दंतेवाड़ा नक्सली हमले में हमारे देश के 10 जवान शहीद हो गए! छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में बुधवार को बारूदी सुरंग विस्फोट में शहीद 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। बड़ी बात ये है कि जो 10 जवान शहीद हुए हैं उनसे से पांच पहले नक्सली थे। नक्सलवाद छोड़ने के बाद वो पुलिस बल में शामिल हुए थे। प्रधान आरक्षक जोगा सोढ़ी, मुन्ना कड़ती, आरक्षक हरिराम मंडावी जोगा कवासी और गोपनीय सैनिक राजूराम करटम पहले नक्सली के रूप में सक्रिय थे, आत्मसमर्पण करने के बाद वह पुलिस में शामिल हो गए थे। बता दें कि हमले में 10 जवानों समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी। हमला उस समय हुआ था जब जवान सर्चिंग करके वापस लौट रहे थे। बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. ने बताया कि सुकमा जिले के अरलमपल्ली गांव के निवासी सोढ़ी और दंतेवाड़ा के मुड़ेर गांव के निवासी कड़ती 2017 में पुलिस में शामिल हुए थे। इसी तरह दंतेवाड़ा जिले के निवासी मंडावी और करटम को 2020 और 2022 में पुलिस में शामिल किया गया था।
उन्होंने बताया कि दंतेवाड़ा जिले के बड़ेगादम गांव का रहने वाला एक अन्य जवान जोगा कवासी पिछले महीने पुलिस में शामिल हुआ था। राज्य के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने बुधवार को सुरक्षाकर्मियों के काफिले में शामिल एक वाहन को विस्फोट से उड़ा दिया था।आत्मसमर्पण करने के बाद वह पुलिस में शामिल हो गए थे। बता दें कि हमले में 10 जवानों समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी। हमला उस समय हुआ था जब जवान सर्चिंग करके वापस लौट रहे थे। बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. ने बताया कि सुकमा जिले के अरलमपल्ली गांव के निवासी सोढ़ी और दंतेवाड़ा के मुड़ेर गांव के निवासी कड़ती 2017 में पुलिस में शामिल हुए थे। इसी तरह दंतेवाड़ा जिले के निवासी मंडावी और करटम को 2020 और 2022 में पुलिस में शामिल किया गया था। इस घटना में जिला रिजर्व गार्ड डीआरजी के 10 जवान और एक वाहन चालक की मौत हो गई।
बस्तर संभाग के स्थानीय युवकों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सुरक्षाबल के सबसे मारक क्षमता वाले जिला रिजर्व गार्ड में भर्ती किया जाता है। स्थानीय होने के कारण डीआरजी के जवानों को ‘माटी का लाल’ भी कहा जाता है।बस्तर संभाग के स्थानीय युवकों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सुरक्षाबल के सबसे मारक क्षमता वाले जिला रिजर्व गार्ड में भर्ती किया जाता है। स्थानीय होने के कारण डीआरजी के जवानों को ‘माटी का लाल’ भी कहा जाता है।आत्मसमर्पण करने के बाद वह पुलिस में शामिल हो गए थे। बता दें कि हमले में 10 जवानों समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी। हमला उस समय हुआ था जब जवान सर्चिंग करके वापस लौट रहे थे। बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. ने बताया कि सुकमा जिले के अरलमपल्ली गांव के निवासी सोढ़ी और दंतेवाड़ा के मुड़ेर गांव के निवासी कड़ती 2017 में पुलिस में शामिल हुए थे। इसी तरह दंतेवाड़ा जिले के निवासी मंडावी और करटम को 2020 और 2022 में पुलिस में शामिल किया गया था। पिछले तीन दशकों से चल रहे वामपंथी उग्रवाद के खतरे से लड़ने के लिए लगभग 40 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले बस्तर के सात जिलों में अलग-अलग समय पर डीआरजी का गठन किया गया था।पिछले तीन दशकों से चल रहे वामपंथी उग्रवाद के खतरे से लड़ने के लिए लगभग 40 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले बस्तर के सात जिलों में अलग-अलग समय पर डीआरजी का गठन किया गया था।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि डीआरजी का गठन पहली बार 2008 में कांकेर उत्तर बस्तर और नारायणपुर अबूझमाड़ शामिल जिले में किया गया था।आत्मसमर्पण करने के बाद वह पुलिस में शामिल हो गए थे। बता दें कि हमले में 10 जवानों समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी। हमला उस समय हुआ था जब जवान सर्चिंग करके वापस लौट रहे थे। बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. ने बताया कि सुकमा जिले के अरलमपल्ली गांव के निवासी सोढ़ी और दंतेवाड़ा के मुड़ेर गांव के निवासी कड़ती 2017 में पुलिस में शामिल हुए थे। इसी तरह दंतेवाड़ा जिले के निवासी मंडावी और करटम को 2020 और 2022 में पुलिस में शामिल किया गया था। इसके पांच वर्ष बाद 2013 में बीजापुर और बस्तर जिलों में बल का गठन किया गया। इसके बाद इसका विस्तार करते हुए 2014 में सुकमा और कोंडागांव जिलों में डीआरजी का गठन किया गया। जबकि जबकि दंतेवाड़ा में 2015 में डीआरजी का गठन किया गया।