आज हम आपको वायुसेना के महान सैनिक के बारे में बताने जा रहे हैं जिन पर देश गर्व करता है! भारतीय वायु सेना का आधिकारिक तौर पर गठन 08 अक्तूबर 1932 को किया गया था। इसका पहला प्लेन फ्लाइट 01 अप्रैल 1933 को अस्तित्व में आया। इसकी नफरी पर आर ए एफ की तरफ से ट्रेन्ड छह अफसर और 19 वायुयोद्धा थे। इसकी इन्वेंट्री में योजनाबद्ध नं. 1 थल सेना के सहयोग से स्क्वॉड्रन के ‘ए’ फ्लाइट के मूल में द्रिग रोड स्थित चार वेस्टलैंड वापिती IIए थल सेना बाइप्लेन शामिल थे। वायुसेना के इतिहास में कई दिग्गज हुए हैं। वायुसेना के साथ ही पूरा देश इन पर नाज करता है। मार्शल ऑफ द एयर फोर्स अर्जन सिंह डीएफसी भारतीय वायुसेना के इतिहास के एक महानायक हैं। ये अपनी व्यावसायिक सक्षमता, नेतृत्व क्षमता और सामरिक दूरदृष्टि के लिए जाने जाते हैं। अर्जन सिहं का जन्म 15 अप्रैल 1919 को हुआ था और एक विद्यार्थी के रूप में अपने शुरूआती दिनों से ही ये एक विजेता रहे हैं। ये एक बेहतरीन तैराक थे। एक मील तथा आधे मील की फ्री-स्टाइल तैराकी स्पर्धाओं में इन्होंने अखिल भारतीय रिकॉर्ड कायम किया था। 1938 में 19 वर्ष की आयु में अर्जन सिंह का चयन आरएएफ क्रैनवेल में प्रशिक्षण के लिए किया गया था। भारतीय कैडेटों के अपने बैच में इन्होंने कोर्स में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। रॉयल एयर फोर्स कॉलेज क्रैनवेल में अपने प्रशिक्षण के दौरान ये तैराकी, ऐथलेटिक्स और हॉकी की टीम के उप-कप्तान थे।
भारतीय वायुसेना को एक ऐसा अफसर पेश करने का गौरव प्राप्त है जिसका नाम द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक सभी मित्र देशों के बलों के सर्वश्रेष्ठ पायलटों में शुमार किया गया। विंग कमांडर केके ‘जंबो’ मजुमदार डीएफसी का जन्म 06 सितंबर 1913 को कोलकाता में हुआ था। दिसंबर 1933 में इन्होंने रॉयल फ्लाइंग क्लब से अपनी शिक्षा पूरी की और वायुसेना में इनके बेहतरीन करियर का आगाज़ हुआ। नवंबर 1934 में पायलट अफसर केके मजुमदार को भारतीय वायुसेना की दृघ रोड, कराची स्थित नं. 1 स्क्वॉड्रन में पोस्टेड किया गया। इन्हें विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस डीएफसी से सम्मानित किया गया। इस प्रकार यह सम्मान प्राप्त करने वाले ये भारतीय वायुसेना के प्रथम पायलट बने। 17 फरवरी 1945 को एक एयर शो के दौरान मुश्किल कलाबाजी को अंजाम देते हुए लाहौर के निकट वाल्टन में एक दुर्घटना में इनका निधन हो गया।
एयर कमोडोर मेहर सिंह का जन्म 20 मार्च 1915 को ल्यालपुर जिले में हुआ था। मेहर सिंह काफी कम उम्र से ही उड़ान के विचार से काफी प्रभावित थे। इससे ये 1934 में रॉयल एयर फोर्स कॉलेज क्रैनवेल, इंग्लैंड से जुड़ने के लिए प्रेरित हुए। जल्द ही अपने उड़ान कौशल से ही इन्होंने यहां अपने साथी वायुसैनिकों से सम्मान अर्जित कर लिया। बाबा मेहर सिंह अपने अधीनस्थों के बीच एक सख्त अनुशासन प्रेमी की छवि रखते थे किंतु ये काफी प्रेम और परवाह के साथ उनका ध्यान भी रखते थे। प्रभावशाली नेतृत्व और व्यक्तिगत बहादुरी के लिए 29 वर्ष की आयु में एक स्क्वॉड्रन के कमांडर के पद पर रहते हुए इन्हें विशिष्ट सर्विस ऑर्डर डीएसओ से सम्मनित किया गया। इनकी कई उपलब्धियों में 1948 में श्रीनगर में एक डकोटा वायुयान में भारतीय सेना की पहली सैन्य टुकड़ी को अपने नेतृत्व में ले जाने का मिशन सबसे यादगार है। बाबा मेहर सिंह 1948 में भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त हो गए। 11 मार्च 1952 को एक हवाई दुर्घटना में इनका असामयिक निधन हो गया।
