भारत के पर्यावरण का भविष्य खतरे में है! इस वर्ष 22 अप्रैल को मनाए जा रहे पृथ्वी दिवस की थीम ‘इन्वेस्ट इन प्लेनेट’ यानी अपने ग्रह में निवेश है। मोटे तौर पर धरती पांच तरह के निवेश की मांग कर रही है। पहला, प्लास्टिक का उपयोग घटाना, दूसरा, पेड़-पौधे लगाना, तीसरा, पर्यावरण के प्रति सक्रियता बढ़ाना, चौथा पर्यावरण के मुद्दों को मुख्यधारा की राजनीति में लाना और पांचवां रोजमर्रा की जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा टिकाऊ वस्तुओं का इस्तेमाल करना। सवाल यह उठता है कि इन पांचों तरह के निवेश से क्या हासिल होगा और ये क्यों जरूरी हैं। दरअसल ऐसा नहीं हुआ तो अपनी आने वाली पीढ़ियों को बेहतर जीवन देने के लिए दो पृथ्वी भी कम पड़ेंगी। माइक्रो प्लास्टिक की वजह से सभी तरह के जीवों में प्रजनन संबंधी विकृतियों से लेकर कैंसर तक बढ़ रहा है। 1907 से अबतक 9 अरब टन प्लास्टिक उत्पादित हुआ है। इसमें से सिर्फ 9 फीसदी रिसाइकल हुआ है।
भारत में हर साल 34 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। इसमें से महज 30 फीसदी ही रिसाइकल होता है,प्लास्टिक का उपयोग घटाना, दूसरा, पेड़-पौधे लगाना, तीसरा, पर्यावरण के प्रति सक्रियता बढ़ाना, चौथा पर्यावरण के मुद्दों को मुख्यधारा की राजनीति में लाना और पांचवां रोजमर्रा की जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा टिकाऊ वस्तुओं का इस्तेमाल करना। सवाल यह उठता है कि इन पांचों तरह के निवेश से क्या हासिल होगा और ये क्यों जरूरी हैं। दरअसल ऐसा नहीं हुआ तो अपनी आने वाली पीढ़ियों को बेहतर जीवन देने के लिए दो पृथ्वी भी कम पड़ेंगी। माइक्रो प्लास्टिक की वजह से सभी तरह के जीवों में प्रजनन संबंधी विकृतियों से लेकर कैंसर तक बढ़ रहा है। 1907 से अबतक 9 अरब टन प्लास्टिक उत्पादित हुआ है। इसमें से सिर्फ 9 फीसदी रिसाइकल हुआ है। देश में प्लास्टिक का इस्तेमाल 9.7% सालाना की दर से बड़ रहा है। इस पर ध्यान नहीं दिया, तो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बर्बाद हो जाएगा।
उत्सव नहीं था, बल्कि देश में फैल रहे तरह-तरह के प्रदूषण को लेकर सरकार के खिलाफ एक जबरदस्त प्रदर्शन था, जिसके बाद अमेरिकी सरकार की नींद खुली और तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इन्वायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) की स्थापना की।प्लास्टिक का उपयोग घटाना, दूसरा, पेड़-पौधे लगाना, तीसरा, पर्यावरण के प्रति सक्रियता बढ़ाना, चौथा पर्यावरण के मुद्दों को मुख्यधारा की राजनीति में लाना और पांचवां रोजमर्रा की जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा टिकाऊ वस्तुओं का इस्तेमाल करना। सवाल यह उठता है कि इन पांचों तरह के निवेश से क्या हासिल होगा और ये क्यों जरूरी हैं। दरअसल ऐसा नहीं हुआ तो अपनी आने वाली पीढ़ियों को बेहतर जीवन देने के लिए दो पृथ्वी भी कम पड़ेंगी। माइक्रो प्लास्टिक की वजह से सभी तरह के जीवों में प्रजनन संबंधी विकृतियों से लेकर कैंसर तक बढ़ रहा है। 1907 से अबतक 9 अरब टन प्लास्टिक उत्पादित हुआ है। इसमें से सिर्फ 9 फीसदी रिसाइकल हुआ है। भारत में समय-समय पेड़ और पर्यावरण को बचाने के लिए आंदोलन हुए हैं। लेकिन सरकारों की तरफ से स्थिति लचर ही है। इसमें सुधार तभी होगा, जब पर्यावरण के मुद्दे राजनीति को प्रभावित करने लगेंगे।
एक अनुमान के मुताबिक, अगर दुनिया का हर व्यक्ति एक आम अमेरिकी जैसा जीवन जिये, तो हमें पांच पृथ्वियों जितने संसाधनों की जरूरत होगी। पृथ्वी के निर्माण से लेकर अबतक के इतिहास को एक कैलेंडर वर्ष मानकर चलें, तो इन्सानों के आधुनिक जीवन को महज 37 मिनट बीते हैं। इसमें से भी बीते 0.2 सैकेंड में हमने पृथ्वी के 33 फीसदी संसाधनों का शोषण कर डाला है। आने वाली पीढ़ियों को औसत जीवनस्तर देने के लिए हमें दो पृथ्वियों जितने संसाधनों की जरूरत होगी। ऐसे में मौजूदा संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए टिकाऊ वस्तुओं के उपयोग पर जोर देना होगा।
पेड़-पौधे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रथम पंक्ति के योद्धा हैं। ये वैश्विक उत्सर्जन के 33 फीसदी से ज्यादा हिस्से का अवशोषण करते हैं। इसके साथ ही पशु-पक्षी और कीट-पतंगों को प्राकृतिक आवास भी मुहैया कराते हैं। ये सभी पृथ्वी की खाद्य शृंखलाओं और पारिस्थितिकी तंत्रों के अहम हिस्से हैं, जो इस ग्रह पर जीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। पेड़ बाढ़, सूखे से भी बचाते हैं व जल प्रदूषण को कम करते हैं।
वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए भारत को अगले पांच वर्ष में 4 अरब पेड़ लगाने की जरूरत है। वहीं, भारत ने 2030 तक वन क्षेत्र को 33% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार ने 2015 से 2030 के बीच 6.2 अरब पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा है।खेतों में पराली जलाने से लेकर, प्रदूषित पानी को बिना उपचार के जल स्रोतों में छोड़ना, रास्ते में प्लास्टिक कचरा फेंकना ऐसी तमाम आदतें हैं, जिन्हें पर्यावरण के प्रति व्यक्तिगत सक्रियता के जरिये ही बदला जा सकता है।