आज हम आपको भोपाल गैस लीक के मामले के बारे में बताने वाले हैं! 3 दिसंबर 1984 की स्याह रात को भूलना भोपाल वासियों के लिए नामुमकिन है। यह भारत के औद्योगिक इतिहास का सबसे बड़ा हादसा है। इसमें हजारों लोगों की जान गई थी। एमपी में जिस दिन विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे, उसी दिन इस भयावह त्रासदी की बरसी है। भोपाल यूनियन कार्बाइड हादसे के वक्त मोती सिंह यहां के कलेक्टर थे। उन्होंने हादसे की कहानी ‘भोपल गैस त्रासदी का सच’ नामक किताब में बयां की है। तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि यूनियन कार्बाइड कंपनी का अध्यक्ष कैसे एक चूक से गिरफ्तारी के चंद घंटे बाद ही छूट गया था। दरअसल, भोपाल की यूनियन कार्बाइड कंपनी से दो और तीन दिसंबर की दरमियानी रात जहरीली गैस का रिसाव शुरू हुआ था। तीन दिसंबर की सुबह तक हजारों लोग काल की गाल में समा गए थे। भोपाल के अस्पतालों में लाशों की ढेर पड़ी थी। पूरे शहर में त्राहिमाम मचा हुआ था। छह दिसंबर 1984 को तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह को सूचना मिली कि यूनियन कार्बाइड कंपनी का अध्यक्ष वारेन एंडरसन, यूनियन कार्बाइड के इंडिया अध्यक्ष केशव महेंद्र और प्रबंध संचालक विजय गोखले भोपाल पहुंच रहे हैं। शासन की तरफ से अधिकारियों को इन्हें गिरफ्तार करने के निर्णय की सूचना दी गई है। साथ ही यह जानकारी भी कलेक्टर-एसपी को दी गई कि वे लोग सर्विस फ्लाइट से भोपाल पहुंच रहे हैं।
यह सूचना आग की तरह फैल गई थी कि एंडरसन भोपाल आ रहा है। इसके बाद मीडियाकर्मियों का जमावड़ा एयरपोर्ट पर लग गया। सभी को बाहर किया गया। इसके बाद अधिकारी रनवे की तरफ गए, वहां फ्लाइट पहुंच गई थी। सारे रास्ते बंद करवा दिए गए, इसकी वजह से मीडियाकर्मी भी नाराज हुए। अधिकारियों की टीम विमान के करीब पहुंची और कॉकपिट वाले रास्ते से अंदर गए और उसी रास्ते से एंडरसन, महेंद्र और गोखले को लेकर आए। अन्य यात्री प्लेन में ही बैठे हुए थे।
तत्कालीन भोपाल कलेक्टर मोती सिंह ने इशारा किया और एसपी उनकी कार लेकर वहां पहुंच गए। इसके बाद उन्हीं की कार में एंडरसन, महेंद्र और गोखले को बैठाया गया। तीनों बिना किसी शंका के कार में बैठ गए। बाद में एंडरसन को शंका हुआ तो वह नीचे उतरकर सामान के बारे में पूछने लगा। तत्कालीन कलेक्टर ने कहा कि आपका सामान सुरक्षित है और मिल जाएगा।गिरफ्तारी के बाद एंडरसन समेत दो अन्य लोगों को श्यामला हिल्स स्थित यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस में लाया गया। गेस्ट हाउस लाकर उन्हें गिरफ्तारी की सूचना दी गई। इसके बाद एंडरसन ने पूछा कि मुझे क्या करना है। अधिकारियों ने उन्हें कहा कि सभी लोग अलग-अलग कमरे में रहें और किसी के संपर्क में नहीं रहें। तीनों को अलग-अलग कमरे में रखा गया। साथ ही वहां पुलिस का पहरा लगा दिया गया। वहीं, कंपनी के अन्य अधिकारी गिरफ्तारी की खबर सुनकर गेस्ट हाउस से निकल गए।
गेस्ट हाउस से निकलने के बाद तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने मीडिया को एंडरसन की गिरफ्तारी की जानकारी दी। इसके बाद पूरे देश में यह खबर चलने लगी। आगे अपनी किताब में मोती सिंह ने लिखा है कि छह दिसंबर 1984 को ढाई बजे दोपहर मुख्य सचिव के बुलावे पर सचिवालय स्थित उनके चैंबर में गया। यहां एक-दो अधिकारी पहले से बैठे थे। इसके बाद मुख्य सचिव ने कहा कि बैरागढ़ हवाई अड्डे पर स्टेट प्लेन खड़ा है और एंडरसन को उसी हवाई जहाज से तत्काल दिल्ली भेजा जाना है। साथ ही कहा गया कि तीन बजे तक प्लेन हवाई अड्डे से उड़ जाए।
वहां से कलेक्टर और एसपी एंडरसन के पास पहुंचे और फैसले के बारे में जानकारी दी। इस पर एंडरसन तैयार नहीं हुआ। साथ ही कहने लगा कि मुझे यहां की स्थिति देखना है और मुख्यमंत्री से मिलना चाहते हैं। ऐसे में अधिकारियों ने कहा कि भारी जान माल का नुकसान हुआ है। ऐसी परिस्थिति में आप बाहर नहीं जा सकते हैं। भोपाल में ज्यादा देर तक रहना सुरक्षित नहीं है। वह बार-बार दिल्ली जाने से मुकरते रहा। इस दौरान उसने अधिकारियों को गैस रिसाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इसका मतलब था कि हादसे के बाद भोपाल से उसे सारी जानकारी मिल रही थी।अधिकारियों के साथ करीब डेढ़ घंटे की चर्चा के बाद एंडरसन दिल्ली जाने के लिए तैयार हुआ। इसके बाद गेस्ट हाउस से एक गुप्त रास्ते के जरिए अधिकारी उसे एयरपोर्ट लेकर गए। साथ ही स्टेट प्लेन से उसे दिल्ली भेज दिया गया। दिल्ली पहुंचने के बाद मीडिया में खबर चलने लगी कि एंडरसन पहुंच गया है। इसके साथ ही तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई।
तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह अपनी किताब में लिखते हैं कि हां, एक चूक हमलोगों से हुई थी। जिस कमरे में एंडरसन को गिरफ्तारी के बाद रखा गया था, उसमें फोन लगा हुआ था। समय की कमी के कारण पुलिसवाले कमरे की जांच सही से नहीं कर पाए थे। उसी टेलीफोन का एंडरसन ने जमकर उपयोग किया और बच निकला।