कर्नाटक के चुनाव परिणाम एक संदेश दे रहे हैं! कर्नाटक विधानसभा चुनाव और यूपी नगर निकाय चुनाव के नतीजे साफ हो चुके हैं। दक्षिण भारत में बीजेपी का इकलौता किला कर्नाटक ध्वस्त हो चुका है। कांग्रेस जबरदस्त जीत की ओर बढ़ रही। ऐसी जीत जिसमें ‘रिजॉर्ट पॉलिटिक्स’ की आशंका भी पूरी तरह खत्म हो चुकी है। काउंटिंग के शुरुआती 2-3 घंटे के रुझानों जब कांग्रेस लगातार बढ़त बनाती दिखी तब खबर आई कि पार्टी ने रिजॉर्ट बुक कर लिए हैं। विधायकों को सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचाने के लिए चार्टर्ड प्लेन भी स्टैंड बाइ मोड में तैयार रख लिए गए थे। ‘ऑपरेशन कमल’ का डर जो था। लेकिन जैसे-जैसे गिनती आगे बढ़ी, ‘रिजॉर्ट पॉलिटिक्स’ वाला संभावित सस्पेंस भी खत्म हो गया। 224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में कांग्रेस 135 से ज्यादा पर जीतती दिख रही। वोटशेयर 43 प्रतिशत से ज्यादा। वहीं, बीजेपी 70 तक भी नहीं पहुंची। वोटशेयर भी करीब 36 प्रतिशत रहा। दूसरी तरफ यूपी निकाय चुनाव में बीजेपी का जलवा कायम रहा। कर्नाटक के झटके के बीच यूपी के नतीजे बीजेपी के लिए सांत्वना पुरस्कार जैसे हैं। आइए समझते हैं इन दोनों चुनावों के नतीजों में छिपे 5 बड़े संदेशों को। वैसे तो करप्शन बहुत कम बार ही चुनावों को प्रभावित करने वाला मुद्दा बन पाता है। लेकिन जब किसी सरकार के बारे में जनता के मन में ये पर्सेप्शन मजबूत हो जाए कि इसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला है तो नतीजे कर्नाटक जैसे ही आते हैं। 2014 में केंद्र की यूपीए-2 सरकार की हार की वजह भी करप्शन को लेकर बनी जनधारणा ही थी। बोम्मई सरकार को ’40 प्रतिशत कमिशन’ वाला बताने के अभियान में कांग्रेस ने पूरी ताकत लगाई और उसे कामयाबी भी मिली। उसके लोकलुभावन वादें भी उसके काम आए। बीजेपी को दक्षिण भारत के अपने इकलौते किले के दरकने का अंदाजा शायद पहले ही हो चुका था इसलिए उसे बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आक्रामक चुनाव प्रचार किया। पीएम की ताबड़तोड़ रैलियां हुईं। रोडशो हुए। ‘बजरंग दल’ पर बैन लगाने के कांग्रेस के वादे के बहाने चुनाव में ‘बजरंग बली’ का आह्वान कर ध्रुवीकरण की कोशिश भी हुई लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। दूसरी तरफ, यूपी नगर निकाय चुनाव में बीजेपी का डंका बजा। 17 की 17 नगर निगमों पर कमल खिला। सपा, बसपा, कांग्रेस…सभी विपक्षी दल हवा हो गए। नगर पालिकाओं और नगर पंचायत अध्यक्षों के मामले में भी बीजेपी बाकी दलों से काफी आगे रही। कर्नाटक और यूपी के चुनाव नतीजों में ये बड़ा संदेश छिपा है कि राज्यों में बीजेपी सिर्फ मोदी भरोसे नहीं जीत सकती। उसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रभावशाली नेतृत्व जरूरी है। योगी के सख्त प्रशासक की छवि निकाय चुनाव के नतीजों से और मजबूत हुई है। सालभर पहले यूपी विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की जीत के पीछे ये फैक्टर था। मगर कर्नाटक में स्थानीय नेतृत्व की कमजोरी बीजेपी को महंगी पड़ी। राज्य में बीजेपी को बीच में ही मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। बोम्मई कोई छाप छोड़ने में नाकाम रहें और भ्रष्टाचार के आरोपों से चुनाव में पार्टी का बंटाधार हो गया।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए टॉनिक की तरह हैं। ज्यादातर एग्जिट पोल्स में कांग्रेस की बढ़त या बहुमत की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन पार्टी का प्रदर्शन उससे भी कहीं बेहतर रहा। राज्य में उसकी ऐसी आंधी चली कि बीजेपी के परखच्चे उड़ गए। