आखिर कौन सा है दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर? जानिए अद्भुत रहस्य!

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आज हम आपको दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर कहां स्थित है, यह बताने वाले हैं! हमारे देश में भगवान शिव के कई विशाल मंदिर है…. 150 फीट ऊंची शिवलिंग से लेकर कई ऊंचे स्थानों पर बने हुए शिव मंदिर भी उपस्थित है…. लेकिन आज हम आपको दुनिया के सबसे उंचे शिव मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं…. साथ ही साथ उससे जुड़े कई रहस्य भी बताने वाले हैं, आपको बता दें कि भगवान शिव को देवों का देव महादेव भी कहा जाता है। भारत में उत्तर से दक्षिण तक शिव जी के कई मंदिर स्थित हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे ऊंचा शिव मंदिर कौन सा है? आइए अब आपको दुनिया के सबसे उंचे शिव मंदिर के दर्शन करते हैं .. बता दें कि दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर उत्तराखंड में है, जिसे तुंगनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। तुंगनाथ भगवान शिव के पंच केदार में से एक है। उत्तराखंड में शिव जी के 5 प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित हैं, जिन्हें पंच केदार कहा जाता हैं। बता दें तुंगनाथ मंदिर 3,680 मीटर यानी 12,073 फीट की ऊंचाई पर चन्द्रनाथ नाम के पर्वत पर मौजूद हैदुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर उत्तराखंड में है, जिसे तुंगनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। तुंगनाथ भगवान शिव के पंच केदार में से एक है। उत्तराखंड में शिव जी के 5 प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित हैं, जिन्हें पंच केदार कहा जाता हैं। बता दें तुंगनाथ मंदिर 3,680 मीटर यानी 12,073 फीट की ऊंचाई पर चन्द्रनाथ नाम के पर्वत पर मौजूद है।

यह उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ का शाब्दिक अर्थ ‘चोटियों के भगवान’ है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल जितना पुराना बताया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर की नींव महाभारत के अर्जुन द्वारा रखी गई थी। एक प्रचलित कथा के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि हजारों साल पहले पांडव भाइयों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक मंदिर की स्थापना की थी। दरअसल, महाभारत के युद्ध में पांडवों ने अपने ही भाइयों और गुरुओं का वध किया था। ऐसे में पांडवों पर अपने ही रिश्तेदारों की हत्या का पाप था, इसलिए ऋषि व्यास ने पांडवों से कहा कि वह तभी पाप मुक्त हो सकते हैं, जब भगवान शिव खुद उन्हें माफ करेंगे। बता दें कि व्यास ऋषि की सलाह पर वे सभी शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन शिव महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा इसीलिए शिव को महेश के नाम से भी जाना जाता है का रुप धारण कर वहां से निकल गए। लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए।

कहते हैं कि तुंगनाथ में ‘बाहु’ यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है ।इसके बाद पांडवों ने शिव जी की तलाश शुरू कर दी और वे हिमालय जा पहुंचे। बहुत परिश्रम के बाद भोलेनाथ एक भैंस के रूप में दर्शन देते हैं।

हालांकि, इसके बाद भी भगवान शिव ने उन्हें टाल दिया क्योंकि पांडव दोषी थे। तब शिव जी भूमिगत हो गए और बाद में उनके शरीर यानी भैंस के पांच अंग अलग-अलग जगहों पर उठ गए। इन पांचो जगहों पर पांडवों ने शिव मंदिर बनवाएं। इन पंच केदार के प्रत्येक मंदिर को भगवान शिव के शरीर के एक अंग के साथ पहचाना जाता है। तुंगनाथ पंच केदार में से तीसरा (तृतीय केदार) है, जहां भगवान शिव के हाथ मिले थे। इसी के आधार पर मंदिर का नाम भी रखा गया। तुंग का अर्थ हाथ और नाथ भगवान के संदर्भ में कहा गया है। बता दें कि पंच केदार में इसके अलावा केदारनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर मंदिर आते हैं। केदारनाथ में भगवान शिव की कूबड़ प्रकट हुई थी। रुद्रनाथ में उनका सिर, कल्पेश्वर में बाल, जबकि मध्यमहेश्वर मंदिर में शिव जी की नाभि प्रकट हुई थी। यह जगह बेहद ठंडी है। सर्दियों के मौसम में यह बर्फ की चादर में ढक जाती है और तापमान इतना गिर जाता है कि इस दौरान मंदिर बंद कर दिया जाता है। इस दौरान देवता की प्रतीकात्मक मूर्ति और पुजारियों को मुख्य मंदिर से 19 किलोमीटर दूर मुक्कुमठ में ले जाया जाता है। हालांकि अप्रैल से नवंबर माह के बीच मुख्य मंदिर में ही पूजा और दर्शन किए जाते हैं। तो यह है शिव भगवान के सबसे ऊंचे मंदिर तुंगनाथ मंदिर की कहानी!