Sunday, December 22, 2024
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आखिर क्या था पीलीभीत एनकाउंटर?

आज हम आपको पीलीभीत एनकाउंटर की कहानी सुनाने जा रहे हैं! दिन 12 जुलाई 1991, स्थान- पीलीभीत का कछाला घाट.. बसों की जांच चल रही थी। एक बस आती दिखी। 25 सिख उसमें सवार थे। बस में बैठे सिख तीर्थयात्रा कर लौट रहे थे। नानकमथा, पटना साहिब, हुजूर साहिब और अन्य तीथों के भ्रमण के बाद लौट रहे तीर्थयात्रियों में से 11 को पुलिस ने बस से उतार लिया। आरोप लगा खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी का। उन 11 युवकों को पुलिस ने एक नीली बस में सवार किया। बस चल पड़ी। साथियों के आंखों में खौफ का भाव था। वे उन 11 युवकों को पहली बार जीवित देख रहे थे। बाद में 10 के एनकाउंटर की खबर आई। शाहजहांपुर के तलविंदर सिंह का पता आज तक नहीं चल पाया है। सिख युवकों को लोगों ने किसी भी गुट से जुड़ा नहीं बताया। पुलिस पर आरोप लगे। मामला गरमाया। दोषी 43 पुलिसकर्मियों पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया। कहा जाता है कि तब यूपी पुलिस में एनकाउंटर पर प्रमोशन मिलता था। इसलिए, गलत सूचना के बाद भी पुलिसकर्मियों ने 11 सिख युवकों को उतारा। एनकाउंटर कर दिया। अब इस मामले में कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में बदलाव कर दिया है। पीलीभीत एनकाउंटर के नाम से चर्चित यह केस इस समय एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इसका कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसल है। हाई कोर्ट ने 1991 के पीलीभीत फेक एनकाउंटर केस में 43 पुलिसकर्मियों को सात-सात की सजा सुनाई है। दोषी पुलिसकर्मियों पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सजा का ऐलान करते समय जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव ने पुलिस को लेकर बड़ी बात कही। कोर्ट ने कहा कि बेशक पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना और ट्रायल में लान है। पुलिस का यह काम नहीं है कि वह आरोपी को केवल इस कारण मार दे कि वह एक खूंखार अपराधी है।

हालांकि, कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि पुलिस ने वही किया, जो करना जरूरी था। इस कारण इसे हत्या नहीं, गैर इरादतन हत्या के तौर पर कोर्ट ने देखा। सीबीआई कोर्ट के फैसले को इसी आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पलट दिया। 4 अप्रैल 2016 को सीबीआई ट्रायल कोर्ट ने आरोपी 43 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस केस में आरोपी पुलिसकर्मियों की सजा को कम करते हुए सात-सात का कर दिया।

12 जुलाई 1991 को पीलीभीत के कछाला घाट के पास पुलिस ने खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी के नाम पर तीर्थयात्रियों की बस से 11 सिख युवकों को उठाया था। इसमें से 10 युवकों को 12 और 13 जुलाई की रात तीन एनकाउंटर में पुलिस ने मार गिराने का दावा किया। पहला एनकाउंटर न्योरिया थाने में दर्ज हुआ। पुलिस ने दावा किया कि महोफ जंगल के धमेला कुआं के पास आतंकियों के हलचल की जानकारी मिली। पुलिस की टीम जब मौके पर पहुंची तो 5-6 सिख युवकों ने उन्हें निशाना बनाया। गोलीबारी होने लगी। पुलिस ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाईं। फायरिंग रुकने के बाद 4 सिख युवकों के शव बरामद किए गए।

12 जुलाई की ही रात का एक केस बिलसांदा थाने में दर्ज किया गया। पुलिस ने इसमें लूट का केस दर्ज कराया। पुलिस का दावा था कि राइफल और बंदूक की लूट से जुड़ा था। इसी सिलसिले में पुलिस की टीम 13 जुलाई की सुबह साढ़े तीन बजे फगुनई घाट पहुंची। वहां पर गहमागहमी दिखी। पुलिस ने एफआईआर में लिखा कि जैसे ही टॉर्च जलाई गई, दूसरी तरफ से फायरिंग होने लगी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में तीन लोगों का शव बरामद किया गया।

तीसरा एफआईआर पूरनपुर थाने में दर्ज हुआ। इसमें बताया गया है कि पुलिस को 12 जुलाई की रात सूचना मिली कि बंदूक, राइफल और एके 47 से लैस 6 से 7 बदमाश तराई इलाके में मौजूद हैं। पुलिस पट्‌टाभोजी गांव पहुंची। पुलिस को देखते हुए जंगल में गोलीबारी शुरू कर दी गई। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की। वहां दो आतंकियों के शव बरामद किए गए।

पीलीभीत एनकाउंटर पर विवाद बढ़ा तो जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने पूरी घटना की जांच की। रिजल्ट यह आया कि पटना साहिब से लौट रहे तीर्थयात्रियों में 11 को पुलिस ने बस से उतारा। उन्हें मिनी बस में घुमाया जाता रहा। रात होने पर तीन भाग में बांटकर आरोपियों को सुनसान जगह पर ले जाकर एनकाउंटर कर दिया गया। फर्जी एनकाउंटर का मामला गरमा गया। सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने फर्जी एनकाउंटर को लेकर जनहित याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच 15 मई 1992 को सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने मामले की जांच के बाद 57 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सबूतों के आधार पर चार्जशीट दायर की। कोर्ट ने इस मामले में 47 को दोषी ठहराया। आरोपियों में से 2016 तक 10 की मौत हो गई।

सीबीआई ने केस की जांच को लेकर तमाम सबूत एकत्र किए। 178 लोगों की गवाही कराई गई। चार्जशीट में भी इनके नाम दर्ज हैं। इसके अलावा पुलिसकर्मियों के हथियार, गोलियां और 101 सबूतों को जुटाया गया। सीबीआई ने 207 कागजातों को 58 पेज के चार्जशीट में साक्ष्य के तौर पर पेश किया। सीबीआई कोर्ट ने आरोपी पुलिस कर्मियों पर पुरस्कार और प्रमोशन के लालच में एनकाउंटर की घटना को अंजाम देने का दावा किया।

फेक एनकाउंटर केस में 10 युवकों की हत्या का मामला दर्ज कराया गया। इसमें पीलीभीत के नरिंदर सिंह उर्फ निंदर पिता दर्शन सिंह और लखविंदर सिंह उर्फ लाखा पिता गुरमेज सिंह शामिल थे। वहीं, गुरदासपुर के बलजीत सिंह उर्फ पप्पू पिता बसंत सिंह, जसवंत सिंह उर्फ जस्सा पिता बसंत सिंह, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा पिता अजायब सिंह, सुरजन सिंह उर्फ बिट्टो पिता करनैल सिंह और रणधीर सिंह उर्फ धीरा पिता सुंदर सिंह का भी एनकाउंटर हुआ था। साथ ही, बटाला के जसवंत सिंह उर्फ फौजी पिता अजायब सिंह, करतार सिंह पिता अजायब सिंह और मुखविंदर सिंह उर्फ मुखा पिता संतोख सिंह भी मार गिराए गए थे। शाहजहांपुर के तलविंदर सिंह पिता मलकैत को गुमशुदा बताया जाता है।

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