सुब्रतो मुखर्जी आपस में काफी जुड़े और प्रसिद्ध एक बंगाली परिवार की सबसे छोटी संतान थे। 18 वर्ष की आयु में ये रॉयल एयर फोर्स कॉलेज क्रैनवेल में दो वर्षों के लिए उड़ान प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए चुने गए पहले छह भारतीय युवाओं में से एक थे। 08 अक्तूबर 1932 को कमीशन प्रदान किए गए छह भारतीय कैडेट में एक ये भी थे। ये एक फ्लाइट, एक स्क्वॉड्रन, एक स्टेशन और आखिर में स्वयं वायुसेना की कमान संभालने वाले पहले भारतीय बने। इन्होंने 1942 में एनडब्ल्यूएफपी उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत ऑपरेशन में भाग लिया। इनका ‘विशेष नामोल्लेख’ मेंशन इन डिस्पैचेज किया गया। जून 1945 में इन्हें ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ मिलिटरी डिविजन से सम्मानित किया गया। इन्होंने 1954 में भारतीय वायुसेना के कमांडर-इन-चीफ का पदभार संभाला। 1960 में इनका निधन हो गया।
फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह सेखों का जन्म 17 जुलाई 1943 को पंजाब के लुधियाना जिले के रूड़का गांव में हुआ था । ये ऑनरेरी फ्लाइट लेफ्टिनेंट तरलोचन सिंह सेखों के पुत्र थे। इन्हें 04 जून 1967 को भारतीय वायुसेना की उड़ान शाखा में कमीशन प्रदान किया गया था। इन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में एक पाकिस्तानी हवाई हमले के दौरान सेबर वायुयानों के खिलाफ एक नैट वायुयान में उड़ान भरते हुए अकेले श्रीनगर एयर बेस की रक्षा करने के सम्मान में भारत का सर्वोच्च सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र मरणोपरांत प्रदान किया गया।
हरजिंदर सिंह एक सैनिक की रैंक से नीचे एक हवाई सिपाही के रूप में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए। इन्हें 03 सितंबर 1942 को रॉयल एयर फोर्स में कमीशन प्रदान किया गया। इनकी कई पहल में 1958 के शुरू में भावासे स्टेशन कानपुर में एक वायुयान के निर्माण का काम शामिल है। ये एक बेजोड़ इंजीनियर थे और अपने समय से आगे की सोच रखते थे। ये एयर वाइस मार्शल की रैंक तक पहुँचे और कानपुर स्थित प्रतिष्ठित अनुरक्षण कमान के प्रथम कमांडर-इन-चीफ बने। 06 सितंबर 1971 को इनका असामयिक निधन हो गया।
विंग कमांडर राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1949 को पंजाब के पटियाला में हुआ था। इन्होंने सेंट जॉर्ज्स ग्रामर स्कूल, आबिद रोड, हैदराबाद से स्कूली शिक्षा प्राप्त की। इन्हें 1970 में भारतीय वायुसेना में एक पायलट अफसर के रूप में कमीशन प्रदान किया गया था। विंग कमांडर राकेश शर्मा 1984 में स्क्वॉड्रन लीडर के पद पर रहते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और सोवियत इंटरकॉस्मोस स्पेस प्रोग्राम के बीच एक संयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम के सदस्य के रूप में एक ऐतिहासिक मिशन का हिस्सा बने। इन्होंने साल्यूत 7 स्पेस स्टेशन पर अंतरिक्ष में 8 दिन बिताए। इसमें 35 वर्षीय राकेश शर्मा को 03 अप्रैल 1984 को सोयूज टी-11 पर दो सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों के साथ भेजा गया था। अंतरिक्ष से अपनी वापसी पर इन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ के सम्मान से नवाजा गया। भारत सरकार ने इन्हें शांतिकाल के अपने सर्वोच्च पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया।