अक्सर चुनावों से पहले हिंसा की वारदात सामने आती ही रहती है! पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव की घोषणा हो चुकी है। शुक्रवार से नामांकन भी शुरू हो गया। इसके साथ ही शुरू हो गया है चुनावी हिंसा का ताजा दौर। पहले ही दिन कांग्रेस के एक कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई तो कई जगहों पर हुई झड़पों में डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। साल 2018 में हुए पंचायत चुनाव के दौरान भी इसी तरह की हिंसा से बंगाल रूबरू हुआ था। 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। बंगाल में शायद ही कोई चुनाव हो, जिसमें हिंसा न होती हो। वाम मोर्चा के शासन काल से ही इसकी परंपरा शुरू हुई और ममता बनर्जी के तीसरे शासन काल में बदस्तूर है। भीषण गर्मी झेल रहे बंगाल के लोगों को मानसून का बेसब्री से इंतजार है, लेकिन मानसून से पहले ही बंगाल में चुनावी हिंसा का दौर शुरू हो गया है। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों में निर्विरोध निर्वाचन की होड़ लगी रहती है। साल 1978 से 2018 के बीच कुछ साल छोड़ दें तो निर्विरोध निर्वाचित होने वालों के संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रही है। साल 1978 में पंचायत चुनाव में 338 लोग निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। 1983 में यह संख्या 332 रही, 1988 में अचानक उछल कर संख्या 4200 हो गई। साल 1993 में 1716, 1998 में 680, 2003 में 6800, 2008 में 2845, 2013 में 6274 और 2018 में सबसे अधिक 20,076 लोग पंचायत चुनावों में निर्विरोध निर्वाचित हुए।
साल 2021 में बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए थे। चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद बंगाल के कई हिस्सों में हिंसा हुई थी। बीजेपी ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा में तकरीबन 60 लोगों की मौत हुई थी। मारे गए लोगों में अधिकतर बीजेपी के कार्यकर्ता थे। बीजेपी ने अपने 50 से ज्यादा कार्यकर्ताओं के मारे जाने की बात कही थी। राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर चुनावी हिंसा के आरोपों से इनकार किया था। कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर आखिरकार सीबीआई ने चुनाव बाद हिंसा के मामलों की जांच की। सीबीआई ने 250 से अधिक लोगों के खिलाफ इस सिलसिले में चार्जशीट दाखिल की। हिंसा के आरोप में 225 से अधिक लोग गिरफ्तार भी किए गए थे। हिंसा में हत्या, हत्या की कोशिश, दुष्कर्म, दुष्कर्म का प्रयास जैसी घटनाएं शामिल थीं।
बंगाल में चुनावी हिंसा का आलम यह था कि बड़े पैमाने पर लोगों ने घर छोड़ा और पलायन कर असम चले गए। बाद में तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ उनसे मिलने असम गए। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद उनकी वापसी संभव हो पाई थी। यह रहस्य तो तब उजागर हुआ, जब मामले की सीबीआई ने जांच की। अगर राज्य सरकार की पुलिस इन मामलों की जांच करती तो आंकड़े छिपा लिये जाते। छिपाने के बाद भी आंकड़ों के हिसाब से बंगाल अब भी चुनावी हिंसा के मामलों में टॉप पर है। चुनाव को छोड़ भी दें तो राजनीतिक हिंसा बंगाल में साल दर साल होती है।
पंचायत चुनाव के लिए शुक्रवार को नामांकन पत्र दाखिल करने की शुरुआत हुई। पहले ही दिन हिंसा से चुनाव की बोहनी हो गई। कई जगहों पर मारपीट की घटनाएं हुईं तो मुर्शिदाबाद में कांग्रेस के एक कार्यकर्ता की हत्या हो गई। मारपीट में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों के घायल होने की सूचना है। बांकुड़ा में विधायक की गाड़ी पर पथराव की खबर भी आई। कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता शुक्रवार की दोपहर खरग्राम में ताश खेल रहे थे। तभी तृणमूल कांग्रेस से संबंध रखने वाले बदमाशों ने हमला कर दिया। बांस, डंडे और लोहे की रॉड से पिटाई की गई। कांग्रेस कार्यकर्ता खून से लथपथ होकर गिर पड़े। बदमाशों ने फायरिंग भी की। फायरिंग में कई लोग घायल हो गए। घायलों को कांदी अनुमंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने कांग्रेस कार्यकर्ता फूलचंद शेख को मृत घोषित कर दिया।
बंगाल में राजनीतिक हिंसा कोई नई बात नहीं है। साल 1977 से 2007 तक 28 हजार लोग राजनीतिक हिंसा में मारे गए। कुछ साल पहले बंगाल असेंबली में सरकार ने बताया था कि 1977 से 2007 तक 28 हजार राजनीतिक हत्याएं हुईं। यह वाम मोर्चा के शासन का दौर था। सिंगूर और नंदीग्राम के आंदोलन में मारे गए लोगों को भी राजनीतिक हिंसा का शिकार माना गया। सरकारी आंकड़ों को देखें तो 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 15 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं। बंगाल में राजनीतिक हिंसा की 1100 घटनाओं का जिक्र पुलिस रिकॉर्ड में है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2013 से लेकर मई 2014 के बीच बंगाल में 23 से अधिक राजनीतिक हत्याएं हुईं। 2016 में बंगाल में हिंसा की घटनाएं 91 हुईं, जिसमें 205 लोगों की जान चली गई थी। साल 2015 में 184 लोग मारे गए थे। 2013 में भी बंगाल में 26 लोग मारे गए थे। 2018 के पंचायत इलेक्शन में 18 लोग मारे गए। हालांकि बीजेपी अपने 52 कार्यकर्ताओं के मारे जाने का दावा करती है। टीएमसी ने भी अपने 14 लोगों के मारे जाने की बात कही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में 12 लोग मारे गए थे।