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी के किंगमेकर बनने के ख्वाब हवा हो गए। सूबे में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के दरवाजे बंद हो गए। हिमाचल फतह के 6-7 महीने के भीतर कांग्रेस के झोली में एक और राज्य आया है। दोनों जगह पार्टी ने बीजेपी को बेहद शानदार अंदाज में सत्ता से बेदखल किया। देश के नक्शे पर लगातार सिकुड़ रही कांग्रेस ने इन नतीजों से बाउंस बैक किया है। अब राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल के बाद कर्नाटक में भी यानी 4 राज्यों में उसकी सरकार है। गुजरात चुनाव में जिस तरह कांग्रेस को बुरी तरह हार झेलनी पड़ी और आम आदमी पार्टी ने वहां दस्तक दी, उससे ग्रैंड ओल्ड पार्टी के बारे में ये धारणा बन रही थी कि वह सियासी परिदृश्य से धीरे-धीरे बाहर हो रही है और आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे उसकी जगह ले सकती है। लेकिन कर्नाटक चुनाव ने बता दिया कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी अभी जिंदा है! अगर मतभेद भुलाकर नेता चुनाव में साथ लड़ें तो खोई हुई जमीन फिर से हासिल करना बहुत मुश्किल नहीं।
कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड जीत से विपक्ष के नेताओं में राहुल गांधी का कद बढ़ा है। भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की ‘रिलक्टेंट पॉलिटिशियन’ की छवि को बदला है और वह एक जुझारू नेता के रूप में खुद को प्रोजेक्ट करने में सफल हुए है। अब कर्नाटक की जबरदस्त जीत ने उनकी छवि को और पुख्ता किया है। उन्होंने इसे ‘नफरत पर प्यार की जीत’ करार दिया है। लोकसभा चुनाव से बमुश्किल सालभर पहले एक बड़े राज्य में इस तरह की बड़ी जीत राहुल गांधी को विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बनाता है। 2024 में मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की कवायद में अब विपक्ष के बाकी दलों और नेताओं को राहुल गांधी को नजरअंदाज कर पाना मुश्किल होगा। कर्नाटक की जीत से राहुल गांधी की विपक्ष की तरफ से पीएम पद की दावेदारी अब ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसीआर जैसे नेताओं के मुकाबले मजबूत हुई है। हालांकि, लोकसभा चुनाव में अभी सालभर का वक्त है। विपक्षी एकजुटता और मोदी के मुकाबले विपक्ष के सर्वमान्य चेहरे के लिए काफी दांव-पेच चलेंगे लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस की दावेदारी मजबूत हुई है। हालांकि, राहुल गांधी के मामले में एक बड़ा पेच है। मानहानि केस में उन्हें 2 साल की सजा हुई है। इस वजह से न सिर्फ उनकी लोकसभा सदस्यता भी जा चुकी है बल्कि वह अगला लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। हां, अगर 2024 चुनाव से पहले अगर ऊपरी अदालत से वह बरी हो जाते हैं तो ये बाधा खत्म हो सकती है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका का मंच सेट किया है। प्रियंका खुद को यूपी की राजनीति तक सीमित कर रखी थीं लेकिन हिमाचल चुनाव में उन्होंने जमकर प्रचार किया था। कर्नाटक में भी वह रैलियों और रोडशो से छाप छोड़ने में कामयाब रहीं। प्रियंका की रैलियों और रोडशो में जबरदस्त भीड़ भी उमड़ी। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी और कर्नाटक से उनके रिश्तों की याद दिलाते हुए जनता से दिल का रिश्ता जोड़ने की कोशिश कीं। नतीजे बताते हैं कि वह इस कोशिश में कामयाब हुईं हैं। अब कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर उनकी भूमिका और सक्रियता और ज्यादा बढ़ने वाली है। अगर मानहानि मामले में राहुल गांधी को ऊपरी अदालत से राहत नहीं मिली तो प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस की तरफ से पीएम पद का दावेदार भी हो सकती हैं।