आज हम आपको बताएंगे कि भारत के संविधान की मूल प्रति आखिर कहां है! गणतंत्र दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। इस साल, हमने गणतंत्र दिवस की 75वीं वर्षगांठ मनाई। ये वही दिन था जब नए आजाद भारत के संस्थापक कठिन प्रयास से एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को कॉन्स्टीट्यूशन ड्राफ्टिंग का काम पूरा किया और 26 जनवरी, 1950 को ये लागू हुआ। संविधान सभा ने इस संविधान का मसौदा तैयार किया। दो साल से अधिक समय की मेहनत से संविधान की दो लिखित प्रतियों को पेश किया गया था। इस पर स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों के हस्ताक्षर थे। हालांकि, वो सुलिखित संविधान के वॉल्यूम्स कहां हैं? वास्तव में, भारत के संविधान की मूल सुलेखित प्रतियां संसद भवन के पुस्तकालय में प्रदर्शन के लिए संरक्षित हैं। इन प्रतियों को उसी तरह से संरक्षित किया गया है जैसे काहिरा में मिस्र के संग्रहालय में शाही ममियों को संरक्षित किया गया है। संविधान के अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों को 45 फीसदी सापेक्ष आर्द्रता ह्यूमिडिटी पर 1 फीसदी से कम ऑक्सीजन के माइक्रो वातावरण में डिजाइन किए गए सील ग्लास रिसेप्टेकल्स में रखा गया है। पूरा ग्लास केस सुनिश्चित करता है कि ये दस्तावेज नमी, तापमान या प्रदूषण से प्रभावित नहीं हो।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर की नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला एनपीएल की ओर से अमेरिका के गेटी कंजर्वेशन इंस्टीट्यूट जीसीआई के सहयोग से बनाए गए ये ग्लास केस 1994 से संसद लाइब्रेरी के एक स्ट्रांग रूम में रखे गए हैं। ये दोनों ग्लास रिसेप्टेकल्स संसद की लाइब्रेरी में एक सुरक्षात्मक तिजोरीनुमा कमरे के अंदर हैं। ये रूम 180 सेमी चौड़ा, 180 सेमी गहरा और 305 सेमी ऊंचा है। पूरे साल 20 डिग्री सेल्सियस तापमान और 30 फीसदी सापेक्ष आर्द्रता बनाए रखने के लिए कमरे को जलवायु-नियंत्रित किया जाता है। प्रत्येक बॉक्स 55 सेमी चौड़ा, 70 सेमी लंबा और 25 सेमी ऊंचा है।
सीएसआईआर-एनपीएल के निदेशक वेणुगोपाल अचंता ने टीओआई को बताया कि ‘इन रिसेप्टेकल्स का समय-समय पर एनपीएल वैज्ञानिकों की एक टीम जांच करती है। पार्लियामेंट लाइब्रेरी भी साप्ताहिक आधार पर इनकी निगरानी करती है। दोनों प्रतियां बहुत अच्छी स्थिति में हैं और मॉनिटरिंग पैरामीटर्स को पर्याप्त रूप से बनाए रखा गया है। संविधान की दोनों मूल सुलेखित कॉपी की बड़ी ही ऐतिहासिक वैल्यू है क्योंकि इसमें संविधान के संस्थापकों के हस्ताक्षर मौजूद हैं। प्रारंभ में इन्हें किसी भी अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह संसद पुस्तकालय में रखा गया था। लेकिन 1980 के दशक के मध्य में यह महसूस किया गया कि इन ऐतिहासिक वॉल्यूम्स को बेहतर ढंग से संरक्षित करने की आवश्यकता है। तभी एनपीएल ने इसमें एंट्री मारी, इसका काम इन दस्तावेजों को संरक्षित करने के लिए खास केस का निर्माण करना था।
1988-89 में टेम्पर्ड ग्लास और उपयुक्त सीलेंट का इस्तेमाल करके एनपीएल केस का निर्माण किया गया था। हालांकि, स्थायित्व के मुद्दों की वजह से ये उपयुक्त नहीं माने गए थे। करंट साइंस पत्रिका में बाद के प्रयासों का विवरण देते हुए, एनपीएल के पूर्व निदेशक डीके असवाल और इसकी पूर्व मुख्य वैज्ञानिक रंजना मेहरोत्रा ने अहम जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने भली-भांति सील किए गए कांच के केस को डेवलप करने के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग की मांग की थी।
1989 में, एनपीएल वैज्ञानिक अंततः जीसीआई के दरवाजे पर पहुंचे, जिसने मिस्र के संग्रहालय की ममियों के ‘भंडारण और प्रदर्शन के लिए लगभग वैसे ही केस’ डेवलप किए थे। एनपीएल और जीसीआई ने भारत के संविधान के लिए डिस्प्ले केस के निर्माण को लेकर जुलाई 1993 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस बात पर सहमति हुई कि संविधान के अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों के लिए दो समान ग्लास केस गढ़े जाएंगे। ये ग्लास रिसेप्टेकल्स अमेरिका में जीसीआई ने बनाए थे। फिर संसद की लाइब्रेरी में भेजा गया था। इन्हें मार्च 1994 में स्थापित किया गया था।
एनपीएल ने हर्मेटिकली सीलबंद ग्लास केस को डेवलप करने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग का प्रयास किया था। 1992-93 में, एनपीएल वैज्ञानिक हरि किशन ने सेंट-गोबेन कंपनी, पेरिस का दौरा किया। वह दो डिस्प्ले केस बनाने में सक्षम थे। एक को सोल्डरिंग प्रक्रिया से सील किया गया और दूसरे को ओ-रिंग्स से सील किया गया। हालांकि, उन्हें दीर्घकालिक संरक्षण के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया।
हरि किशन ने इस मुद्दे पर जॉर्जेस एम्सेल प्रसिद्ध लौवर संग्रहालय, पेरिस में संरक्षण पहलुओं के विशेषज्ञ के साथ चर्चा की। उन्होंने जीसीआई से संपर्क करने का सुझाव दिया, क्योंकि 1989 में उन्होंने मिस्र के संग्रहालय में 27 शाही ममियों के भंडारण और प्रदर्शन के लिए काहिरा इसी तरह के केस डेवलप किए थे।
नवंबर 1992 में, एनपीएल ने एमए कोर्जो निदेशक, जीसीआई से संपर्क किया, जो संयुक्त रूप से ‘हर्मेटिकली सीलबंद ग्लास केस’ विकसित करने के लिए सहमत हुए। मार्च 1994 में, इन केस को संसद पुस्तकालय में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। केस को व्यक्तिगत रूप से पॉलिश किया गया, स्टेनलेस-स्टील स्टैंड लगभग 1 मीटर ऊंचाई पर वार्निश टीक कैबिनेट-वर्क के साथ लगाया गया था। केस को मेटल फ्रेम से कवर किया गया। एनपीएल में स्टैंड और कैबिनेट का निर्माण किया गया था। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र बीएआरसी में स्वास्थ्य सुरक्षा और पर्यावरण समूह के निदेशक के रूप में तैनात असवाल ने टीओआई को बताया कि चूंकि वे बॉक्स पुराने हो रहे हैं, इसलिए नए बक्से बनाने का प्रस्ताव जल्द से जल्द लिया जाना चाहिए।