एक जरूरी पड़ाव की तरह क्यों सामने आता है।
वियना कन्वेंशन के तहत कई ऐसे प्रावधान हैं जो डिप्लोमैटिक स्टाफ और इमारतों को सुरक्षा देते हैं। 53 आर्टिकल वाले इस कन्वेंशन के नियम यूनाइटेड नेशंस के अंतरराष्ट्रीय लॉ कमीशन के दिमाग की उपज है। वियना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमैटिक रिलेशन्स को 18 अप्रैल 1961 को अपनाया गया था। उस वक्त यूनाइटेड नेशंस के 60 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि अप्रैल 1964 में लागू होने के बाद इसे अब दुनिया के 192 देश मानते हैं और इसके नियमों से बंधे हैं। इस कन्वेंशन का मकसद था देशों के डिप्लोमैटिक संबंधों को मजबूत करना।
दरअसल कोल्ड वॉर के दौरान डिप्लोमेसी की दुनिया में एक दूसरे के प्रति संदेह और अविश्वास का माहौल था। ऐसे में इस तरह के एक फ्रेमवर्क की जरूरत महसूस हुई , जिसके घेरे में देश अपने डिप्लोमैटिक संबंधों को दिशा दे सकते हैं। तब से लेकर अब तक दुनिया भर में द्विपक्षीय संबंधों को इसी फ्रेमवर्क के चश्मे से देखा और समझा जाता रहा है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि ‘दरअसल डिप्लोमैटिक संबंधों से जुड़े सारे पहलू वियना कन्वेंशन में कवर होते हैं। हालांकि कई बार ऐसा जब कोई विवाद का मसला आता है, तो देश अपने मुताबिक वियना कन्वेंशन की बात जरूर करते हैं, पर अपने अपने तर्कों के साथ और अपनी अलग-अलग व्याख्याओं के साथ।’ भारत और कनाडा के संबंध में वो कहते हैं कि भारत ने जो किया, वो उसके अधिकारों में आता है। आगा कहते हैं कि ‘हालांकि ये सही है कि कूटनीति स्टाफ की मौजूदगी की समानता और स्टाफ की संख्या के नियमों का ब्योरा कन्वेंशन में है और भारत को इस संदर्भ में समानता रखने का पूरा अधिकार है।’
दरअसल इस मसले पर भारत ने कन्वेंशन के आर्टिकल 11.1 का जिक्र किया लेकिन साथ ही अनुच्छेद 11.2 भी कहता है कि ‘मेजबान देश दूसरे देश के स्टाफ को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है, हालांकि इसका एक निष्पक्ष आधार होना चाहिए। इसके साथ ही इसका आर्टिकल 9 कहता है कि अगर मेजबान देश को किसी डिप्लोमैटिक स्टाफ से दिक्कत है या वो उसे अवांछित मानते हैं तो वो गेस्ट देश को बिना अपने फैसले के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए फैसले के बारे में बता सकते हैं।वहीं आर्टिकल 9.1 इस बात का विस्तार से जिक्र करता है कि अवांछित स्टाफ के बारे में मेजबान देश से जानकारी मिलने के बाद भेजने वाले देश को या तो उस स्टाफ को वापस बुला लेना चाहिए या फिर उस डिप्लोमैटिक मिशन के साथ उसकी सेवाएं खत्म कर देनी चाहिए। हालंकि 1961 के कन्वेंशन के आर्टिकल 29 के मुताबिक डिप्लोमैटिक एजेंट किसी तरह तरह की हिरासत या गिरफ्तारी से परे होते हैं।
वैसे दुनिया के कई देश आपसी विवाद के वक्त इस कन्वेंशन के नियमों का हवाला देकर राजनयिक फैसले लेते रहे हैं। साल 2017 में अमेरिका और रूस के बीच भी ऐसा देखने को मिला था। दोनों देशों के बीच राजनयिक मौजूदगी में समानता का मामला उस वक्त उठा था, जब दोनों के बीच के संबंध अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे थे और दोनों ने अपने डिप्लोमैटिक स्टाफ में कटौती की थी। वहीं हाल के समय में साल 2019 में जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक मौजूदगी सीमित हुई थी। उस वक्त पाकिस्तान ने भारत के उच्चायुक्त को निष्कासित किया था, जिसके बाद भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की थी। कुल मिलाकर वियना कन्वेंशन का जिक्र देशों के बीच होता रहता है और ऐसा विवादों के दौरान ही अमूमन देखने को मिलता भी है।