यह सवाल उठना लाजिमी है कि अमेठी से कौन सा बड़ा राजनेता चुनाव लड़ने जा रहा है! इस बार BJP सबसे अधिक दांव तमिलनाडु पर लगा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के समय में सबसे अधिक चुनावी रैलियां भी वहीं की हैं। दिलचस्प है कि चुनावी सीजन में नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के टीवी चैनल को ही अपना सबसे पहला डीटेल्ड इंटरव्यू दिया। हालांकि वहां पार्टी से AIADMK के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन न हो पाना जरूर झटका माना गया। जानकारों के अनुसार, खुद पीएम मोदी भी चाहते थे कि AIADMK के साथ गठबंधन हो। उनकी यह मंशा इंटरव्यू में भी दिखी, जब उन्होंने जयललिता की खूब तारीफ की। उन्होंने यहां तक कहां कि 2002 में गुजरात दंगे के बाद देश के तमाम दूसरे नेताओं ने उनसे दूरी बना ली थी, तब सिर्फ जयललिता थीं जो गुजरात आईं। कहीं न कहीं नरेंद्र मोदी जयललिता की विरासत से खुद को जोड़कर तमिलनाडु में AIADMK वोटरों को भी टारगेट कर रहे हैं। BJP ने पार्टी के नेताओं से भी कहा है कि वे जयललिता पर कोई नकारात्मक कमेंट न करें। BJP का आकलन है कि अगर जयललिता से जुड़ी विरासत का वोट BJP को मिला, तो पार्टी इस बार सभी को चौंका सकती है। उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट पर इस बार कांग्रेस को लेकर एक बड़ा सस्पेंस बना हुआ है। सियासी गलियारों में चर्चा चल रही है कि इस बार अमेठी से राहुल गांधी कांग्रेस उम्मीदवार होंगे या नहीं। रायबरेली से सोनिया गांधी के नहीं लड़ने के एलान के बाद वहां से प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने की अटकलें भी लग रही हैं। लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की संभावना कम ही है। ऐसे में अब फोकस अमेठी पर शिफ्ट हो गया है। कांग्रेस के अंदर अधिकतर नेताओं की आम राय है कि अगर राहुल गांधी वहां से खुद नहीं लड़ेंगे, तो इसका बहुत नकारात्मक संदेश जाएगा। ऐसे में कांग्रेस के अधिकतर नेताओं की ओर से राहुल गांधी पर एक तरह का दबाव भी है। लेकिन सभी जानते हैं कि वहां से चुनाव लड़ना है या नहीं लड़ना, यह फैसला खुद राहुल गांधी ही करेंगे। यही वजह है कि पार्टी की ओर से वहां उम्मीदवार तय करने में लगातार देरी हो रही है, और सस्पेंस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा।
BJP ने इस बार आम चुनाव में टिकट देने को लेकर कई प्रयोग किए हैं। अलग-अलग क्षेत्रों से पार्टी ने कई नामों को मैदान में उतारा है। इसी कड़ी में सिने-कला जगत से जुड़े दो चर्चित नामों को टिकट दिया गया। दोनों टिकट मिलने के बाद उत्साहित हैं और अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में सियासी मुकाबले के लिए उतर चुके है। लेकिन BJP को एक चिंता भी है। दोनों अपने हिसाब से कई बार बेबाक बोलने के लिए जाने जाते हैं। ऐसा भी बोल देते हैं, जिससे राजनीतिक रूप से नुकसान हो सकता है। इस मामले में खासकर एक नाम पर अधिक चिंता है। उन्हें टिकट देने से पहले कई स्तर पर मंथन भी हुआ। पार्टी के अंदर उन्हें टिकट देने पर पूरी तरह एक राय नहीं थी। उनके ट्रैक रेकॉर्ड को देखते हुए BJP अब टिकट देने के बाद कवर भी अपने स्तर से दे रही है। दोनों उम्मीदवारों के लिए मुद्दों की तलाश से लेकर कब कहां किससे क्या बोलना है, उसका होमवर्क पार्टी की टीम ही कर रही है। पार्टी की ओर से दोनों उम्मीदवारों को कम्युनिकेशन टीम भी उपलब्ध कराई गई है। सोशल मीडिया अकाउंट पर भी नजर रखी जा रही है। दरअसल, BJP की मंशा है कि इस बार चुनाव में ऐसा कोई विवाद न हो, जिससे उनका कैंपेन किसी तरह प्रभावित हो।
बिहार में इस बार दो छोटे दलों के नेताओं के लिए ‘दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम’ वाली हालत हो गई है। एक हैं पशुपति कुमार पारस, और दूसरे हैं मुकेश सहनी। दोनों नेताओं की कोशिश रही कि बारगेन कर अधिक से अधिक सीटें लें, पर इस कोशिश में दोनों कहीं के नहीं रहे। चिराग पासवान से समझौता करने के बाद BJP ने पारस को एक पैकेज ऑफर दिया, लेकिन वह RJD के साथ बारगेन करने लगे और वहां अधिक सीटों की मांग करने लगे। इसी कोशिश में वक्त बीत गया और उन्हें कहीं कुछ नहीं मिला। अब पारस एकतरफा NDA को समर्थन देने की बात कर रहे हैं ताकि चुनाव के बाद कुछ मिल सके। वहीं मुकेश सहनी के बारे में कहा गया कि वह एक ही दिन अलग-अलग समय दोनों गठबंधन से बात कर रहे थे। इसका पता दोनों गठबंधनों को चल गया तो उनसे सबने नमस्ते कर ली।
अभी सबसे अधिक सियासी उत्सुकता उस वजह का पता लगाने की है, जिसके तहत ओडिशा में BJP और BJD का चुनाव पूर्व गठबंधन होते-होते रुक गया। वह भी तब, जब BJP में नरेंद्र मोदी और BJD में खुद नवीन पटनायक की सहमति से गठबंधन की बात शुरू हुई थी। चर्चा है कि BJD की ओर से नवीन पटनायक के करीबी ब्यूरोक्रेट ने गठबंधन की बात शुरू की थी। इस पूर्व ब्यूरोक्रेट को नवीन पटनायक के उत्तराधिकारी के रूप में भी देखा जा रहा है। वहीं BJP में भी ब्यूरोक्रेट से नेता बने एक मंत्री ने कमान संभाली थी। लेकिन BJP के अंदर एक बड़ा वर्ग BJD विरोधी भी है। वैसे ही BJD के अंदर एक वर्ग BJP विरोधी है। इन दोनों ने अपनी-अपनी पार्टियों पर दबाव बनाया। लेकिन दोनों पार्टियों को लगा कि इससे न सिर्फ उनकी पार्टी में टूट हो सकती है, बल्कि उसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है, जो राज्य में तीसरे नंबर पर कमजोर स्थिति में है। लेकिन गठबंधन न हो पाने के बाद अब दोनों दल चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ किस तरह उतरेंगे, इसे लेकर संशय है। BJP को लगता है कि अगर वह BJD पर नरम पड़ी, तो कहीं विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव में भी नुकसान न हो जाए। इसका ठीक उलटा संशय BJD को भी सता रहा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ कितना टफ या सॉफ्ट रुख अपनाते हैं।