आखिर भारत को रूस से क्या लेना चाहिए सबक?

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भारत को रूस से सबक लेना चाहिए! विदेश मंत्री एस जयशंकर की मास्को की द्विपक्षीय यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब दुनिया को यह लग रहा है कि रूस यूक्रेन पर परमाणु हमला कर सकता है। हालांकि, जब से राष्ट्रपति पुतिन ने रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु को फरवरी में देश के सेना को हाई कॉम्बैट अलर्ट पर रखने का आदेश दिया था, तब से जमीन पर रूसी परमाणु बलों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वास्तव में परमाणु हमले की तैयारी को लेकर कोई संकेत नहीं मिले हैं। किसी भी मामले में, पुतिन और रूसी विदेश कार्यालय ने तब से संभावित परमाणु हथियारों के उपयोग को अस्वीकार कर दिया है। यहां तक कि अटकलें रूसी रणनीतिक हथियार के भंडार के संभावित उपयोग के बारे में नहीं हैं, लेकिन सामरिक परमाणु हथियारों तक ही सीमित हैं। टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स के सीमित उपयोग से पारंपरिक लड़ाई के परिणामों में बदलाव की संभावना नहीं है, जब तक कि इनका उपयोग बड़ी संख्या में नहीं किया जाता है। हालांकि, यह अव्यावहारिक है क्योंकि यह ऐसा होने पर यह बम का प्रयोग करने वाले की ताकत को भी प्रभावित करेगा। इसके अलावा युद्ध के मैदान पर भी इसका असर दिखेगा।

1994 के बुडापेस्ट मेमोरेंडम के तहत, रूस ने यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और सीमाओं का सम्मान करने का वचन दिया था। इसके बदले में यूक्रेन ने अपनी धरती पर तैनात 4,400 परमाणु हथियारों को खत्म कर दिया था। गैर-परमाणु हथियार वाले देश अब समझते हैं कि संघर्ष की स्थिति में परमाणु-हथियार वाले देशों की तरफ से दिए गए नकारात्मक सुरक्षा आश्वासन बेकार हैं। साथ ही यह प्रचलित अंतरराष्ट्रीय सहमति को कमजोर करता है जिस पर परमाणु हथियारों के अप्रसार पर संधि आधारित है। यूक्रेन में युद्ध से पहले भी, जापान में जनता की राय और इससे भी ज्यादा दक्षिण कोरिया में परमाणु हथियार प्राप्त करने वाले दोनों देशों के पक्ष में झूल रहा था। दक्षिण कोरियाई और जापानी अमेरिका की विश्वसनीयता के बारे में सवाल पूछ रहे हैं। यह सवाल है कि क्या यह टोक्यो और सियोल के लिए न्यूयॉर्क और लॉस एंजिल्स को जोखिम में डालेगा। सामान्य समझ यह है कि अमेरिका अपने सहयोगियों और दोस्तों की रक्षा के लिए अपनी मुख्य भूमि की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकता है।

बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स के अनुसार, शीत युद्ध के बाद दुनिया भर में टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन TNWs में कमी आई है। 1980 के दशक में इनकी संख्या 20,000-30,000 के बीच थी। 2019 में यह घटकर 2,500 हो गई। अमेरिकी सूची में, TNWs 1989 में 9,000 से घटकर 2019 में 230 हो गया। पाकिस्तान इस ग्लोबल ट्रेंड का एकमात्र अपवाद था। पाकिस्तान ने ‘फ्लैक्सिबल रेस्पॉन्स’ थ्योरी को अपनाने के क्रम में मिनिमम क्रेडिबल डेटरेंस की अपनी घोषित परमाणु स्थिति को छोड़ दिया।

पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन एसपीडी के पूर्व प्रमुख जनरल खालिद किदवई ने 2015 के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज इवेंट में स्वीकार किया था कि पाकिस्तान के पास ‘विभिन्न प्रकार की छोटी दूरी, लो यील्ड वाले परमाणु हथियार’ हैं।

इसमें 11 साल पहले टेस्ट किया गया और नौ साल पहले सेना में शामिल किया गया नस्र (हत्फ IX) शामिल है। पाकिस्तान का मानना है कि नस्र मेकेनाइज्ड कन्वेन्शनल फोर्सेज के खिलाफ एक डेटरेंस है।पाकिस्तान के टैक्टिकल न्यूकिल्यर वेपन्स का उद्देश्य कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट, मिलट्री हॉस्टाइल की शीघ्र समाप्ति और युद्ध की रोकथाम प्रतीत होते हैं। हालांकि, टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन का यूज का उल्टा असर होगा।

तनाव को मैनेज करना मुश्किल होगा और व्यापक विनाश की संभावना बन सकती है।

जब टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स के यूज का खतरा झांसा देने और ढीठपन से परे चला जाता है और जमीन पर परमाणु बलों के स्वभाव को बदलने के लिए आगे आता है तो टकराव का खतरा बढ़ जाएगा।इसमें 11 साल पहले टेस्ट किया गया और नौ साल पहले सेना में शामिल किया गया नस्र (हत्फ IX) शामिल है। पाकिस्तान का मानना है कि नस्र मेकेनाइज्ड कन्वेन्शनल फोर्सेज के खिलाफ एक डेटरेंस है।पाकिस्तान के टैक्टिकल न्यूकिल्यर वेपन्स का उद्देश्य कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट, मिलट्री हॉस्टाइल की शीघ्र समाप्ति और युद्ध की रोकथाम प्रतीत होते हैं। हालांकि, टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन का यूज का उल्टा असर होगा। ऐसे में ये गलत अनुमान, गलतफहमी या सरासर मूर्खता की संभावना बढ़ जाएगी। यही एक कारण है कि नस्र का प्रोडक्शन तो किया गया लेकिन तैनात नहीं हुआ। ऐसे में ये हथियार गलत हाथों में पड़ सकते हैं। एक इस्लामी संगठन को संवेदनशील जानकारी देने के लिए शम्सी हवाई अड्डे पर पाकिस्तान के एक ब्रिगेडियर की 2009 की गिरफ्तारी हुई थी।